Tuesday, April 4, 2023

SUKH----सुख ---------Adabi sangam -- Meet on --2nd April 2023-----

सुख ? बनाम दुःख 





सुख देव और दुःख देव हैं तो जुड़वाँ भाई पर दोनों की फितरत जुदा है और रहते भी अलग अलग है। सिक्के के दो पहलुओं की तरह एक ही सिक्के पर होते हुए भी अपनी अलग अलग पहचान रखते है। लोग सिक्के को हवा में उछाल कर अपना भाग्य आजमाया करते है। सुख दुःख भी कुछ ऐसी ही परिस्थति से पैदा होते है जिनका सीधा तालुक हमारे कर्मो का फल होते है ,


हम जैसा करते है, जैसा सोचते हैं वैसा ही सुख या दुःख हमारे जीवन में पैदा हो जाता है , चाहे वह आपकी अपनी वजह से हो या ,आपके इर्दगिर्द के माहौल से या हो आपकी औलाद से , आपकी प्रसिद्धि ,धन वैभव भी कभी कभी सुख देते देते दुःख में बदल जाती है ,
क्यों ऐसे होता है ?आइये थोड़ा विश्लेषण करते है।


एक बुजुर्ग किसान अपनी खाट पे बैठे हुक्के का मजा ले रहे थे , मैंने पुछा ताऊ कैसी चल रही है जिंदगी सुख से हो न ? भाई तन्ने याद सै मेरे दो बेटे सुखी राम और दुखी राम थे ? मैंने बड़े बेटे का नाम सुखी राम राखिआ था क्योंकि उसके पैदा होते ही घर में खुशीआं बिखर गई थी।


हमारा पहला बेटा जो होएया था। कीमे दो साल में दूसरा भी पैदा होएया उसने तेरी ताई को घणी तकलीफ देइ , ऑपरेशन करके उसे पैदा करिया डॉक्टरों ने , उसके ढाल चाल देखते होये हमने उसका नाम दुखी राम ही राख दिया।


दोनों पढ़ने लगे , सुखी पढ़ने में तेज निकला और उसकी नौकरी शहर में लग गई वहां उसने शहरी लड़की से शादी कर ली। वह अपनी बीवी के साथ शहर में ही रहने लगा , अब उसका ध्यान गांव से हट गया न वह हमें फ़ोन करता न कोई हाल चाल पूछता। तेरी ताई ने एक बार उसका नंबर मिलाया तो कहने लगा बहुत बिजी चल रहा हूँ कल फ़ोन करूँगा। वह कल कभी नहीं आया। तो भाई अब नू बता नाम सुखी राम और क्या सुख दिया उसने हमें ?


दुखी राम तो वैसे ही निकम्मा था बात बात पे लड़ता था और हमारी जमीन की खेती उसी के हवाले थी उसका काम काज सिर्फ खेती करना ही था और वह भी गावं में अपनी बीवी साथ अलग मकान लेकर रहने लगा। उसका मिलना भी बहुत कम था हमसे कभी कभार उसकी बेटी मिलने आ जाती थी और तेरी ताई से खूब बातें किया करती थी, पर अब वह भी पढ़ने शहर चली गई है और हमारे पास अब कोई नहीं आता जाता , सिर्फ एक बोरी गेहूं और चावल और शकर हर साल हमें भेज देता है क्योंकि पंचायत का फैसला है।


अब तुम ही बताओ दो दो बेटों का हमें क्या संतान सुख मिला ? कितनी मन्नतों से उनको भगवान् से माँगा था , मैंने बचपन में जो सुख पाए वह मुझे अभी तक याद है


*बचपन के सुख * मित्रों संग खेलते घूमते सुख यात्रा *
*माँ बाप के सनिग्ध से पाया हुआ सुख *
*पत्नी सुख *पुत्र सुख *
बेटी सुख यानी के सब संतान के सुख ,*
*इन्द्रिये सुख * नौकर चाकर के सुख
* तन के सुख , बड़ी गाडी बड़ी कोठी के सुख *
*तरह तरह के स्वादिष्ट खानो का सुख *

