तो वह मेरे , दोस्त बन गए ,
न चाहते ,न जानते ,लया में उनकी ,
हम भी बेबस ...यूँ ही उसमे बह गए .
भीड़ इतनी बढ़ी, हमारे दोस्तों की ,
महफिले भी सजी, हमारी दोस्ती की
फिर एक मोड़ ऐसा ,आया जिंदगी में
न महफिले थी न दोस्त ही,रहे जिंदगानी में
उनेह कुछ भी तो हासिल न था ,हमारी गरीबी से ,
वह जाते रहे .., अपना दमन वह हमसे बचाते रहे ,
कारवां निकल चुका था , उस उठते धुल के गुबार में
की हम फिर से तनहा ..... रह गए
इस मतलबी संसार में .
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