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Friday, June 28, 2019

ADABI SANGAM .... [ 476 ]........ " RISHTEY " ...."रिश्ते . ...............................................................................................................................[JUNE,29- 2019, ].......... 33

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "

रिश्ते 





टूटते बिखरते ,सजते संवारते कभी कभी आकस्मिक  , कभी स्वार्थ  की किश्ती में सवार  , कभी 

निष्काम निष्कपट सीमाओं में जकड़े हुए अपने जीने की तमन्नाओं से लबरेज एक इंसान जब जनम लेता है तो वह माँ की गर्भ नाड़ी से बंधा जुड़ा होता है यही है उसका पहला अटूट रिश्ता जो उसे अपनी माँ से जुड़ाव देता है उसी के खून पे पला बड़ा बच्चा तभी तो दुनिया में पहला कदम रखते ही माँ का आँचल थाम  लेता है।

 यहीं से शुरू होती है उसके रिश्तों की दुनिया का सफर , हर कदम उसका किसी न किसी के साथ रिश्ता बनता चला जाता है , माँ बाप के साथ साथ भाई बहन के साथ , दोस्त के साथ  , स्कूल में अध्यापक से रिश्ता , जितने भी रिश्ते दार उस परिवार में होते है सबसे उसका रिश्ता कुदरती रूप से  जुड़ जाता है , बिना हमारी किसी भी कोशिश या मेहनत कुछ नज़दीक के  और कुछ दूर के रिश्ते सभी खुदबखुद हमारे जीवन में आ जुड़ते है।

, जो कुछ रिश्ते हमे विरासत में मिलते हैं ,  यानी की कुछ जन्म से ही मिल जाते हैं जिन्हे हम जनम जनम के रिश्ते कहते हैं  और कुछ इस मतलबी दुनिया में अपनी हितों को देखते हुए हमें अपनी मेहनत और लगन से बनाने पड़ते है

माँ बाप , भाई बहिन , और अन्य पारिवारिक रिश्ते तो हमे विरासत में ही मिल जाते हैं , जो आगे चल कर हमारी कर्म जीवन में बहुत बड़ा किरदार निभाते हैं।

इन रिश्तों की डोर होती बड़ी कमजोर है , जरा सी ग़लतफहमी या किसी लेन देन के झगडे में यह  रिश्ता एक कटी पतंग की तरह दिशाविहीन हो कर बिखर जाते हैं।  बाकी की कसर कोर्ट कचेहरी के मुकदमों में यह तार तार हो जाते हैं जो कभी न मिलने वाले नदी के दो पाटों की तरह फिर कभी मिल नहीं पाते ,


किसी शायर ने भी इसे खूब कहा है, रिश्ते तो नाम के होते हैं , नाकामी में गुमनाम  होने में ज्यादा वक्त नहीं लगता 


कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या ?

 कोई किसी का नहीं हैं झूठे नाते है नातों का क्या ?
सुख में तेरे साथ चलेंगे दुःख में सब मुहं मोड़ेंगे ,
 दुनिया वाले तेरे बनकर तेरा ही दिल तोड़ेंगे
देते हैं भगवान् को धोका इंसान को क्या छोड़ेंगे , ...

जब इंसान के पास  धन दौलत की कमी थी तो इस दुनिया में रिश्ते भी जिन्दा थे , गरीबी में रिश्ते भी बड़े गहरे होते थे , जैसे जैसे धन की महिमा बढ़ती गई रिश्ते नातों में खाई भी बढ़ती गई , एक अमीर कभी गरीब को पास ही नहीं   आने देता की कहीं वोह  उससे कुछ मांग ही न ले।चाहे रिश्ता कितना भी नज़दीकी क्यों न हो ?


कभी कभी कुछ ऐसे अपवाद भी हुए हैं कि न कुछ रिश्ता होते हुए भी  बड़े गहरे रिश्ते बन गए और लोग सोचते ही रह गए की यह रिश्ता क्या कहलाता है ? क्या नाम दें इस रिश्ते को जिसमे त्याग भी है , निस्वार्थ भी है , खून का रिश्ता न होते हुए भी जब  आप बीमार पड़े तो आपको अपना खून भी दिया , अपना पैसा भी दिया , जबकि जिन लोगों से आपका वास्तविक पारिवारिक और खून के रिश्ते  आपको मुसीबत में जान , नज़र बचा कर कन्नी काट गए , इस बेमतलब के लेकिन असली खून के रिश्ते को क्या नाम दें ?जो वक्त पे आप को धोका देकर निकल गए ?