यह सब एक छलावा है ,अस्थाई आभास है हमेशा सुख देने वाले नहीं


पास सब कुछ होता है फिर भी आप सुखी नहीं हैं तो उस सुख की बुनियाद ही शायद खोकली थी जो सिर्फ ऊपरी चमक थी। यही सोच कर अब हम चुप रहने लगे थे। इसी दौरान तेरी ताई को दिल का दौरा पड़ा और वह चल बसी , सुखी राम ने सिर्फ थोड़ा पैसा भेज दिया और कहने लगा आ नहीं पाउँगा छुट्टी नहीं ले सकता नौकरी चली जायेगी। अरे तेरे को माँ के जाने का तनिक भी सोक नहीं ? नौकरी की चिंता है ? और उसने फ़ोन काट दिया।


मुझे सदमा लगा मुझे भी दिल का दौरा पड़ गया अब आडोसी पडोसी मुझे शहर के बड़े हस्पताल में ले गए और बोले प्राइवेट हस्पताल है बहुत ज्यादा पैसा लगेगा। पर तेरी जान बच जायेगी। यह मकान गिरवी रख दिया है और पैसा लेकर हस्पताल में जमा करवा दिया। ईश्वर की कृपा से दिल का ऑपरेशन ठीक ठाक हो गया , अब इंतज़ार में थे के छुट्टी कब मिलेगी


पैसे की बड़ी दिक्कत थी, दुखी राम से तो कोई उम्मीद थी ही नहीं सो ,उसे हमने कोई फ़ोन नहीं किया , लेकिन जैसे ही ताई के मरने की खबर उसे किसी गांव वाले से मिली और मेरे भी हस्पताल में भर्ती की खबर सुनी वह भागा भागा हस्पताल पहुँच गया मेरे गले लग के खूब रोया , माँ को याद करके उसका रोना बंद ही नहीं हो रहा था।


मैं दुखी राम के ऐसे व्यवहार से हैरान था , जो इंसान खुद हमें पूरी जिंदगी रुलाता रह आज खुद क्यों रो रहा है ? हमारी समझ से बाहर था क्या उसका मन पलट गया था ?


सुबह हस्पताल से डिस्चार्ज होना था सो फाइनल बिल बन कर मेरे पास आ गया और उन्होंने कहा जल्दी से यह पैसा जमा करवा दो नहीं तो डिस्चार्ज नहीं हो पाओगे। बिल देख मेरे पाऊँ के नीचे से जमीन निकल गई पूरे बारह लाख का बिल था एडवांस जो जमा किया था काट के। अरे भाई हमने हमारी पूरी जिंदगी में इतनी रकम नहीं देखि थी कहाँ से लाऊंगा यह बिल भरने के लिए ?


दुखी राम वहीँ खड़ा था उस ने वह बिल लेकर बोला , ठीक है जी,मैं बाहर डॉक्टर से बात करके आता हूँ ,लेकिन वह भी पूरी रात वापिस नहीं आया. अब मुझे पूरा डर लग रहा था के अब यह बिल कैसे भरू और सुबह छुट्टी कैसे लू. मेरा और तो कोई है भी नहीं और कोई जमा पूँजी भी नहीं मेरे पास ,इसी उधेड़ बुन में मुझे नींद आ गई और सुबह सिस्टर ने उठाया बाबा तैयार हो जाओ आज आपको वापिस घर जाना है।


घर ? लेकिन वह बिल ? वह पेमेंट हो गया है। किसने दिया ? यह सब हमें नहीं मालूम लेकिन आप जल्दी से तैयार हो जाओ और बिस्तर खाली करो , दूसरा पेशेंट आने वाला है। नर्स ने जल्दी जल्दी मुझे व्हील चेयर पे बिठाया और लिफ्ट से नीचे लॉबी में लेकर आ गई वहां मेरा बेटा दुखी राम और हमारे गांव का मुखिया साथ में वहां का MP भी खड़े थे।


सबने मुझे प्रणाम किया मेरा हाल चाल पुछा , मैं अपने बेटे दुखी के आलावा किसी को नहीं जानता था , सब ने मुझे बड़ी इज़्ज़त से गाडी में बिठाया और एक आलिशान कोठी के सामने आकर उनकी गाडी रुकी।


दुखी तूँ मेरे को कहाँ ले आया है मेरा घर तो गांव में है , बापू वह घर भी आपका ही है और यह भी। इतनी देर में MP साहब बोले आपका बेटा हमारे साथ बिज़नेस करता है मेरी बेटी से इसकी शादी भी हुई है ,यह हमारा दामाद है और आप हमारे समधी ,दुखी राम ने अपनी मेहनत से मेरे काम काज को बहुत बढ़ा दिया है और आज यह यहाँ का पार्षद भी है , यह सुन और सोच कर मेरी आँखें फटी की फटी रह गई , मेरा निक्कमा बेटा "दुखी राम " इतना बड़ा आदमी बन चूका था , जिसकी मैंने कभी उम्मीद भी नहीं की थी ,वही दुखी आज मुझे सुख देने चला आया ?


