Tuesday, December 11, 2012

GOOD DEEDS OF SOME ONE SHOULD NEVER BE FORGOTTON --16102020

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "
रेगिस्तान में दो मित्र अपने गावं को जा रहे थे , बहुत पुराने मित्र थे और दुःख सुख में हमेशा एक दुसरे का साथ देते थे। लेकिन पहाड़ तो तब आन  टूटा जब हर जगह कोरोना का जिक्र होने लगा की किसी से हाथ न मिलाये , कम से कम छे फुट का फासला रखे ताकि एक की बिमारी दुसरे को न लग जाए ?

 सफर में किसी मुकाम पर उनका किसी बात पर वाद-विवाद हो गया। बात इतनी बढ़ गई कि एक मित्र ने दूसरे मित्र को थप्पड़ मार दिया। थप्पड़ खाने वाले मित्र को इससे बहुत बुरा लगा लेकिन बिना

कुछ कहे उसने रेत में लिखा – “आज मेरे सबसे अच्छे मित्र ने मुझे थप्पड़ मारा”।

वे चलते रहे और एक नखलिस्तान में आ पहुंचे जहाँ उनहोंने नहाने का सोचा। जिस व्यक्ति ने थप्पड़ खाया था वह रेतीले दलदल में फंस गया और उसमें समाने लगा लेकिन उसके मित्र ने उसे बचा लिया। जब वह दलदल से सही-सलामत बाहर आ गया तब उसने एक पत्थर पर लिखा – “आज मेरे सबसे अच्छे मित्र ने मेरी जान बचाई”।

उसे थप्पड़ मारने और बाद में बचाने वाले मित्र ने उससे पूछा – “जब मैंने तुम्हें मारा तब तुमने रेत पर लिखा और जब मैंने तुम्हें बचाया तब तुमने पत्थर पर लिखा, ऐसा क्यों?”

उसके मित्र ने कहा – “जब हमें कोई दुःख दे तब हमें उसे रेत पर लिख देना चाहिए ताकि क्षमाभावना की हवाएं आकर उसे मिटा दें। लेकिन जब कोई हमारा कुछ भला करे तब हमें उसे पत्थर पर लिख देना चाहिए ताकि वह हमेशा के लिए लिखा रह जाए।”

जब वृक्ष से पत्ता टूट कर गिरे तो कसूर किसका ?
उस हवा का या उस वृक्ष का जिसने पत्ते को संभाला नहीं और टूट जाने दिया ?
या पत्ता ही उस पेड़ पे लगे लगे इतना थक चूका था की और पकडे रहना मुमकिन नहीं था ?
कसूर किसी का नहीं यह तो प्रकर्ति है जो पैदा होता है उसे जाना होता है , ताकि फिर से नया जीवन आ सके।

इंसान की जिंदगी में प्रीतिदिन कुछ न कुछ ऐसा ही होता रहता है और हम उसका दोष दूसरों पे डाल कर खुद को सही साबित करने में लगे रहते हैं। प्रीतिदिन इतनी गलत फहमियां उठती हैं क्या हम सब को अपने भीतर समा लें ?
जी नहीं , या तो इसे हल कर लो , या छोड़ दो , नहीं छोड़ सकते तो इनके साथ जीना ही सीख लो , यही जिंदगी  का प्राणायाम है अच्छी हवा को भीतर लो और गन्दी हवा को बाहर फेंक दो ,

चीनी और नमक दोनों को मिलाकर चीटियों के पास रखो , वह नमक को छोड़ सिर्फ चीनी ही उठाएंगी , तो फिर इंसान जब इंसान से व्यवहार करता है तो उसकी अच्छाइयों से अधिक उसकी बुराईआं ही क्यों याद रखता है ? हमारी समझ क्या इन चीटियों से भी गिरी हुई है ?

