Tuesday, April 4, 2023

TANAVI ACHIEVING UNAChIEVABLES




My granddaughter Tanvi Grover has given us pride moments to rejoice in her growth under our eyes, Today on 1st May 2023, she has won Miss Teen New York USA, a prestigious beauty pageant crown, making her family proud and satisfied through her early feats.

The transformation from a timid shy girl to an extrovert confident growing youth symbol is present-day, self-propelled Tanvi, she is not only self-reliant to the core but also a very fast learner, be it academic or extra-curricular she always excels with a formidable grasp on the subject. from her very nascent years, she watched lyrical dancing numbers on TV and started copying their moves with her own additions and alterations here and there to make them more attractive.

 She has acquired an inherent passion to learn and express herself with her own exuberance including dancing from her own family straits, which she confides with everyone proudly. her mother shveta also was a very extrovert and confident outgoing girl in her own days.

Tanvi is an aspiring fast-paced personality who is out to grab the world with her leapfrog jumps, she never has any complex while dealing with her mentors, teachers or even high state official and expresses her views vehemently without any inhibitions of her age . 


ADABI SANGAM ------------ TOPIC NO ------------ पवन , हवा , WIND, वायु -----------27-06-2020


                        हवा के साथ साथ 

                              

 गीत तो कितने ही लिख डालो , हवा को जाने बगैर हम कहीं भी खो जाते है 
हवा के साथ साथ , घटा के संग संग , ओ साथी चल , मुझे भी लेके साथ चल 
हवा में उड़ता जाए , मेरा लाल दुपट्टा मलमल का , हो जी हो जी। 
सावन का महीना पवन करे सोर ,

पवन धीरे धीरे बहे तो समीर कहलाये 
थोड़ा तेज चलने लगे तो हवा हमारे बालों को लहराने लगती है 
पत्तों को सहलाने लगती है 
थोड़ा और गति बढे तो आंधी बन जाती है , धुल मिटटी के गुबार , पेड़ो से पत्तों को छुड़ा देना , इंसान को कहीं छुपना पड़ता है। 

आंधी को तूफ़ान बनाने में कुदरत की पूरी ताकत इसके पीछे लग जाती है। 

हमारे शास्त्रों में भगवान् को बड़ी ही खूबसूरती से  परिभाषित किया है कि भगवान् कोई ऐसी शक्ति नहीं है जो ऊपर अकाश में रहती हो और जो हमें किसी भी प्रकार से नियंत्रित करती हो , अगर कोई शक्तियां हैं तो वह उन ग्रहो में है जो हमारी पृथिवी की तरह ही ब्रह्माण्ड में स्थापित है और उनकी उर्जित किरणों और विकिरण से उत्पन शक्ति हमारी पृथ्वी को भी प्रभावित करती है और चुंबकीय सौरमंडल में सब ग्रह एक दुसरे से एक उचित दूरी बनाये हुए है और सालों साल से ऐसे ही नियम से चले जा रहे है , यही वोह शक्ति है जो हमारी समझ के परे हो जाती है यहाँ हमारा विज्ञानं भी ज्यादा कुछ नहीं बता पाता।

इन ग्रहो पे न तो जीवन है न ही कोई ऑक्सीजन , जीवन अभी तक नहीं मिला, लेकिन जिसे हम भगवान् कहते है वोह तो वहां भी है , वहां भूमि है , कहीं कहीं जल भी किसी न किसी गैस के रूप में विध्यमान है, न खत्म होने वाला एक विशाल ब्रह्माण्ड रुपी आकाश ।  हवा का प्रचंड रूप एक तूफ़ान के रूप में देखने को वहां भी मिलता है।

हवा कहाँ से आती है क्या है कैसे चलती है , क्यों चलती है?और हमें दिखाई क्यों नहीं देती ?

यहीं पर जिकर आया की कोई शक्ति तो है जो दिखाई नहीं देती है , उसे शास्त्रों में नाम दिया की यह शक्ति एक नहीं बल्कि शक्तियों का समिश्रित समूह है जिसे जब मिला कर देखा जाये तो " भगवान् का रूप सामने आ गया "अब देखिए भगवान् शब्द कैसे बना।


BH -- भूमि
A ---आकाश
G--- आपस में बाँधने वाली शक्ति "गुरुत्व"गुरुत्वाकर्षण
V---वायु
A ----अग्नि
N -- नीर

अब इसी भगवान् ने अपनी प्रिंट फोटो कॉपी इंसान के रूप में बना कर धरती पे उतारी , इंसान में भी यही मुख्य पांच तत्व ही है जो की भगवान् में है।

