Thursday, August 19, 2010

Alone in the end

उनकी भी थी  .,         कुछ  हसरतें !
तो वह मेरे      ,        दोस्त बन गए ,
  न चाहते ,न जानते ,लया में उनकी ,
हम भी बेबस ...यूँ  ही उसमे  बह गए .
भीड़ इतनी बढ़ी,   हमारे दोस्तों की ,
महफिले भी सजी,  हमारी दोस्ती की 
फिर एक मोड़ ऐसा ,आया जिंदगी में 
न महफिले थी न दोस्त ही,रहे जिंदगानी  में 
उनेह कुछ भी तो हासिल न था ,हमारी गरीबी से ,
वह जाते रहे .., अपना दमन वह हमसे बचाते रहे ,
कारवां निकल चुका था , उस उठते  धुल के गुबार में 
की हम फिर से तनहा .....          रह गए 
  इस मतलबी  संसार  में .

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