किसी से आत्मिक रिश्ता बनाने से पहले उस रिश्ते की बुनियाद को अच्छी तरह समझ लेना , और फिर इस आत्मिक रिश्ते को एक छोटी सी गलतफ़हमी में जल्दबाजी में तोड़ मत लेना , हो सकता है सारी गलती आपकी ही हो ?



हो के मायूस न यूं शाम से ढलते रहिये ,
ज़िन्दगी भोर है सूरज सा निकलते रहिये ,
एक ही पाँव पे ठहरोगे तो थक जाओगे ,
धीरे-धीरे ही सही पर ,राह पे चलते रहिये .

मुश्किलों से भाग जाना बहुत आसान होता है ,
हर पहलु ज़िन्दगी का इम्तिहान होता है ,
डरने वालो को मिलता नहीं कुछ ज़िन्दगी में ,
लड़ने वालो के कदमो में ही जहाँ होता है॥

कोई भी लक्ष्य बड़ा नहीं ं,
जीता वही जो डरा नहीं.....जो जीता वही ******

सिकंदर होता है ?*










Thursday, November 29, 2012

" ADABI SANGAM-- 26-10-2020 --GHAR"-------- HOME,----मकान------- जब" -घर"-बने- तो -"-आलिशान "होना चाहिए --------------------------



मकान जब" घर"बने तो "आलिशान "होना चाहिए 




जब मैं छोटा बच्चा था , गावं में पापा से बहुत कुछ सीखा करता था , वह कहते थे " बचपन से लेकर जवानी के ख्वाबों को बुढ़ापे तक एक सीमेंट ईंटो से चुनी दीवारों से घिरे भूमि के एक प्लाट को मकान कहते हैं और लोग इसमें कई पीढ़िया गुजार देते थे लेकिन कभी उदास नहीं होते थे , जो था उसी में संतुष्ट रहते थे। तुम हर बार बड़े शहर बड़े मकान की बात क्यों करते हो ?

लेकिन पिताजी को अहसास ही नहीं की आज की पीढ़ी इससे अलग सोचती है , की मकान जब घर बने तो महल सा होना चाहिए ,

हम सब की दिलों में कुछ कर गुजरने के अरमान ही तो होते है
हमारे आशियाँ घर बनने से पहले मकान ही तो होते है ,

वोह मकान जहाँ जीत का हर अहसास , '
दिल में ही दफन हो जाए
मकान जो शुरू होते ही बस खत्म हो जाए ,
मकान जहाँ तुम्हारा कोई सपना ,
सच होता हुआ नहीं लगता ,

चाहे जितना भी किराया दे दो ,वह अपना नहीं लगता ,
मकान वह जहाँ हर एक पल की जद्दोजेहद ,
और एक पल का भी सकूँ न हो सोने में।
मकान वह बला है जिसे देख हमें भी रोज लगे,
की अब तो एक अपना घर भी होना चाहिए


एक घर जो तुमेह कुछ कर दिखाने का जनून दे सके ,
घर जो फक्र से तुमेह अपना कहने का गुमान दे सके ,
घर ऐसा की जहाँ हर पल लगे की इस जैसा कहीं भी नहीं
घर जैसा मेरा है किसी और का नहीं
ऐसा तुम्हारे दिल को हमेशा हर पल लगना चाहिए

और मकान जब घर बने तो महल लगना चाहिए
घर वह होता है जिसमे तुम्हारे जश्न की महफ़िल
और तुम्हारे हिस्से की तन्हाई सिमट जाए।

यह घर हो सकून का इसमें हर इंतेज़ाम होना चाहिए ,
यह घर आपके ख्वाबो का अक्स होना चाहिए

आपके ख्वाबों की तरह इसे भी आलिशान होना चाहिए ,
खिड़कियां इसमें इतनी बड़ी की आस्मां के मंजर नजर आएं ,

ऐसा लगे की तारे घर में उत्तर आये हो ,
दीवारे इतनी मजबूत की दुनिया का हर घाव झेल सके ,