हनुमान को हम अंजनी -पवन पुत्र क्यों कहते हैं ? क्योंकि पवन और अंजनी के समागम से उत्पन हुए हनुमान की गति हवा से भी तेज़ थी , वोह इतना तेज़ उड़ सकते थे की जैसे हवा ही उन्हें हर जगह लेकर जाती थी। इसलिए इनको  भगवान् का दर्जा हासिल है और घर घर में इन्हें पूजा जाता है। 

इंसान का शरीर भूमि से पैदा हुई खुराक से बना है , पानी ही इसका शरीर और खून है जो की शरीर का 98 % तक है , हवा यानी की इंसान की सांस इंसान के हृदय का इंजन है और हवा में मौजूद ऑक्सीजन इंसान के शरीर की ऊर्जा। पेड़ पौधे भी हवा से नाइट्रोज़न और कार्बन डाइऑक्साइड लेकर सूर्य की ईंधन में अपना भोजन बनाते है और इंसान को जिन्दा रखने के लिए अर्पण कर देते है

अब इसमें भगवान् शब्द के एक अंश का नाम हवा ही तो है "हवा " पवन , wind , वायु किसी ने इसे आज तक देखा तो नहीं पर महसूस जरूर किया है , इसी हवा रुपी इंजन में हमारी सांस की ऑक्सीजन समाहित है , हवा के जरूरी तत्वों में ऑक्सीजन , नाइट्रोज़न , कार्बन डाइऑक्साइड , और बाकी की प्रकृति से उतपन हुई गैस भी हवा के भीतर समाहित हैं।

जब गर्मी लगने लगती है तो ध्यान जाता है की हवा बंद है ,पसीना नहीं सूख रहा तो पंखा चला कर हवा के झोंके पैदा किये जाते है ताकि हमारे शरीर का बाहर निकला हुआ गर्म पसीना हवा के साथ भाप बन के उड़ जाए और हमे ठंडक देने लगे।

हवा गर्म लगने लगे तो ऐरकण्डीशन या कूलर में से इसे गुजार कर ठंडा करके अपने कमरे में आने देते है पर दिखाई यह तब भी नहीं देती सिर्फ अपने होने का अहसास ही देती है , ईश्वर भी कहाँ दिखाई देता है जो उसका ही एक अंश जो हवा है ,हमें दिखाई देगी ?

जब यही पवन , सूर्य देव की चिलचिलाती गर्मी में तप कर , हलकी हो कर आसमान की तरफ उठने लगती है तो ,समुन्दर से पानी भी चुरा लेती है ,ताकि इतनी भी हलकी न हो जाए की धरती पे लौट ही न पाय। और भाप बन कर काले काले बादलों के रूप में दिखाई देने लगती है , भाप के बदरा घिर आते है , सूर्य को पूरा ढक लेते है लोग झूमने लगते है गर्मी से निजात पाकर।

पवन का वायु चक्र अभी थमा नहीं है , यह उन्ही बादलो को अपने कंधे पे सवार कर चल पड़ती है अगले पड़ाव पर , जो है बर्फीले पहाड़ , ठन्डे पर्बतों से टकरा कर यह पवन अब पुरबा बन के वापिस लौटती है मैदानों की तरफ अपनी अगली मंजिल की और ,तो इसमें समुन्द्रों से चुराई हुई पानी की भाप और भाप पहाड़ो की बर्फ से ली हुई गजब की ठंडक होती है, इस लिए भाप अब  पानी की बूंदों का सागर बन चुकी होती है जो खुद को संभल नहीं पाती और मैदानों पर टूट कर बरस पड़ती है। यह सब हवा की देख रेख में चलता रहता है , हवाएं कभी तेज कभी माध्यम पानी को पूरी धरती पर लेजाकर बिखेरती रहती है।  

कुदरत के नियमानुसार हर साल धरती की धुलाई सफाई का जिम्मा हवा के पास ही तो है , हवा में प्रदूषण बढ़ जाए तो सांस लेना दूभर हो जाता है , पानी से भरे बादल बरस के तेज गति की हवा के सहारे , सारे भूमण्डल को झाड़ पोंछ के साफ़ कर देती है ताकि कुदरत का मेहमान " इंसान और जीव जंतु आराम से रह सके "  जी हाँ हम सब यहाँ मेहमान ही तो हैं जब तक कुदरत चाहेगी हमे दाना पानी और हवा  मिलेगा तभी तक जीवन चलेगा। 