माता पिता  के अलावा  एक और खूबसूरत और जिंदगी भर चलने वाला एक मात्र रिश्ता है पति पत्नी का , जिसमे सस्पेंस भी है , हॉरर भी है , अनबुझ पहेलियाँ से भरपूर रोमांस भरी जिंदगी का नाम है शादी , अब कहने को आप कहते रहिये रब नै बना दी जोड़ी जिसका रिश्ता निभ जाए वहां तो स्वर्ग है बाकी सब खाना पूर्ती है , एक दिन पति पत्नी में तकरार हो रहा था


👩 बीवी ~ काश मैं अपनी माँ की बात मान लेती और तुम से शादी ना करती.


👨 पति ~ क्या मतलब ? तुम्हारी माँ ने मुझ से शादी करने से मना किया था..?


👩 बीवी ~ और नहीं तो क्या..…


👨 पति ~ हे भगवान, मैं आज तक उस भली औरत को डायन समझता रहा 🙈


देखिये यह होता है रिश्ता कुछ खट्टा कुछ मीठा और कुछ शरारत भरा प्यार जो इस रिश्ते को खास बनाता है


रिश्ते बना कर निभाना बड़ा मुश्किल होता है कदम कदम पर गलतफमियां होने लगती है , युगो के रिश्ते पल में टूट जाते हैं ,


इनको सहेज कर रखना पड़ता है , कभी रिश्ते बच्चाने के लिए खुद को झुकना पड़ता है और कभी जीती हुई बाज़ी हारनी भी पड़ती


हारना तब और भी आवश्यक हो जाता है

जब लड़ाई "अपनों" से हो ! रिश्ते बच्चाने के लिए
और जीतना तब भी आवश्यक हो जाता है
जब लड़ाई "अपने आप " से हो ! !
मंजिले मिले , या न मिले  ये तो मुकद्दर की बात है
हम रिश्तो को सहेजने की  कोशिश ही न करे ये तो गलत बात है

गुस्सा और तैश रिश्तो का बहुत बड़ा दुश्मन होता है , बिना सोचे समझे शक और गर्मी भरा सवभाव सारा माहौल बिगाड़ देता है और रिश्ते कटीले लगने लगते हैं , रिश्ता हो तो बर्फ और पानी जैसा 


किसी ने बर्फ से पूछा कि,

आप इतने कड़क और फिर भी ठंडे  क्यूं हो ?
बर्फ ने बडा अच्छा जवाब दिया :-
" मेरा अतीत भी पानी;
मेरा भविष्य भी पानी..."
फिर गरमी किस बात पे रखू?🙏🏻

इंसान को अपने रिश्ते निभाने के लिए  बर्फ जैसा शांत और कूल होना चाहिए ताकि दूसरे के गुस्से की गर्मी को सोख ले और रिस्ता टूटने न पाए 

[  हम रिश्ते  बनाने में कितने मतलबी होते हैं की हर रिश्तों की कीमत उसके अमीर या गरीब होने पे तय करते हैं  
दिवाली पर हम सस्ती मिठाई उनके लिये लेते हे जो हमें सलाम करते हे .., क्योंकि वह  हमसे गरीब होते हैं  उनसे हमें इतना फायदा नहीं दीखता .
और महंगी काजू कत्ली उनके लिये जिन्हें हम सलाम करते हे ?? क्योंकि उन्हीं से हमें काम पड़ता है और उन्ही से हमें कमाई का सिलसिला बना हुआ है  

अभी हाल में ही हम रिटायर हुए , हमेशा की तरह दिवाली थी तो उम्मीद थी बहुत लोग आएंगे तोफों का आदान प्रदान होगा  आखिर हम भी तो उनके अटके हुए कितने ही काम करवा दिया करते थे .