बापू अब आप आज से यहीं रहोगे अचानक एक सूंदर सी स्त्री ने कमरे में आते हुए बोला , यही मेरे दुखी राम की पत्नी थी , मुझे कुछ कागज़ देते हुए बोली लीजिये बापू जी आपके मकान की रजिस्ट्री हमने छुड़ा दी है आप जो चाहें इससे करे , हमारे पास ईश्वर का दिया सब कुछ है हमें इसमें कुछ भी नहीं चाहिए , मैं फटी आँखों से कभी रजिस्ट्री देखता कभी उस बहु को जो बहुत पढ़ी लिखी सुघड़ लड़की लग रही थी और यह मेरे गंवार दुखी राम की पत्नी ?


बापू जी मैंने डॉक्टरी की पढाई की है और उसी हॉस्पिटल में ही काम करती हूँ जहाँ आप एडमिट थे। आप ही के गांव की हूँ और आपके बेटे की स्कूल मेट भी। पिताजी और मैंने दुखी राम को भी यहीं शिक्षा दिलवाई है और वह भी आज एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग का ग्रेजुएट है, हमारे गांव के बहुत बड़े बड़े खेतो पे इन्ही की खेती होती है , यह गांव में अपनी मेहनत और दयालुता के लिए जाने जाते है।


यह सब क्या बोले जा रही हो तुम दुखी राम के बारे में ? और मुझे कुछ पता ही नहीं ?किसी ने मुझे आज तक बताया क्यों नहीं। मेरी आँखों से आंसू बहने लगे आज अगर इसकी माँ जिन्दा होती तो कितनी खुश होती देख के तेरा दुःख कैसे सुख में बदल गया है और शायद वह इतनी जल्दी हमसे जुदा भी न होती




अब तू बता बेटा सुखी कौन और दुखी कौन ? सुखी कब लिबास बदल ले और दुखी आपको इतने सुख देने लगे , जिस घर में सुख खुशाली होती है न ,उसी के घर की चौखट पर दुःख बैठा इसी इंतज़ार में होता है के आपसे कोई चूक गलती हो, कोई आपका कर्म उल्टा हो , और उसे घर के अंदर आने का मौका मिले। सुख दुःख सब हमारे आस पास ही है किसे हम पनाह देते है अपने घर में यह हम पर ही निर्भर होता है।


आपके भीतर का संतोष , एकाग्रता , अच्छा चाल चलन , सवास्थ्य खान पान , बीमारी रहित जीवन इतियादी , जो आपको हर हाल में प्रसन्न रखता है चाहे आपके पास धन हो या नो हो। इस सुख का वास्तव में धन से कोई नाता नहीं है बल्कि धन की अधिकता दुःख का कारण जरूर बन जाता है। यही है वह आत्मिक सुख जिसे खोजते खोजते हम दुखों को गले लगा लेते है।
अश्कों की बारिश नही करते,जो लोग
क्या उनके दिलोँ में दर्द नही होते ?।
मुस्कान है होठों पर, हर दम जिनके
।उनकी जिंदगी में क्या गम नहीं होते ?


होते हैं जनाब कुछ दिखा देते है कुछ फींकी हंसी में छुपा लेते हैं

सुख हो या दुख में---------
निभाना हो तो फूलों से सीखो,
बारात हो या जनाज़ा...
हर वक्त खिले खिले से रहते है !!