जगह इतनी की बच्चे जब भी जितना चाहें हर खेल वो खेल सकें ,
घर वह जहाँ रहने में हर पल ऐसा लगे तुम मेह्फूस हो आजाद हो ,


इसकी ख़ूबसूरती भी ऐसी हो की हर नजर इसकी मेहबूब हो ,
जहाँ नई हसरतों के साथ पुरानी यादें भी मेहफुस हों ,
जहाँ कुछ हिस्सों में आज ,तो कुछ में गुजरा हुआ पल लगे ,
मकान जब घर बने तो महल सा लगे

मकान जीत की शक्ल लेता है तब ,
तुम पूछोगे जरूर इस ख्वाबों की सल्तनत को,
हकीकत का लिबास कब पहनाओगे ,?
जिसकी हर कविता में जो बात करते हो ,

वह खास घर कभी बनाओगे भी क्या ?
मेरा जवाब है मेरा वक्त तो आने दो ,

जमाने बाद ही सही अपना दिल रखने आ जाना ,
मैं बुलावा भेजूंगा तुम्हे , मेरा घर देखने जरूर आना ,
क्योंकि तब मेरी जुबान पर,
तुम्हारी आँखों के हर सवाल का जवाब होगा ,

मेरा घर ख्वाब शायद न भी हो ख्वाब से बेहतर जरूर होगा ,
जिसकी दीवारे हर रंगों में बोलेंगी , तुम इसे पढ़ने सुनने की कोशिश तो करना।


मेरे पिताजी कहा करते थे , हर इंसान के अरमान होते है , छोटे शहरों से बड़े शहरों को पलायन करते लोग घर से बेघर होकर एक नए घर का सपना लिए घर से निकल पड़ते है , शुरआत भले ही इतनी बड़ी नहीं होती पर धीरे धीरे चीज़ें बड़ी होने लगती हैं , पर साथ ही यह भी समझाया था कीबड़े ख्वाबों के लिए जो चीज़ हाथ में हो उसे छोड़ जो चीज़ हवा में हो उसके पीछे मत भागना , दोनों से ही जाओगे। क्योंकि बड़े ख्वाबों की पूर्ती के लिए बड़े घर , बड़े शहर या बड़े देश की जरूरत नहीं होती। रखनी ही हों तो अपने घर की खिड़कियाँ बड़ी रख लेना बड़े घर का आभास होगा , बड़ी खिड़कियों को बड़े घर की जरूरत नहीं होती।

पर सबकी जिंदगी में कहाँ ऐसे मंजर होते है , हम शहर में रहने वालों के तो कई घर होते हैं ,
पहला घर वोह जिसकी दीवारों को हम कैनवास बना तरह तरह के चित्र बना डाले थे ,
आँगन था इसका इतना बड़ा , तोलिये में लिपटे माँ की कोख से बाहर आये तो यह घर पहले से बाप दादाओं के समय से मौजूद था।

आज भी इस घर ने हमारी किलकारिओं को , लकड़ी वाली काठी की सवारी , तीन पहियों पे दौड़ती साइकिल , पुराने कपड़ो से भरे संदूक और खिलोनो से भरी अलमारी को एक कोने में संजो के रखा होता है।

ममी पापा के पलंग की तकिये वाली दीवार पर उनके तेल वाले सर से उभरी कई तस्वीरें ऐसे लगते थे जैसे कोई मॉडर्न आर्ट की आयल पेंटिंग।

फिर एक और घर जहाँ दिवाली , होली या गर्मिओं की छुट्टिओं में हमारा बसेरा होता था ,
जी नहीं यह कोई होटल , हॉलिडे होम या गेस्ट हाउस नहीं , हमारी दादी नानी का घर होता था ,

जहाँ नानी के हाथों के बने स्वेटर पहन धमाचौकड़ी किया करते , और दादी के हाथों बना अचार लेकर वापिस लौट आते थे।