अपनी जान पहचान वालों के  कल सुबह से संदेशे तो बहुत आये, लेकिन मेहमान कोई नही आया। सोचता  हूँ ड्राइंग रूम से सोफा ही  हटा दूं या ड्राइंग रूम का कांसेप्ट बदलकर वहां स्टडी रूम बना दूं। क्योंकि अब हमें लोग इस काबिल नहीं समझते हैं की हम उनके किसी काम आएंगे तभी तो इतनी आसानी से वह हमारी दुनिया से चुपके से निकल गए। 

दो दिन से व्हाट्स एप और एफबी के मेसेंजर पर मेसेज खोलते, स्क्रॉल करते और फिर जवाब के लिए टाइप करते करते दाहिने हाथ के अंगूठे में दर्द होने लगा है, संदेशें आते जा रहे हैं। बधाईयों का तांता है, लेकिन मेहमान नदारद है। 

लोग रिश्ता तो बनाये हुए है पर सोशल मीडिया पर मैसेज डाल कर अपना धर्म निभाए जा रहे हैं मिलना शायद उनके हिसाब से महंगा पड़ेगा , खाना पिलाना जो  पड़ता है ? समय भी लगाना पड़ता है जो किसी के पास आज कल बिलकुल ही नहीं है 

मित्रों, घर के आसपास के पड़ोसियों से रिश्ते भी गायब हो चुके हैं ,सब को मिला कर त्यौहार पर मिलने जुलने का रिवाज़ भी अब खत्म हो चला है। पैसे वाले दोस्त और अमीर किस्म के रिश्तेदार मिठाई या गिफ्ट तो भिजवाते है लेकिन घर पर बेल ड्राईवर बजाता है। वो खुद नही आते। सब कुछ कूरियर ही है हमारा सब से बड़ा रिश्तेदार जो हर मौसम में आपके दरवाज़े पर दस्तक दे कर कुछ न कुछ छोड़ जाता है 


दरअसल पहले  घर भी रिश्तेदारों से सजा करते थे ,अब घर वोह घर नही रहा। ऑफिस के वर्क स्टेशन की तरह घर एक स्लीप स्टेशन है। हर दिन का एक रिटायरिंग बेस। आराम करिए, फ्रेश हो जाईये। घर अब सिर्फ घरवालों का है, घर का समाज से कोई संपर्क नही है। 


मेट्रो युग में समाज और घर के बीच तार शायद टूट चुके हैं। हमे स्वीकार करना होगा कि ये बचपन वाला घर नही रहा, अब घर और समाज के बीच में एक बड़ा फासला सा है।  घर में बच्चे तो होते हैं पर वह अपनी दुनिया में होते है , हाथ में एक स्मार्ट फ़ोन ही उनकी प्रार्थमिकता है, रूबरू  रिश्ते उनकी जरूरत नहीं होती। 

वैसे भी शादी अब मेरिज हाल में होती है।कोई किसी को अपने घर बुला कर झंझट मोल नहीं लेना चाहता , बर्थडे मैक डोनाल्ड या पिज़्ज़ा हट में मनाया जाता है। बीमारी में नर्सिंग होम में ही जाकर खैरियत पूछी जाती है, और अंतिम आयोजन के लिए सीधे लोग घाट पहुँच जाते है। वक्त किसके पास है रिश्ते निभाने का ? कल को अगर कोई टीवी चॅनेल मौत,  जनम , शादी , मुंडन का डायरेक्ट टेलीकास्ट करने का सिस्टम चालू कर दे तो इन मौकों पर भी लोग घर से ही सब काम निबटा देना  चाहेंगे। 


सच तो ये है भी कि जब से डेबिट कार्ड और एटीएम आ गये है तब से मेहमान क्या ...चोर भी घर आने से कतराने लगे हैं 

मैं सोचती हूँ कि चोर आया भी  तो क्या ले जायेगा...फ्रिज, सोफा, पलंग, लैप टॉप..टीवी...कितने में बेचेगा इन्हें चोर? और री सेल तो olx ने चौपट कर दी है, चोर को बचेगा क्या ? वैसे भी अब कैश तो एटीएम में है, इसीलिए होम डेलिवरी वाला भी पिज़ा के साथ डेबिट मशीन साथ लाता है।

अब सवाल सिर्फ घर के आर्किटेक्ट को लेकर ही  बचा है। की उसने घर का नक्शा बनाते हुए लिविंग रूम / ड्राइंग रूम क्या सोच कर बनाया था ? जब किसी ने आपसे मिलने आना ही नहीं , रिश्ते दार भी अब तो नहीं आते तो इतना बड़ा कमरा बेकार में क्यों बनाया जाय ?