जब बाग़ से लाये गए तब भी खिलखिला रहे थे ,
इस्तेमाल हुए अब पाऊँ से मसले जा रहे है फिर भी ,

बिना गिला किये ------
सुगंध फैलाये जा रहे है


लता मंगेशकर जी के आखिरी शब्द मुझे याद आ गए के ,सुख दुःख भी सिर्फ कुछ शब्द है ,जैसे बाकी और शब्द ,सब मिथ्या हैं जिंदगी के लिए कामचलाऊ साधन है।



इस दुनिया में मौत से बढ़कर कुछ भी सच नहीं है। और दुनिया के दुखों से मुक्ति का एक मात्र सुख भी मौत है ,


दुनिया की सबसे महंगी ब्रांडेड कार मेरे गैराज में खड़ी है। लेकिन मुझे व्हील चेयर पर बिठा दिया गया।


मेरे पास इस दुनिया में हर तरह के डिजाइन और रंग के , महंगे कपड़े, महंगे जूते, महंगे सामान है लेकिन मैं उस छोटे गाउन में हूं जो अस्पताल ने मुझे दिया था !


मेरे बैंक खाते में बहुत पैसा है लेकिन अब यह मेरे लिए किसी काम का नहीं है यह अब सब इन्ही लोगों का है जो मेरी तीमारदारी में लगे है और जो मोटे मोटे टेस्ट और बिल बनाने में लगे है।


मेरा घर मेरे लिए महल जैसा है लेकिन मैं अस्पताल में एक छोटे से बिस्तर पर लेटी हूं। मैं दुनिया के पांच सितारा होटलों में घूमती रही। लेकिन अब मुझे अस्पताल में एक प्रयोगशाला से दूसरी प्रयोगशाला में भेजा जा रहा है!


एक समय था, जब हर दिन 7 हेयर स्टाइलिस्ट मेरे आगे पीछे दौड़ते और बालों की सफाई करते थे। लेकिन आज मेरे सिर पर बाल ही नहीं हैं।


मैं दुनिया भर के विभिन्न फाइव स्टार होटलों में खाना खाती थी। पर आज तो खाने के नाम पे सेलाइन ग्लूकोस ,दिन में दो गोली और रात को एक बूंद नमक ही मेरा आहार है।


मैं विभिन्न विमानों पर दुनिया भर में यात्रा कर रही थी। लेकिन आज दो लोग अस्पताल के बरामदे में जाने में मेरी मदद कर रहे हैं।


आज किसी भी सुख सुविधा ने मेरी मदद नहीं की। मुझे तकलीफ से आराम नहीं। लेकिन कुछ अपनों के चेहरे, उनकी दुआएं, मुझे जिंदा रखे हुए हैं। यह जीवन है।यही केवल मेरे जीवन की "सुखी गलियां" थी जो शने शन्ने मुझ से दूर होती जा रही है


आपके पास कितनी भी दौलत क्यों न हो, आप अंतिम समय खाली हाथ ही निकलेंगे। दयालु बनो, उनकी मदद करो जो कर सकते हो। पैसे और पावर वाले लोगों को अहमियत देने से बचें।वह आपको शौहरत दिला सकते है सुख और सकूं नहीं


अपने लोगों से प्यार करो,भले वो आपके लिए भला बुरा कहते/ करते हों। पर आप उनकी सराहना करो कि वे आपके लिए क्या हैं, किसी को दुख मत दो, अच्छे बनो, अच्छा करो क्योंकि वही उनका मन पलट पायेगा और यही करम आपके साथ जाएगा जो सच्चा सुख दिलाएगा


अंत में यह कह के विराम देना चाहूंगा के

सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वह गांव
कभी धूप कभी छांव, कभी धूप तो कभी छांव।

ऊपर वाला पासा फेंके, नीचे चलते दांव
कभी धूप कभी छांव, कभी धूप तो कभी छांव।

भले भी दिन आते जगत में, बुरे भी दिन आते
कड़वे मीठे फल करम के यहां सभी पाते।

कभी सीधे कभी उल्टे पड़ते अजब समय के पांव
कभी धूप कभी छांव, कभी धूप तो कभी छांव


क्या खुशियां क्या गम, यह सब मिलते बारी-बारी
मालिक की मर्जी पे चलती यह दुनिया सारी।

ध्यान से खेना जग नदिया में बंदे अपनी नाव
कभी धूप कभी छांव, कभी धूप तो कभी छांव

सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वह गांव


कभी धूप कभी छांव, कभी धूप तो कभी छांव।


जीवन में सुख-दुःख तो आते रहते हैं। यह जीवन का ही हिस्सा हैं। परन्तु इस संसार में कई ऐसे लोग हैं जो हर परिस्थिति में कोई न कोई अच्छी बात ढूंढ लेते हैं और सुखी रहते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अच्छी चीजों में भी नकारात्मक चीजें देख लेते हैं और दुखी होकर उन्हीं का रोना रोने लगते हैं। लेकिन ये सुख दुख क्या है ? आइये जानते हैं इस कहानी के जरिये :-