 धुलाई किया पानी , बागों और खेतो में पहुँच जाता है ताकि वनस्पति से ऑक्सीजन उतपन होती रहे ,जीवन व्यापन के लिए अन्न पैदा होता रहे , नदियां लबा लब भर के चलती है पृथिवी की प्यास बुझाने के बाद , बचा हुआ जल हमारी साल भर की जमा की गन्दगी को लेकर वापिस समुन्दर को लौट जाता है ,वहां इसी गन्दगी से एक नया जीवन समुन्दर में भी चलता रहता है वहां भी वनस्पति ,जीव , बैक्टीरिया , मछलियां इसी पानी को फिर से शुद्ध कर देती है।  इस पूरी प्रिक्रिया में सूर्य की गर्मी और हवा के दबाव का ही तो मुख्य संगम है।

लेकिन जब इंसान प्रकृति से छेड़ छाड़ करने लगता है तो इसी मंद बहती पवन का दबाव और मिज़ाज़ भी गर्म होने लगता है , इसी दबाव की वजह से मस्त बहती पवन रूद्र रूप धारण कर लेती है और अपनी तेज गति से समुन्दर में तूफ़ान ला देती है , ऊंची उठती लहरें और तूफ़ान कितने ही प्रकृती के दुसरे नुक्सान भी कर देती है , पेड़ उखड जाते है , घरों की छते कागज की तरह उड़ जाती है , इंसान की बिछाई पूरी की पूरी बिसात , बिजली के खम्बे और तारें पलों में छिन भिन हो कर टूट जाते है। लाखों इंसान इन्ही तूफानों की भेंट चढ़ जाते है , प्रकृति इंसान से अपना बदला उसकी जान लेकर ले लेती है और फिर से चलने लगती है अपनी अगली उड़ान पर।  
हमने हकीमों और डाक्टरों को भी अक्सर वायु विकार का नाम लेते सुना है , वात यानी की वायु दोष हमे कितना तकलीफ देती है जैसे की एसिडिटी , शरीर के सूक्ष्म कोशिकाओं में रुकी हुई हवा इंसान को हज़ारों तरह की तकलीफें ,बदहज़मी जोड़ो का दर्द , दिल का दौरा इत्यादि भी देती हैं । इसी वायु का जड़ी बूटी या दवाइओं से इलाज किया जाता है की वात और पित का समीकरण उचित मात्रा में बना रहे। यह हवा जीवन देती भी और लेती भी है।

वात यानी वायु एक संस्कृत शब्द है ,जहाँ जहाँ वात है वहां वहां वातावरण होता है यानी की हवा का निवास। हवा एक उर्दू शब्द है , हिन्दू हवा को पवन कहते है .बिमारी में जब भी हम हॉस्पिटल में भर्ती होते है सबसे पहले हमारी श्वास नाली में हवा मिश्रित ऑक्सीजन डाली जाती है , क्यों की हवा ही तो हमारे शरीर का इंजन है जो हमारे भोजन को पचा कर हमे ऊर्जा प्रदान करता है,

आज अगर कोरोना की बीमारी का प्रकोप फैला हुआ है तो लोगों की मृत्यु उनके फेफड़े जैसे ही वायरल बलगम से संक्रमित हो जाते और हवा के रास्ते बंद होने लगते है तो , फेफड़ों को हवा न मिल पाने यानी की सिर्फ उनकी सांस न ले पाने की वजह से मौत होती है , उन्ही की मदद को वेंटीलेटर और और कृत्रिम ऑक्सीजन हॉस्पिटल में दी जाती है , इसी से अंदाज़ लगता है की इंसान की जिंदगी में हवा की अहमियत क्या है ?

अब थोड़ा हंसी के लहजे में आप को बताऊँ ,हवा के इतने गुण समझने के बाद कुछ लोग खुद ही हवा में रहने लगते है , अपनी अपनी पतंग भी तो बिना हवा के नहीं उडा पाते यही सोच कर हवाई किले बनाते है , हवा बाज़ी करके लोगो को बेवकूफ भी बनाते है , इसका मतलब सीधा सादा यह है के जैसे हवा दिखाई नहीं देती वैसे ही लोग ऐसी ऐसी बातें करके लोगों को बेवकूफ बना देंगे जो वोह होते नहीं वोह दिखाने लगते है , इसे ही हवा बाज़ी कहते है। मेरी आपसे हाथ जोड़ नम्र निवेदन है की पतंगबाज़ी कर लेना , ठंडी ठंडी हवा के झोंको का पूरा पूरा लुत्फ़ ले लेना पर -----------
भूल कर भी 
हवा बाज़ी न करना। क्योंकि जिसकी शुरुआत हवाबाज़ी  से होती है न उसकी हवा भी जल्दी ही निकल जाती है 

अब किस किस याद का किस्सा खोलूं ,
हवाओं ने कैसे मेरा रुख ही  बदल दिया , 
गुजरी फ़िज़ाओं के बारे में सोचूँ , 
या उन खुशबुओं के बारे में सोचूँ ,
जिंदगी में रचे पलों के बारे में सोचूँ ,
अब जीवन किताब ही  बन गई है यादों की ,
अब उन यादों के सहारे उम्र काटूं 
या हवाओं के साथ खुद को बह जाने दूँ ?

किसी शायर ने मौत को क्या खूब नवाज़ा है :
ज़िन्दगी में दो मिनट कोई मेरे पास न बैठा ,
आज सब मेरी मय्यद को ,घेर कर बैठे जा रहे थे ,
कोई तोहफा न मिला था ताउम्र ,आज तक उनसे ,
और आज फूलों की माला ही माला उनके हाथों में थी,
तरस गया था किसी ने मुझे आज तक एक कपडा भी न दिया,
और आज मेरी अर्थी पे नए नए परिधान ओढ़ाय जा रहें थे ,
ता उम्र दो कदम भी मेरे साथ जो आज तक न चले ,
आज बना के काफिला ,मुझे कंधे पे उठाय चले जा रहें हैं
आज मालूम हुआ की इन्सान की कदर 'मौत 'के बाद ही होती है ?
मैं हैरान हूँ ,मेरी मौत तो मेरी जिंदगी से ज्यादा खूबसूरत निकली ,
कमबख्त 'हम ' तो युही खौफ खाए जा रहे थे ?????





  • SUKH----सुख ---------Adabi sangam -- Meet on --2nd April 2023-----

    सुख ? बनाम दुःख 





    सुख देव और दुःख देव हैं तो जुड़वाँ भाई पर दोनों की फितरत जुदा है और रहते भी अलग अलग है। सिक्के के दो पहलुओं की तरह एक ही सिक्के पर होते हुए भी अपनी अलग अलग पहचान रखते है। लोग सिक्के को हवा में उछाल कर अपना भाग्य आजमाया करते है। सुख दुःख भी कुछ ऐसी ही परिस्थति से पैदा होते है जिनका सीधा तालुक हमारे कर्मो का फल होते है ,


    हम जैसा करते है, जैसा सोचते हैं वैसा ही सुख या दुःख हमारे जीवन में पैदा हो जाता है , चाहे वह आपकी अपनी वजह से हो या ,आपके इर्दगिर्द के माहौल से या हो आपकी औलाद से , आपकी प्रसिद्धि ,धन वैभव भी कभी कभी सुख देते देते दुःख में बदल जाती है ,
    क्यों ऐसे होता है ?आइये थोड़ा विश्लेषण करते है।


    एक बुजुर्ग किसान अपनी खाट पे बैठे हुक्के का मजा ले रहे थे , मैंने पुछा ताऊ कैसी चल रही है जिंदगी सुख से हो न ? भाई तन्ने याद सै मेरे दो बेटे सुखी राम और दुखी राम थे ? मैंने बड़े बेटे का नाम सुखी राम राखिआ था क्योंकि उसके पैदा होते ही घर में खुशीआं बिखर गई थी।


    हमारा पहला बेटा जो होएया था। कीमे दो साल में दूसरा भी पैदा होएया उसने तेरी ताई को घणी तकलीफ देइ , ऑपरेशन करके उसे पैदा करिया डॉक्टरों ने , उसके ढाल चाल देखते होये हमने उसका नाम दुखी राम ही राख दिया।


    दोनों पढ़ने लगे , सुखी पढ़ने में तेज निकला और उसकी नौकरी शहर में लग गई वहां उसने शहरी लड़की से शादी कर ली। वह अपनी बीवी के साथ शहर में ही रहने लगा , अब उसका ध्यान गांव से हट गया न वह हमें फ़ोन करता न कोई हाल चाल पूछता। तेरी ताई ने एक बार उसका नंबर मिलाया तो कहने लगा बहुत बिजी चल रहा हूँ कल फ़ोन करूँगा। वह कल कभी नहीं आया। तो भाई अब नू बता नाम सुखी राम और क्या सुख दिया उसने हमें ?


    दुखी राम तो वैसे ही निकम्मा था बात बात पे लड़ता था और हमारी जमीन की खेती उसी के हवाले थी उसका काम काज सिर्फ खेती करना ही था और वह भी गावं में अपनी बीवी साथ अलग मकान लेकर रहने लगा। उसका मिलना भी बहुत कम था हमसे कभी कभार उसकी बेटी मिलने आ जाती थी और तेरी ताई से खूब बातें किया करती थी, पर अब वह भी पढ़ने शहर चली गई है और हमारे पास अब कोई नहीं आता जाता , सिर्फ एक बोरी गेहूं और चावल और शकर हर साल हमें भेज देता है क्योंकि पंचायत का फैसला है।


    अब तुम ही बताओ दो दो बेटों का हमें क्या संतान सुख मिला ? कितनी मन्नतों से उनको भगवान् से माँगा था , मैंने बचपन में जो सुख पाए वह मुझे अभी तक याद है


    *बचपन के सुख * मित्रों संग खेलते घूमते सुख यात्रा *
    *माँ बाप के सनिग्ध से पाया हुआ सुख *
    *पत्नी सुख *पुत्र सुख *
    बेटी सुख यानी के सब संतान के सुख ,*
    *इन्द्रिये सुख * नौकर चाकर के सुख
    * तन के सुख , बड़ी गाडी बड़ी कोठी के सुख *
    *तरह तरह के स्वादिष्ट खानो का सुख *

    यह सब एक छलावा है ,अस्थाई आभास है हमेशा सुख देने वाले नहीं


    पास सब कुछ होता है फिर भी आप सुखी नहीं हैं तो उस सुख की बुनियाद ही शायद खोकली थी जो सिर्फ ऊपरी चमक थी। यही सोच कर अब हम चुप रहने लगे थे। इसी दौरान तेरी ताई को दिल का दौरा पड़ा और वह चल बसी , सुखी राम ने सिर्फ थोड़ा पैसा भेज दिया और कहने लगा आ नहीं पाउँगा छुट्टी नहीं ले सकता नौकरी चली जायेगी। अरे तेरे को माँ के जाने का तनिक भी सोक नहीं ? नौकरी की चिंता है ? और उसने फ़ोन काट दिया।


    मुझे सदमा लगा मुझे भी दिल का दौरा पड़ गया अब आडोसी पडोसी मुझे शहर के बड़े हस्पताल में ले गए और बोले प्राइवेट हस्पताल है बहुत ज्यादा पैसा लगेगा। पर तेरी जान बच जायेगी। यह मकान गिरवी रख दिया है और पैसा लेकर हस्पताल में जमा करवा दिया। ईश्वर की कृपा से दिल का ऑपरेशन ठीक ठाक हो गया , अब इंतज़ार में थे के छुट्टी कब मिलेगी


    पैसे की बड़ी दिक्कत थी, दुखी राम से तो कोई उम्मीद थी ही नहीं सो ,उसे हमने कोई फ़ोन नहीं किया , लेकिन जैसे ही ताई के मरने की खबर उसे किसी गांव वाले से मिली और मेरे भी हस्पताल में भर्ती की खबर सुनी वह भागा भागा हस्पताल पहुँच गया मेरे गले लग के खूब रोया , माँ को याद करके उसका रोना बंद ही नहीं हो रहा था।


    मैं दुखी राम के ऐसे व्यवहार से हैरान था , जो इंसान खुद हमें पूरी जिंदगी रुलाता रह आज खुद क्यों रो रहा है ? हमारी समझ से बाहर था क्या उसका मन पलट गया था ?


    सुबह हस्पताल से डिस्चार्ज होना था सो फाइनल बिल बन कर मेरे पास आ गया और उन्होंने कहा जल्दी से यह पैसा जमा करवा दो नहीं तो डिस्चार्ज नहीं हो पाओगे। बिल देख मेरे पाऊँ के नीचे से जमीन निकल गई पूरे बारह लाख का बिल था एडवांस जो जमा किया था काट के। अरे भाई हमने हमारी पूरी जिंदगी में इतनी रकम नहीं देखि थी कहाँ से लाऊंगा यह बिल भरने के लिए ?


    दुखी राम वहीँ खड़ा था उस ने वह बिल लेकर बोला , ठीक है जी,मैं बाहर डॉक्टर से बात करके आता हूँ ,लेकिन वह भी पूरी रात वापिस नहीं आया. अब मुझे पूरा डर लग रहा था के अब यह बिल कैसे भरू और सुबह छुट्टी कैसे लू. मेरा और तो कोई है भी नहीं और कोई जमा पूँजी भी नहीं मेरे पास ,इसी उधेड़ बुन में मुझे नींद आ गई और सुबह सिस्टर ने उठाया बाबा तैयार हो जाओ आज आपको वापिस घर जाना है।


    घर ? लेकिन वह बिल ? वह पेमेंट हो गया है। किसने दिया ? यह सब हमें नहीं मालूम लेकिन आप जल्दी से तैयार हो जाओ और बिस्तर खाली करो , दूसरा पेशेंट आने वाला है। नर्स ने जल्दी जल्दी मुझे व्हील चेयर पे बिठाया और लिफ्ट से नीचे लॉबी में लेकर आ गई वहां मेरा बेटा दुखी राम और हमारे गांव का मुखिया साथ में वहां का MP भी खड़े थे।


    सबने मुझे प्रणाम किया मेरा हाल चाल पुछा , मैं अपने बेटे दुखी के आलावा किसी को नहीं जानता था , सब ने मुझे बड़ी इज़्ज़त से गाडी में बिठाया और एक आलिशान कोठी के सामने आकर उनकी गाडी रुकी।


    दुखी तूँ मेरे को कहाँ ले आया है मेरा घर तो गांव में है , बापू वह घर भी आपका ही है और यह भी। इतनी देर में MP साहब बोले आपका बेटा हमारे साथ बिज़नेस करता है मेरी बेटी से इसकी शादी भी हुई है ,यह हमारा दामाद है और आप हमारे समधी ,दुखी राम ने अपनी मेहनत से मेरे काम काज को बहुत बढ़ा दिया है और आज यह यहाँ का पार्षद भी है , यह सुन और सोच कर मेरी आँखें फटी की फटी रह गई , मेरा निक्कमा बेटा "दुखी राम " इतना बड़ा आदमी बन चूका था , जिसकी मैंने कभी उम्मीद भी नहीं की थी ,वही दुखी आज मुझे सुख देने चला आया ?


    बापू अब आप आज से यहीं रहोगे अचानक एक सूंदर सी स्त्री ने कमरे में आते हुए बोला , यही मेरे दुखी राम की पत्नी थी , मुझे कुछ कागज़ देते हुए बोली लीजिये बापू जी आपके मकान की रजिस्ट्री हमने छुड़ा दी है आप जो चाहें इससे करे , हमारे पास ईश्वर का दिया सब कुछ है हमें इसमें कुछ भी नहीं चाहिए , मैं फटी आँखों से कभी रजिस्ट्री देखता कभी उस बहु को जो बहुत पढ़ी लिखी सुघड़ लड़की लग रही थी और यह मेरे गंवार दुखी राम की पत्नी ?


    बापू जी मैंने डॉक्टरी की पढाई की है और उसी हॉस्पिटल में ही काम करती हूँ जहाँ आप एडमिट थे। आप ही के गांव की हूँ और आपके बेटे की स्कूल मेट भी। पिताजी और मैंने दुखी राम को भी यहीं शिक्षा दिलवाई है और वह भी आज एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग का ग्रेजुएट है, हमारे गांव के बहुत बड़े बड़े खेतो पे इन्ही की खेती होती है , यह गांव में अपनी मेहनत और दयालुता के लिए जाने जाते है।


    यह सब क्या बोले जा रही हो तुम दुखी राम के बारे में ? और मुझे कुछ पता ही नहीं ?किसी ने मुझे आज तक बताया क्यों नहीं। मेरी आँखों से आंसू बहने लगे आज अगर इसकी माँ जिन्दा होती तो कितनी खुश होती देख के तेरा दुःख कैसे सुख में बदल गया है और शायद वह इतनी जल्दी हमसे जुदा भी न होती




    अब तू बता बेटा सुखी कौन और दुखी कौन ? सुखी कब लिबास बदल ले और दुखी आपको इतने सुख देने लगे , जिस घर में सुख खुशाली होती है न ,उसी के घर की चौखट पर दुःख बैठा इसी इंतज़ार में होता है के आपसे कोई चूक गलती हो, कोई आपका कर्म उल्टा हो , और उसे घर के अंदर आने का मौका मिले। सुख दुःख सब हमारे आस पास ही है किसे हम पनाह देते है अपने घर में यह हम पर ही निर्भर होता है।


    आपके भीतर का संतोष , एकाग्रता , अच्छा चाल चलन , सवास्थ्य खान पान , बीमारी रहित जीवन इतियादी , जो आपको हर हाल में प्रसन्न रखता है चाहे आपके पास धन हो या नो हो। इस सुख का वास्तव में धन से कोई नाता नहीं है बल्कि धन की अधिकता दुःख का कारण जरूर बन जाता है। यही है वह आत्मिक सुख जिसे खोजते खोजते हम दुखों को गले लगा लेते है।
    अश्कों की बारिश नही करते,जो लोग
    क्या उनके दिलोँ में दर्द नही होते ?।
    मुस्कान है होठों पर, हर दम जिनके
    ।उनकी जिंदगी में क्या गम नहीं होते ?


    होते हैं जनाब कुछ दिखा देते है कुछ फींकी हंसी में छुपा लेते हैं

    सुख हो या दुख में---------
    निभाना हो तो फूलों से सीखो,
    बारात हो या जनाज़ा...
    हर वक्त खिले खिले से रहते है !!


    जब बाग़ से लाये गए तब भी खिलखिला रहे थे ,
    इस्तेमाल हुए अब पाऊँ से मसले जा रहे है फिर भी ,

    बिना गिला किये ------
    सुगंध फैलाये जा रहे है


    लता मंगेशकर जी के आखिरी शब्द मुझे याद आ गए के ,सुख दुःख भी सिर्फ कुछ शब्द है ,जैसे बाकी और शब्द ,सब मिथ्या हैं जिंदगी के लिए कामचलाऊ साधन है।



    इस दुनिया में मौत से बढ़कर कुछ भी सच नहीं है। और दुनिया के दुखों से मुक्ति का एक मात्र सुख भी मौत है ,


    दुनिया की सबसे महंगी ब्रांडेड कार मेरे गैराज में खड़ी है। लेकिन मुझे व्हील चेयर पर बिठा दिया गया।


    मेरे पास इस दुनिया में हर तरह के डिजाइन और रंग के , महंगे कपड़े, महंगे जूते, महंगे सामान है लेकिन मैं उस छोटे गाउन में हूं जो अस्पताल ने मुझे दिया था !


    मेरे बैंक खाते में बहुत पैसा है लेकिन अब यह मेरे लिए किसी काम का नहीं है यह अब सब इन्ही लोगों का है जो मेरी तीमारदारी में लगे है और जो मोटे मोटे टेस्ट और बिल बनाने में लगे है।


    मेरा घर मेरे लिए महल जैसा है लेकिन मैं अस्पताल में एक छोटे से बिस्तर पर लेटी हूं। मैं दुनिया के पांच सितारा होटलों में घूमती रही। लेकिन अब मुझे अस्पताल में एक प्रयोगशाला से दूसरी प्रयोगशाला में भेजा जा रहा है!


    एक समय था, जब हर दिन 7 हेयर स्टाइलिस्ट मेरे आगे पीछे दौड़ते और बालों की सफाई करते थे। लेकिन आज मेरे सिर पर बाल ही नहीं हैं।


    मैं दुनिया भर के विभिन्न फाइव स्टार होटलों में खाना खाती थी। पर आज तो खाने के नाम पे सेलाइन ग्लूकोस ,दिन में दो गोली और रात को एक बूंद नमक ही मेरा आहार है।


    मैं विभिन्न विमानों पर दुनिया भर में यात्रा कर रही थी। लेकिन आज दो लोग अस्पताल के बरामदे में जाने में मेरी मदद कर रहे हैं।


    आज किसी भी सुख सुविधा ने मेरी मदद नहीं की। मुझे तकलीफ से आराम नहीं। लेकिन कुछ अपनों के चेहरे, उनकी दुआएं, मुझे जिंदा रखे हुए हैं। यह जीवन है।यही केवल मेरे जीवन की "सुखी गलियां" थी जो शने शन्ने मुझ से दूर होती जा रही है


    आपके पास कितनी भी दौलत क्यों न हो, आप अंतिम समय खाली हाथ ही निकलेंगे। दयालु बनो, उनकी मदद करो जो कर सकते हो। पैसे और पावर वाले लोगों को अहमियत देने से बचें।वह आपको शौहरत दिला सकते है सुख और सकूं नहीं


    अपने लोगों से प्यार करो,भले वो आपके लिए भला बुरा कहते/ करते हों। पर आप उनकी सराहना करो कि वे आपके लिए क्या हैं, किसी को दुख मत दो, अच्छे बनो, अच्छा करो क्योंकि वही उनका मन पलट पायेगा और यही करम आपके साथ जाएगा जो सच्चा सुख दिलाएगा


    अंत में यह कह के विराम देना चाहूंगा के

    सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वह गांव
    कभी धूप कभी छांव, कभी धूप तो कभी छांव।

    ऊपर वाला पासा फेंके, नीचे चलते दांव
    कभी धूप कभी छांव, कभी धूप तो कभी छांव।

    भले भी दिन आते जगत में, बुरे भी दिन आते
    कड़वे मीठे फल करम के यहां सभी पाते।

    कभी सीधे कभी उल्टे पड़ते अजब समय के पांव
    कभी धूप कभी छांव, कभी धूप तो कभी छांव


    क्या खुशियां क्या गम, यह सब मिलते बारी-बारी
    मालिक की मर्जी पे चलती यह दुनिया सारी।

    ध्यान से खेना जग नदिया में बंदे अपनी नाव
    कभी धूप कभी छांव, कभी धूप तो कभी छांव

    सुख दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वह गांव


    कभी धूप कभी छांव, कभी धूप तो कभी छांव।


    जीवन में सुख-दुःख तो आते रहते हैं। यह जीवन का ही हिस्सा हैं। परन्तु इस संसार में कई ऐसे लोग हैं जो हर परिस्थिति में कोई न कोई अच्छी बात ढूंढ लेते हैं और सुखी रहते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अच्छी चीजों में भी नकारात्मक चीजें देख लेते हैं और दुखी होकर उन्हीं का रोना रोने लगते हैं। लेकिन ये सुख दुख क्या है ? आइये जानते हैं इस कहानी के जरिये :-

    सुख दुख क्या है
    एक बार किसी देश की सीमा पर दुश्मनों ने हमला कर दिया। देश की रक्षा हित कुछ सैनिकों को सीमा पर भेजा गया। सारा दिन युद्ध होता रहा। शाम होते-होते सैनिकों की एक टुकड़ी बाकी सेना से बिछड़ गयी। वापस अपने सैनिकों को ढूंढते-ढूंढते रात हो गयी। थक जाने के कारण सभी सैनिक वहां एक नदी के किनारे पहाड़ की चट्टान पर आराम करने के लिए रुक गए।


    तभी उनमे से एक नकारात्मक सोच रखने वाला सैनिक बोला,

    “क्या जिंदगी है हमारी, भूख से मरे जा रहे है और जमीन पर सोना पड़ रहा है।“

    इतना सुनते ही उसके एक साथी ने जवाब दिया,

    “जब हम छावनी में रहते हैं तो वहां की सुख-सुविधाओं का भोग हम ही करते थे। सुख-दुःख तो जीवन के दो पहलू हैं। जो आते-जाते रहते हैं।”

    उस सैनिक की बात का समर्थन करते हुए एक और सैनिक बोला,


    “जब हम युद्ध जीत कर अपने देश वापस जाएँगे तो राजा सहित मंत्री, सेनापति और देश के सभी लोग हमारी प्रशंसा करते हुए नहीं थकेंगे।”

    लेकिन जिसकी सोच ही नकारात्मक हो भला वह कैसे कोई अच्छी बात कर सकता है। वह सैनिक फिर से बोला,

    “वापस तो तब जाएँगे जब हम जिन्दा बचेंगे। अभी तो हमें यह भी नहीं पता कि हम अपने साथियों को ढूंढ भी पाएँगे या नहीं।“

    सभी सैनिक इसी तरह सुख और दुःख की बातें कर रहे थे तभी अचानक वहां एक बौना साधु आया और उसने कहा,

    “भाइयों, तुम सब यहाँ से मुट्ठी भर छोटे पत्थर लेकर जेब में डाल लेना और जाते समय जब सूर्य शिखर पर होगा तब इन पत्थरों को निकाल कर देखना। तुम्हें सुख और दुःख के दर्शन होंगे।”

    इतना कहते ही वह साधु वहां से चला गया। अब सब सैनिकों की बात का विषय वह साधु बन गया था। बातें करते-करते सभी सैनिक सो गए।

    सुबह सूर्योदय से पहले ही सब सैनिक उठ गए और साधु के कहे अनुसार सबने एक मुट्ठी भर पत्थर अपनी जेब में डाल लिए। चलते-चलते दोपहर होने लगी।जब सूरज शिखर पर आया तो सबने जेब से पत्थर निकाले तब सब के सब हैरान रह गए।

    वो कोई साधारण पत्थर नहीं बल्कि बहुमूल्य रत्न थे। सभी सैनिक ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे कि अचानक नकारात्मक मनोवृत्ति वाले दुखी सैनिक ने उन्हें देख कर कहा,

    “तुम लोग खुश हो रहे हो? तुम्हें तो रोना चाहिए।“

    “क्यों? हमें क्यों रोना चाहिए।ये तो ख़ुशी की बात है की हम सबको ये बहुमूल्य रत्न प्राप्त हुए हैं।”

    उसके एक साथी ने उसी रोकते हुए कहा।

    लेकिन वो नकारत्मक और दुखी इन्सान फिर बोलने लगा,

    “अगर हम एक मुट्ठी की जगह एक थैला भर का पत्थर लाते तो मालामाल हो जाते।”

    “लेकिन क्या तुम उस साधु की बात पर विश्वास करते?”

    इतना सुनते ही सभी सैनिक खिलखिला कर हंसने लगे।

    सबको साधु की कही बात समझ आ गयी थी कि दुःख और सुख कुछ और नहीं बल्कि हमारे मन के भाव भर हैं बस। एक ही परिस्थिति में कोई सुख ढूंढ लेता है तो कोई दुःख।

    सुख दुख कहानी आपको कैसी लगी ?