जी हाँ....क्या घर के नक़्शे से ड्राइंग रूम का कांसेप्ट खत्म कर देना चाहिये ? कब तक यह हमारी शानो शौकत को बचा के रखेगा 

आज बहुत दिनो बाद उससे बात हुई..!
उसने पूछा.. कैसे हो?
हमने कहा..
आँखों मे चुभन,
दिल में जलन,
साँसें भी हैं कुछ
थमी थमी सी,

है सब तरफ धुआँ ही धुआँ,

उसने कहा...
अभी तक मेरे इश्क में हो ?
हमने कहा..
नही..! 
दिल्ली में हूँ..!!आखों में कैटरेक्ट भी उत्तर आया है , अब तो आप आते भी नहीं कभी भूले बिसरे ही अपने पति के साथ मिलने आ जाओ , कहने लगी मैं भी अकेली  हूँ , पति से रिश्ता टूटे बरसों हो गए हैं खुद ड्राइव भी नहीं करती  , टैक्सी हमारी औकात से परे है , रिटायर्ड हूँ पेंशन भी पूरी नहीं पड़ती , सब दवा दारु में खर्च हो जाता है। अब हम क्या कहते इस गुमशुदा रिश्ते को हमने भी उन्हें गुलजार की एक कविता सुना कर अपनी भंडास निकाल डाली 


कुछ हँस के  बोल दिया करो,

कुछ हँस के  टाल दिया करो,
यूँ तो बहुत परेशानियां है
तुमको भी  मुझको भी,
मगर कुछ फैंसले
     वक्त पे डाल दिया करो,
न जाने कल कोई
    हंसाने वाला मिले न मिले..
इसलिये आज ही
      हसरत निकाल लिया करो !!

समझौता करना सीखिए..
क्योंकि थोड़ा सा  झुक जाना
 किसी रिश्ते को  हमेशा के लिए
तोड़ देने से  बहुत बेहतर है ।।।

किसी के साथ  हँसते-हँसते
 उतने ही हक से
  रूठना भी आना चाहिए !
अपनो की आँख का
     पानी धीरे से
पोंछना आना चाहिए !
      रिश्तेदारी और दोस्ती में
    कैसा मान अपमान ?
बस अपनों के दिल मे रहना
आना चाहिए...! 

तभी तो हम आज यार नहीं एक दूजे के कर्जदार हैं , 
वक़्त का  सितम तो देखिए
खुद गुज़र गया हमे वही छोड़ कर



चाय के दुकान पर चाय पीते हुए चाय वाले ने हम से पूछा  :
"चाय के साथ और कुछ दूं क्या"..??
मैंने बोला : पुराने दोस्त मिलेंगे क्या..??
चाय वाले के आंखों में आँसू आ गया और  सामने की तरफ हाथ दिखाते हुए बोला..
.वो देख सामने के "बार" में बैठे है..!!अब वह चाय नहीं व्हिस्की पीते हैं 
😝😝😝
दोस्ती के रिश्ते आज भी ज़िंदा है लेकिन बैठने की जगह बदल गयी 😂😂🍺☕हम भी भावुक हो गए रिश्तो की दुर्दशा देख कर , किसी शायर की बात याद आ गई :-

एक दिन उम्र ने तलाशी ली,

         तो जेब से लम्हे बरामद हुए

            कुछ ग़म के थे,_

               कुछ नम से थे,_
               कुछ टूटे हुए थे,_

           जो सही सलामत मिले.    
वो बचपन के थे..!!
           "बचपन" कितना खूबसूरत था, रिश्ते भी खूबसूरत थे 
तब"खिलौने जिंदगी"थे
आज "जिंदगी खिलौना" है और रिश्ते ?रिश्तों के माझी अब नहीं बचे 
वक्त के सैलाब में सब बह जाते हैं , बचते वह हैं जो तैरना जानते हैं। जो खुद को  भी सँभालते हैं और अपने डूबते रिश्तों को भी। ......... 

✍थमती नहीं ज़िन्दगी कभी किसी के बिना....!
✍लेकिन ये गुज़रती भी नहीं, अपनों के बिना...!!