सुख दुख क्या है
एक बार किसी देश की सीमा पर दुश्मनों ने हमला कर दिया। देश की रक्षा हित कुछ सैनिकों को सीमा पर भेजा गया। सारा दिन युद्ध होता रहा। शाम होते-होते सैनिकों की एक टुकड़ी बाकी सेना से बिछड़ गयी। वापस अपने सैनिकों को ढूंढते-ढूंढते रात हो गयी। थक जाने के कारण सभी सैनिक वहां एक नदी के किनारे पहाड़ की चट्टान पर आराम करने के लिए रुक गए।


तभी उनमे से एक नकारात्मक सोच रखने वाला सैनिक बोला,

“क्या जिंदगी है हमारी, भूख से मरे जा रहे है और जमीन पर सोना पड़ रहा है।“

इतना सुनते ही उसके एक साथी ने जवाब दिया,

“जब हम छावनी में रहते हैं तो वहां की सुख-सुविधाओं का भोग हम ही करते थे। सुख-दुःख तो जीवन के दो पहलू हैं। जो आते-जाते रहते हैं।”

उस सैनिक की बात का समर्थन करते हुए एक और सैनिक बोला,


“जब हम युद्ध जीत कर अपने देश वापस जाएँगे तो राजा सहित मंत्री, सेनापति और देश के सभी लोग हमारी प्रशंसा करते हुए नहीं थकेंगे।”

लेकिन जिसकी सोच ही नकारात्मक हो भला वह कैसे कोई अच्छी बात कर सकता है। वह सैनिक फिर से बोला,

“वापस तो तब जाएँगे जब हम जिन्दा बचेंगे। अभी तो हमें यह भी नहीं पता कि हम अपने साथियों को ढूंढ भी पाएँगे या नहीं।“

सभी सैनिक इसी तरह सुख और दुःख की बातें कर रहे थे तभी अचानक वहां एक बौना साधु आया और उसने कहा,

“भाइयों, तुम सब यहाँ से मुट्ठी भर छोटे पत्थर लेकर जेब में डाल लेना और जाते समय जब सूर्य शिखर पर होगा तब इन पत्थरों को निकाल कर देखना। तुम्हें सुख और दुःख के दर्शन होंगे।”

इतना कहते ही वह साधु वहां से चला गया। अब सब सैनिकों की बात का विषय वह साधु बन गया था। बातें करते-करते सभी सैनिक सो गए।

सुबह सूर्योदय से पहले ही सब सैनिक उठ गए और साधु के कहे अनुसार सबने एक मुट्ठी भर पत्थर अपनी जेब में डाल लिए। चलते-चलते दोपहर होने लगी।जब सूरज शिखर पर आया तो सबने जेब से पत्थर निकाले तब सब के सब हैरान रह गए।

वो कोई साधारण पत्थर नहीं बल्कि बहुमूल्य रत्न थे। सभी सैनिक ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे कि अचानक नकारात्मक मनोवृत्ति वाले दुखी सैनिक ने उन्हें देख कर कहा,

“तुम लोग खुश हो रहे हो? तुम्हें तो रोना चाहिए।“

“क्यों? हमें क्यों रोना चाहिए।ये तो ख़ुशी की बात है की हम सबको ये बहुमूल्य रत्न प्राप्त हुए हैं।”

उसके एक साथी ने उसी रोकते हुए कहा।

लेकिन वो नकारत्मक और दुखी इन्सान फिर बोलने लगा,

“अगर हम एक मुट्ठी की जगह एक थैला भर का पत्थर लाते तो मालामाल हो जाते।”

“लेकिन क्या तुम उस साधु की बात पर विश्वास करते?”

इतना सुनते ही सभी सैनिक खिलखिला कर हंसने लगे।

सबको साधु की कही बात समझ आ गयी थी कि दुःख और सुख कुछ और नहीं बल्कि हमारे मन के भाव भर हैं बस। एक ही परिस्थिति में कोई सुख ढूंढ लेता है तो कोई दुःख।

सुख दुख कहानी आपको कैसी लगी ?