फिर जिंदगी को जो अगला पड़ाव मिला उसे घर कहें या कुछ और अपने आप में यह बड़ी उलझन है , यह घर होता है आपके किसी दोस्त या सहेली का ,यह घर आपकी नजर में परफेक्ट घर होता है , क्योंकि आपकी ख्वाइश भी ऐसे ही घर की होती है जैसे की आपके दोस्त का है , उस घर के हर समान को आप बड़े सपनो की दुनिया समझ कर पसंद करते हैं , उसका बड़ा सा लॉन , स्विमिंग पूल , २-३ फ्रिज , बड़ी बड़ी गाड़ियों के लिए गराज , यही आपका भी सपना बन जाता है।

फिर जिंदगी का एक और पड़ाव हमारी राह में आता है , हर खूबसूरत चेहरें को देख दिल के तार बजने लगते हैं , बन के मजनू घर के एक कोने वाले कमरे में रात रात दोस्तों संग रंगीन पार्टी , साथ में खनकते गिटार की तान , शायद कोई फ़िदा हो जाए आप पर ?,

कॉलेज की असाइनमेंट करने के बहाने सभी बेवड़े , पागल आवारा दोस्तों का जमावड़ा यहाँ होता है , यह हमारे उस कॉलेज वाले दोस्त का घर होता है , जो रोज किसी ना किसी वजह से दोस्तों को इकठा कर लेता है वोह निठल्लों का सरदार सिर्फ सब पर अपना रॉब जमाने के लिए , क्योंकि उसके पास कोई काम ही नहीं होता।

जिंदगी फिर बढ़ी कुछ कदम हमारी जवानी की देहलीज़ पर आके रुकी , अब यह महसूस होने लगता है की यह सब बेकार के काम हैं , अपने घर जैसी मौज कहीं नहीं , अपना घर ही स्वर्ग है , लेकिन जीवन में अगर सेट होना है तो कोई काम या नौकरी भी तो करनी पड़ेगी ,

यह बात समझ में आते ही हम निकल पड़ते है फिर एक नए घर की तलाश में , और मिलता है शेयरिंग वाला एक छोटा सा कमरा जो सिर्फ घर का छलावा मात्र होता है घर जैसा कुछ भी नहीं होता , इसमें मिलते है लोग अजीबो गरीब , कुछ दिल के करीब और कुछ मात्र दिखावटी ,, यह छडिस्तान की दुनिया बड़ी नीरस होती है , दीखता है तो केवल बालकनी पर सूखते उनके तोलिये और लाल पीले कछे।

जैसे ही आमदनी शुरू हुई और दाल रोटी की फ़िक्र से ऊपर उठते ही हम मौका देख इस गेस्ट हाउस से निकल लेते है , तब शुरू होता है घर बदलने का एक और सफर , एक मकान मिला किराय पर वोह भी सिर्फ 11 महीने की लीज पर , यानी की इस घर की दीवारों से प्यार होने से पहले इसे छोड़ना पड़ेगा।

अब जिस तरह ग्यारह महीने वाली जिंदगी साल दर साल , नया घर ही ढूँढ़ते रहना किसी का व्यपार पर हम पर इमोशनलअत्याचार , जिस तरह जिंदगी और उम्र चलती चले जा रही है , कहीं किसी मोड़ पर तो रुकना भी है जरूरी , जब आप इस बात को किसी तरह मान लेते है , तब आप ले लेते हैं बीस साल वाली किश्तों वाला एक अपना मकान , EMI के लिए ओवरटाइम भी करना पड़ता है।

जब रात को मकान की दीवारें खाने को पड़े तब तन्हाई के साथी की तलाश शुरू हो जाती है , तभी आती है इक लड़की जो इस चारदीवारी को अपना शहर बना लेती है , जब चलती है उसके पैजब और हाथों की खनकती चूड़ियाँ इस वीराने से मकान को घर बना देती है।

बढ़ती उम्र थोड़ा बांकपन थोड़ी परिपक्वता भी अब हमारा हाथ थामने लगती है , फिर उसी की देहलीज़ पर तोलिये में लिपटा एक नन्हा मुना बच्चा आपकी गोद में आपका बचपन लौटा लाता है ,तब आपको उसमे अपनी ही कहानी का अक्स नजर आने लगता है , जैसे की वक्त की चाल खुद ब खुद आपकी ही कहानी दोहराने लगी हो , वही खिलोने , वही स्कूल , फिर घर वही जिंदगी में कुछ करने की होड़ जिसमे अब हम नहीं हमारा बेटा दौड़ने लगा है.

इतनी तेज गति से चली हमारी जिंदगी को थोड़ा विराम भी तो चाहिए , हमारा वक्त रुकता हुआ नजर आता है इस घर की देहलीज़ को सफ़ेद लिबास में लिपटे चार लोगो के साथ पार कर जाते हैं , घर तो वहीँ रहता है , आप की दिवार पर लटकी एक तस्वीर इस घर के लिए अपने जजबात संजोये दिखती है , जिस घर को खुद के पुरषार्थ से बनाना फिर उसमे एक साथी के साथ नया जीवन पिरोना और फिर सब छोड़ कर चल देना ,

खुशनसीब है वह लोग जो पूरा जीवन एक चार दीवारी में गुजर लेते हैं , सफ़ेद तोलिये से सफ़ेद चादर तक का सफर एक ही घर से कर लेते हैं , घर चाहे रिश्तों का हो या शादी के बाद किश्तों का , घर चाहे दोस्तों का हो या नाना नानी और दादा दादी की यादों का , अपना घर तो अपना ही होता है जो दिल को ख़ुशी और बेइन्ताह सकून चेहरे पे देता है , रात को चैन की नींद और जीने का मकसद देता है ,

घर जैसा मंजर हर किसी का ख्वाब होना चाहिए , मैं तो कहता हूँ हर किसी को अपने घर से प्यार होना जरूरी है , जी चाहता हूँ अपने घर की हर दिवार पर हर जगह अपना नाम लिख दूँ , इस घर के लिए गजलें , गीत , शायरी किस्से तमाम लिख दूँ , सच ही तो कहा है किसी ने दुनिया की पूरी सियासत ही क्यों न मिल जाए , घर जैसी कोई जगह नहीं होती , ईस्ट और वेस्ट होम इज़ द बेस्ट

ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो ...
ऑफिस में खुश रहो, घर में खुश रहो ...
आज पनीर नहीं है ,दाल में ही खुश रहो ...

आज जिम जाने का समय नहीं ,बचा ?
तो क्या ?दो कदम चल के ही खुश रहो ...

आज दोस्तों का साथ नहीं मिला तो क्या ?
घर में , बीवी के साथ टीवी देख के ही खुश रहो ...

घर जा नहीं सकते बीवी बच्चों से मिलने !
तो फ़ोनपे विडिओ चेट कर के ही खुश रहो ...

आज कोई नाराज़ है आपसे ?उसकी बला से ,
उसके इस नज़रअंदाज की अदा में भी खुश रहो ...

जिसे देख नहीं सकते तुम कोशिश कर के भी ?
सुन के कान से ,उसकी आवाज़ में ही खुश रहो ...

जिसे पा नहीं सकते पूरी कोशिश के बावजूद भी तुम ,
क्यों न संजो के दिल में उसकी ,याद में ही खुश रहो?

लैपटॉप गर खरीद न सके तुम तो क्या ,
अपने दादा के पुराने , डेस्कटॉप में ही खुश रहो ...

बीता हुआ कल तो जा चूका है तुम्हारे हाथों से कब का ? ,
क्यों न कर के उसको याद ,उसकी मीठी यादों में ही खुश रहो ...

आने वाले पल का किसी को पता नहीं .है .. मेरे दोस्त ,
आने वाले लम्हों की ख़ुशी ,उसके सपनो में ही खुश रहो ....




ALONE IN THE END "EMOTIONAL DEPARTURE "

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "