Translate

Friday, July 12, 2024

Father / Pita -----------पिता -------बाप --- पापा ----PITR IS PLURAL FOR FOREFATHERS


Father / Pita पिता 



मेरी श्रद्धांजलि अपने जैसे करोडो पापा , ग्रैंड पापा , दादा नानी सबके लिए जो अपने अपने वक्त के अच्छे बेटे , अच्छे पापा ,दादा बने और समाज को पल पल बदलते मूल्यों में डूबते देखा होगा ,आज का एक बालक एक छोटा सा बेटा ही तो कल पापा बनेगा , और दादा  परदादा भी ? 
लेकिन अपने मन में झांकिए क्या आप अपने पापा के अच्छे संस्कारी आज्ञाकारी बेटे थे ? थे तो बहुत बढ़िया , नहीं थे तो अच्छे पापा कैसे बन पाओगे वो संस्कारी औलाद कहाँ से लाओगे ?
नहीं ला पाए तो घर में कुत्ते बिल्लियां ही तो लाओगे उन्हें हमबिस्तर करोगे और संतान से वंचित रह जाओगे , कहाँ मिला पापा बनने का सुख तुम्हे ?, जिम्मेवारी से मुहं छुपा कर कुत्ते बिल्लिओं के पापा बने घूम रहे हो ? पापा क्या होता है वोह अहसास कहाँ से पाओगे ?

पिता,या पापा  यह छोटा सा दो अक्षर का एक sanskrit का शास्त्रीय शब्द है , अपने आप में ब्रह्मांड से भी अधिक विशालता लिए हुए है। इस शब्द का पूर्ण रूप से वर्णन करना असंभव है। पूर्वजों को पित्र और बाप को पिता , और पापा शब्द जो हम दिन रात प्रयोग करते हैं।  हमें पाश्चात्य देशो ने दिया है -- जिसका कोई सांस्कृतिक उद्धभव नहीं है बस एक सुविधा है पिता को बुलाने की। 

हम अक्सर पहुँच जाते है किसी मंदिर में , पंडित जी के पास के हमारे घर धन दौलत सुख क्यों नहीं टिक पा रहा ? कष्ट जाने का नाम ही नहीं लेते कभी कुछ अड़चन तो कभी कुछ व्यपार में घाटा , दिमाग जैसे जड़ सा हो जाता है।  पंडित जी अपने ज्ञान से अपनी पुस्तकों में आपकी कुंडली ढून्ढ कर आपको जो बताते है आप को सहज विश्वास ही नहीं होता के ऐसे कैसे हो सकता है ?

पंडित जी का यह कहना सिर्फ के आप को पितरों का दोष लगा है , यानी के आपने अपने पूर्वजो द्वारा बनाये सिधान्तो को किसी भी कारण वश चाहे अपनी आधुनिकता के चलते या अपनी शिक्षा डिग्रीओं के दम्भ में दरकिनार किया है , अपने पूर्वजो को अपमानित किया है उनके जीते जी उनका और उनके दिए संस्कारों का आधुनकता के झूठे आवरण में तिरस्कार किया है और उनकी दी हुई दीक्षा को अपनी आधुनिक शिक्षा में जोड़ के देखने का ध्यान नहीं रखा। और अपनी जिंदगी को धार्मिक मूल्यों और संस्कारों से हट कर चलने का प्रयास किया है , पैसा तो आप कमा लोगे लेकिन आपकी जिंदगी का बुनियादी संस्कार और पारिवारिक सकून गायब हो जाएगा , इसे कहते है पितृ दोष 


हर घर में  ,वह एक मजबूत शख्सियत  होता है,

 हर परिवार की बुनियाद का सूत्रधार भी होता है 

सभी की खुशियों की परवाह करने  वाला , उनकी 

हर इच्छा को साकार करते करते खुद को मिटा देने वाला 

खुद को भूल बच्चों को समृद्ध बनाते बनाते मरने वाला 

उसके कर्म अनथक प्रयास करने वाली उस काया को 

जिसका जनम दाई माँ के बाद ,सारे जहाँ में उसी का मान है , 

 वो ही हैं जिसे हम पापा कहते हैं। इसी पिता के पूर्वज है हमारे पितृ (पित्र )


माँ का अपमान या तिरस्कार करने वालों को भी पित्र दोष से भी बड़ी  मातृ दोष की सजा से गुजरना  पड़ता है 


लेकिन हैं कुछ अभागे इंसान इस दुनिया में , धन दौलत तो बहुत कमाए 

कुछ घर बसाना ही भूल गए , और कुछ पत्नी पति तो बने पर पिता बनना भूल गए  

कहने लगे हमें अभी जिंदगी में कुछ बनना है , धन नहीं होगा तो घर कैसे बसेगा ?

धीरे धीरे सब कुछ बनने लगा , अच्छा मकान , अच्छा व्यपार , पैसा , फिर पिता बनने का ख्याल आया तो कोई हमउम्र साथी ही न मिला , अगर मिला भी तो प्रकृति के नियमों ने हमें माँ बाप बनने का मौका ही नहीं दिया क्योंकि जब वक्त हमारे साथ था तो , हम धन बटोरने में लगे थे  थोड़ा अमीरी के नशे में ,कुछ और नशे मिला कर लुढ़कते रहे , कुत्ते बिल्लिओं में अपना परिवार खोजते रहे ? आज क्यों रोते हो अपनी किस्मत पर जिसे अपनी धींगा मस्ती और एहम में तुमने खुद ही नेस्ता नाबूत किया है 


आज फिर मेरी ,पलकों पे आंसू हैं , 

आज फिर जज्बात बेकाबू हैं , 
जैसे ही नजर पड़ी है उस दिवार पे टंगी  एक पुराणी तस्वीर पे ,
 गुम सुम  सा फूल माला लिए हाथो में मैं खड़ा हूँ , आंसू तो हैं पर उसे पोछने वाले वो हाथ  नहीं 
बरसी जो थी आज मेरे पिता की ,



मेरे लिए हर रोज ही फादर्स डे (पृत दिवस) है 

यदि आपने अपने पिता की वेदना को समझा है, तो आप भी मुझ से सहमत होंगे ? क्या विचार है आप जैसे कदरदानों के ? पिता क्या कोई एक दिन का दिवस है ?



========================कल सुबह से ही सोशल मीडिया पर लोगों के पोस्ट देखकर लगा कि आज फादर्स डे है, पितृ दिवस है। लोगों के पिता के प्रति उद्गार देखकर ऐसा लगता है कि वाकई फादर्स डे है।


तो क्या इससे पहले अपने पिता को याद करना , उसकी बताई राहों पे चल के आज हम जहाँ तक आ पहुंचे है ?उसका जिक्र भी करना क्या इसी दिन के लिए रिज़र्व है  ? तो क्या इस एक दिन को इसके नाम करके बाकी सारे दिनों को अपने हिसाब धींगामस्ती से जी कर ? 
उस पिता के नाम में कौन से चार चाँद लगा रहे है ? यह मदर फादर डे या  दिन मनाने की प्रथा भी पाश्चात्य देशो की देंन है , हम भारतियों की नहीं 

पिता तो एक ऐसे इंसान को कहते है जिसकी हमें रोज जरूरत है , माँ जनम दाता है तो पिता पालन हार है ,उसके संस्कार , उसके किये हम पर उपकार  , उसे यूँ एक दिन में बांधना पिता के किरदार का अपमान है ---- यह दूसरी बात है के आज की पढ़ी लिखी माताएं पालन हार भी है अलबत्ता बिना पति  के वो भी अधूरी है -- दोनों के साथ होने से ही स्त्री माँ और पुरुष पिता बन  सकता है -- अतैव पुरुष भी बिन स्त्री के अधूरा है और कभी पिता नहीं बन सकता इसलिए हर जगह जहाँ जहाँ संसार रोशन है माता पिता का नाम ही सच्चा दर्शन है बाकी सब किस्से कहानिया ही हैं। 


पिता तो एक उम्मीद है, एक आस है परिवार की हिम्मत और उसका विश्वास है। 

उस पिता को भी हमसे कुछ उमीदें होती है जिसे अक्सर पूरा करने से हम चूंक जाते है 

जीवन भर उसी की प्रेरणा रहती है जिन्दा हमारे दिलों में आखिर तक 
बाहर से बहुत सख्त अंदर से नर्म है पिता ,दिल में दफन होते उसके कई गम हैं।

जिसे न हम पढ़ पाते है न ही समझ पाते है 

पिता हमारे संघर्ष की आंधियों में हौसलों की दीवार है।
तो परेशानियों से लड़ने को दो धारी तलवार भी है।

बचपन में खुश करने वाला खिलौना है ,

नींद लगे तो पेट पर सुलाने वाला बिछौना है।माँ अगर गाडी है तो 
पिता जिम्मेवारियों से लदी गाड़ी का सारथी है। 

सबको बराबर का हक़ दिलाता यही एक महारथी है।


प्रश्न यह है के क्या आप और हम उसके जीवन में हमेशा से उसके साथ न्याय करते रहे हैं ? या अपने पिता को सिर्फ  इस्तेमाल कर अपनी जिंदगी संवारते रहे और अंत में धीरे धीरे उसे दरकिनार कर दिया   ? जिसका जवाब आप खुद ही अपने भीतर  ढूंढिए 

मैं  तो जब जब आइना देखता हूँ खुद की सूरत और सीरत  में उसी का अक्स पाता हूँ 
गोया मैं तो पिता को रोज देखता हूँ और अपना दिन उसी से शुरू करता हूँ 

थोड़ा बचपन में पीछे जाकर देखा तो दिल रो पड़ा 
उसने हमारे लिए क्या क्या न सहा होगा , सुना पढ़ा है उस वक्त के हालात  जब देश का विभाजन हुआ था किस हाल में उसने हमें  पाला होगा , कैसे अपनी और हमारे परिवार की जान बचाई होगी ? कैसे घर से बेघर होकर अपनी दुनिया फिर से बसाई होगी ? जितना सकून वोह हमें दे गए क्या उतना भी हम आज, सकून से जी पा रहे हैं ? शायद नहीं 


आज खुद पिता बने है , हालात फिर से वही रंग लेने लगे है , अपने परिवार को बचाना फिर से एक चुनौती बन रहा है ,तो उसे याद करके सब समझ में आया  है 

कैसे गले लगा लेते थे मुझे जब मैं रोता था , 
मेरी तकलीफ में खुद रात रात जागकर मुझे सुलाते थे 
पलभर में कैसे मेरा दुःख हर लेते थे , अपने प्यार भरे आलिंगन से 

लेकिन कितना मुश्किल होता है अपने बच्चों को अपने जैसा बना पाना , 
सामाजिक  बुराइयों से बचाते हुए ,उनमे वो संस्कार भर पाना 
आज पापा बन के सब समझ में आया है 


जब तक था पापा का साया हमारे सर पे , हम निडर और मस्त थे 
 पापा ,आप की तस्वीर आज भी मुस्करा रही  है पहले की तरह ,
हम जीवित तो है फिर भी  रो रहे हैं अनाथों की तरह 
  

कैसे मिलके  रहना है भाई बहनो को , कितना व्यथित रहते  थे आप ,हम सब को लेकर , 
आज जब खुद पे आन पड़ी है पापा --तो जाना ----कितना मुश्किल होता है पारिवारिक सामजस्य बना पाना 
पापा बनके आज ,आपका दुःख ,अब समझ  में आया है 

यही किस्से हर घर के है , नही करते कदर कोई भी उस माँ बाप की उनके जीते जी , 
उनके जज्बातों की उनके तजुर्बों की 
बाद में  जाने के उनके ,तारीफों के कसीदे पढ़े जाते हैं , 
घड़ियाली आंसुओं से उनके  श्राद मनाये जाते  है 


मेरी कहानी शायद थोड़ी आज से भिन्न है , वो मेरे पापा ही नहीं सच्चे मित्र भी थे , मेरे सलाहकार ,मेरे गुरु , पग पग पे मेरे मार्ग दर्शक बनके  साथ चला करते थे 
पिता वोह जो मेरी ताकत थी , उसी से मेरी ,दुनिया में अभिवयक्ति थी , ऐसा इस बदलती दुनिया में ,आज कल के पापा अपनी औलाद के साथ कदम नहीं मिला पाते 

जब से छूटा उसकी ऊँगली का सहारा है , सारा जग लगे खारा खारा है 
जब तक थे पापा ,मेरे जीवन में ,अनुशासन था ,  प्रेम के साथ आदर का प्रशासन था 
पिता थे तो उनके घर लौटने का इंतज़ार भी  था , उन्ही से बसा हमारा सपनो का संसार भी था 

आज कल के पापा घर से कहाँ जा रहे है , क्या कर रहे है , किस दुःख से लड़ रहे है , जीने के लिए क्या क्या पापड बना रहे हैं , आज की पीढ़ी में किसी को इसमें कोई रूचि नहीं , सब अपनी स्मार्ट फ़ोन की दुनिया में  खोये है 
हाँ ,जिसपे हैप्पी फादर डे का मैसेज लिख कर लेकिन ,अपना फर्ज पूरा किये जा रहे है 


कैसे बिना पिता के अब हमारा नाम ही बदल गया , कल तक जो आबाद था उनके नाम से आज उनके नाम में स्वर्गीय और हमारे नाम में स्वर्गीय के पुत्र हो गया 
दिल की भावनाएं चीख उठी जैसे कोई जीते जीते  अनाथ हो गया 


जिनके माँ बाप अभी जीवित है ,अगर हमने जीते जी उनके हृदय को ठेस नहीं पहुंचाई है। क्या हम उन्हें वैसे ही समझ पा रहे हैं जैसे बचपन से ही वे हमें समझते आए हैं? क्या हम उनकी उंगली पकड़कर उनका सहारा बन पा रहे हैं जब भी उन्हें इसकी जरूरत पड़ी?
. अगर हां, तो सच में हर दिन फादर्स डे है, वरना यह सिर्फ दिखावा ही है। 


पिता एक घर के छत के समान है। एक पिता का सारा जीवन अपने बच्चो की ख़ुशी के लिए ही समर्पित होता है। तो मै कल का अदना सा उनका एक बेटा ,अपने पिता पर क्या लिख सकता हूं? 

जबकि मैं दुनिया में आया भी नहीं था और वह अपनी जिंदगी के  कई मुकाम पार कर चुके थे जिसका मुझे कोई इल्म  तक नही।

लिखने का शौक  है और मैं इसलिए ही लिखा करता हूं, शब्दो में जन्म देने वाले पिता को समाहित कर पाना मेरे बस की बात नही... एक तरह से यह कह सकता हूं कि जो खुद शब्द, अक्षर, स्याही हो --------उनके लिए क्या लिखा जा सकता है? माँ से नाता तो मेरे जनम के साथ गर्भ से ही जुड़ा था पर पापा को तो मैंने दुनिया में आने के बाद जाना 


जिसके  हाथ की लकीरें घिस  गयी अपने बच्चों की किस्मतें बनाते-बनाते
उसी पिता की आंखों में सजे सितारों जैसे  चमकने वाले आंसू , कितने ही लोगों ने देखे होंगे , बेशक यहाँ इस महफ़िल में हम सब माँ बाप , दादा दादी , नाना , नानी के किरदारों को जी रहे है परन्तु यह भी तो सच है के हम भी जब बच्चे थे और अपनी ममी पापा की ऊँगली पकड़ के चढ़ते हुए जिंदगी में अब इतना सफर कर चुके हैं और आने वाली पीढ़ी को अपने अनुभव और भावनाएं प्रेषित कर रहे हैं 

बस इतना ही लिख पा रहा हूं कि क्या लिखूं पिता के संघर्षों की कहानी नही लिख पाऊंगा, बिन पापा के सहारे माँ भी कहाँ मुझे इतना दुलार का समय दे पाती ? माँ भी तो सुरक्षित महसूस करती होगी  जब मेरे पापा का हाथ उसके सर पे था 

यह मार्मिक सफर लिखने की कोशिश भी किया ,तो वक्त कम पड़ जाएगा, लिख भी दिया यदि  पिता के संघर्षों की और माँ की कुर्बानी की कहानी  तो , सच कहता हूं वो एक खुद गीता रामायण सारिका ग्रन्थ बन जाएगा. कोई उसे बिना रोये पढ़ नहीं पायेगा 


जिस तरह फूल मुरझा कर कभी,  दोबारा नहीं खिलते, 
कितना भी कोई जतन करे , इस जनम में बिछड़े माँ बाप 
कभी भी  ,दोबारा नहीं मिलते,

उसी तरह हर बात पर, टोक कर, प्यारे से समझाने वाले,
हर छोटी बड़ी गलती पर, माफ़ करने वाले,
लाड प्यार से रखने वाले  माँ बाप फिर नहीं मिलते||

कदर करनी है तो बाप की तो  इसी जनम में अभी से कर लो ,वरना बहुत  पछतावा होगा , जब वो न होंगे और तुम्हारे पास होंगी सिर्फ उनकी रह रह कर आने वाली  यादें 
आंसुओं की तरह होते है माँ बाप , लुढ़क गए आँखों से इक बार तो ,
पल भर में बन के भाप , हवाओं में कहीं खो जाएंगे , कितना भी याद करो उन्हें तुम ,रो रो कर  , लौट कर  आपके जीवन में  फिर वो कभी नहीं आएंगे 









***************************************************************************************************



  1. बरगद की गहरी छांव जैसे, मेरे पिता।
    जिंदगी की धूप में, घने साये जैसे मेरे पिता।
    धरा पर ईश्वर का रूप है, चुभती धूप में सहलाते,
    मेरे पिता।
    बच्चों संग मित्र बन खेलते, उनको उपहार दिला कर,
    खुशी देते।
    बच्चों यूं ही मुस्कुराओं की दुआ देते मेरे पिता।

    एक बेटी ने अपने पापा के बारे में यह कहा  

  2. बाबुल मोरे! मैं तेरे खेत में धान की पौध जैसी सींची गई,
  3. तुमने अपने पसीने से मुझे सजग रहकर बचाया,पढ़ाया ,
  4. नन्हीं कोंपलों की तरह , रोज रोज निहारा , बढ़ते पाया ।
  5. मेरी हर ख़ुशी के लिए खुद को हर बार झुकाया 
  6. फिर भी जैसे पानी में खड़े होकर किसान धन रोपता है , तुमने मुझे अपने खेत से निकाल  दूसरे खेत में रोपा,
  7. अपने सीने के टुकड़े को खुद से अलग कर , एक दुसरे अजनबी को सौंपा 
  8. फिर भी देखभाल की कि पानी का रेला मेरी नाजुक जड़ों को बहा न दे!
  9. मेरी खुशियां कोई मिटा न दे 
  10. आज मैं मजबूती से पैर जमाए अपने घर में लहलाती फसल-सी हूँ! वैसी ही शिद्दत से देखभाल करती हूँ अपने परिवार की जैसी पापा आप हमारी किया करते थे 
  11. लेकिन मैं आज तक नहीं भूली तुम्हारी पीठ पर पड़ती सर्दी, सुबह सुबह सबसे पहले उठ कर काम पे चले जाना 
  12. गर्मी, हो या तुम्हारे पैरों की गलन वाली बरसात! तुमने पापा कभी कोई दिन आराम  नहीं किया क्योंकि हम सब की परवरिश तुम्हारे कंधो पे थी 
  13. मेरे पापा मेरा गर्व है के तुम्हारी बिटिया हूँ जो तुम्हारा गौरव को सहेजने को ही अपना गौरव समझती है , है, बाबुल मोरे। तुम जहाँ भी हो अपनी दिव्य दृष्टि हम पे बनायें रखना 





सपनों को पूरा करने में लगने वाली जान है इसी से तो माँ और बच्चों की पहचान है।

पिता ज़मीर है पिता जागीर है जिसके पास ये है वह सबसे अमीर है।



उसकी रगों में हिम्मत का एक दरिया सा बहता है।

कितनी भी परेशानियां और मुसीबतें पड़ती हों उस पर
हंसा कर झेल जाता है ‘पिता’ किसी से कुछ न कहता है।

तोतली जुबान से निकला पहला शब्द उसे सारे जहाँ की खुशियाँ दे जाता है
बच्चों में ही उसे नजर आती है जिंदगी अपनी उनके लिए तो पिता अपनी जिंदगी दे जाता है।

**1**

पिता का हाथ थामे कुछ यूं बेफिक्र हो जाते हैं

दुनिया हमारी मुट्ठी में है,

यही हौसला पाते हैं !

कभी मीठा तो कभी कड़वा लगता है जिनका साया

लेकिन याद रहे कि जीवन धूप में बस

यही तो है एक ठंडी छाया !

जताता कभी नहीं जो प्यार और दुलार कभी कहकर

दूर से ही मुस्कुराता रहता वो बस

मन ही मन कुछ सोचकर!

मांवां ठंडियां छांवा कहता ये संसार सब से

मां रूपी वृक्ष को सींचता

वही तो है मौन रहकर न जाने कब से !

पिता वो आसमान है जो हर नन्हे परिंदे के हौसलों की उड़ान है !

वृक्ष भले कितने ही बड़े बन जाएं हम !

सूखने पर जीवन फिर इन्हीं जड़ों से ही पाएंगे हम !

इसलिए सींचते रहना सदा इन्हें अपने निश्छल प्यार से

वरना एक दिन खोकर इन्हे अकेले फंस जाओगे

जीवन की मझधार में !

**2**

चट्टानों सी हिम्मत और जज्बातों का तुफान लिए चलता है,
पूरा करने की जिद से ‘पिता’ दिल में बच्चों के अरमान लिए चलता है।

बिना उसके न इक पल भी गंवारा है, पिता ही साथी है, पिता ही सहारा है।
न मजबूरियाँ रोक सकीं न मुसीबतें ही रोक सकीं, आ गया ‘पिता’ जो बच्चों ने याद किया, उसे तो मीलों की दूरी भी न रोक सकी।

न रात दिखाई देती है न दिन दिखाई देते हैं,
‘पिता’ को तो बस परिवार के हालात दिखाई देते हैं।

परिवार के चेहरे पे ये जो मुस्कान हंसती है,
‘पिता’ ही है जिसमें सबकी जान बस्ती है।

***

हर दुःख हर दर्द को वो हंस कर झेल जाता है,
बच्चों पर मुसीबत आती है तो पितामौत से भी खेल जाता है।

कमर झुक जाती है बुढापे में उसकी सारी जवानी जिम्मेवारियों का बोझ ढोकर
खुशियों की ईमारत ड़ी कर देता है ‘पिता’ अपने लिए बुने हुए सपनों को खो कर।

बेमतलब सी इस दुनिया में वो ही हमारी शान है,
किसी शख्स के वजूद की ‘पिता’ही पहली पहचान है।

बिता देता है एक उम्र औलाद की हर आरजू पूरी करने में
उसी ‘पिता’ के कई सपने बुढापे में लावारिस हो जाते हैं।

**3**

बच्चों के भविष्य की चिंता करें,

उन्हें पिता कहा जाता है ।

अपने शरीर की तकलीफों को ना बताएं,

उन्हें पिता कहा जाता है।

घर मां चलाती है ,लेकिन जो घर बनाए ,

उन्हें पिता कहा जाता है ।

समाज एवं रिश्ते में सामंजस्य स्थापित करें ,

उन्हें पिता कहा जाता है ।

कंधे पर मेला दिखाएं ,

उन्हें पिता कहा जाता है ।

जो जीवन के सिद्धांतों को बताएं ,

उन्हें पिता कहा जाता है।

जो दुनिया से जाने के बाद हमेशा याद आते हैं ,

उन्हें पिता कहा जाता है।













Saturday, May 4, 2024

Adabi sangam -------meeting Number -524 -------on Saturday, ------August 26, 2023,-----5 PM---TOPIC-- -----ज़िद्द -- चांदनी


ज़िद्द -- चांदनी 
***********************

Adabi sangam meeting Number -524 
on Saturday, August 26, 2023, 5 PM







ज़िद्द थी हमारी भी की , के जिंदगी में  कुछ तो ऐसा कर जाएँ 
चाँद पे भले न पहुँच पाएं इस जनम,चाँद सी मेहबूबा तो ले आएं 

चांदनी में जिसकी नहा जाए दुनिया सारी, सब आएं उससे मिलने ,
लेकर बेशकीमती तौफे , जुबान से जिनके सिर्फ कसीदे निकलें 
क्या चाँद का टुकड़ा ले आये हो , और हम सुन फूले न समायें 

कुछ विचार कर ,भेज दिया हमने भी अपने चंदरयाण को ,लाने
और चांदनी थोड़ी सी अपने मेहबूब के ख़ूबसूरती के लिए 

दिल तो तब टूटा , जब चंदरयाण ने कुछ तस्वीरें भेजी
देख चाँद के गालों पे पड़े , गहरे पाताल  नुमा गड्ढों को

वह भी  , तमतमा गई , देख  इतनी भयानक तस्वीर से 
बोली तो क्या आप हमें ऐसा बनाना चाहते थे ?

 , जानम हम कोई चाँद पे पहले कभी गए थे क्या 
अपनी ग्रहस्थी जो बचानी थी,तौबा की हमने भी
खफा मत होना प्रिय आज से  आपकी तुलना
चाँद की बजाय सिर्फ उसकी रौशनी से करेंगे

पर दिल तो बड़ा मायूस है तब से , सारा गुड़ गोबर हो गया 
लेकिन सच बताएं वैसे हम भीतर से कुछ कुछ  खुश भी हैं ,
हमारे विज्ञानिको की मेहनत लगन और उपलभ्दी पे
कम से कम हज़ारो सालों से पला हमारा भरम तो तोडा 

दूसरा ,अब हर छोटा बड़ा आशिक 
अपनी मेहबूबा को चाँद के नाम पे
बेवकूफ नहीं बना पायेगा
न ही पढ़ेगा कोई गीतकार चाँद के कसीदे 

लेकिन ऐ ज़िंदगी....!अपनी जिद्द में 
यह क्या दिखा दिया तूने ,हमें मरने से पहले ?

एक चाँद ही तो था जिसपे ,फ़िदा हमारा प्यार रहता था ,
चंदा मामा की कहानियों से बच्चों का दिल भी गुलजार रहता था

अब बच्चों ने भी चन्दर यान का लाइव टेलीकास्ट देखकर बोला
दादू अब और गप मत लड़ाओ ,सब जान गए है हम ,

वहां कुछ नहीं सिवाय ठण्ड , गड्ढे और पथरों के.
अब बताओ हमसे तो बच्चों का साथ ही छिन गया 
कोई कहानी सुनने को ही नहीं आता , कहते है 
आपकी कहानियां सब झूठी हैं 


वैज्ञानको की जिद्द थी चंद्रयान वहां गया भी तो
कितने डर डर के ? उतरने का खौफ्फ़ इतना के 
,एक तो पहुंचा ही नहीं, गिर कर रस्ते में फ़ना हो गया 

दुसरे चंदरयाण ने जो भारत का था तो एक ही झटके में ,
एक मामा भांजे का रिश्ता था वह भी हमसे छीन लिया

मुश्किलों के सदा ,हल तुमने दिया है आगे भी देना दाता
कहीं इस नई दौड़ में हम भटक कर , थक कर टूट  न जाएँ ...!

पहुँच तो गए हैं हम वहां ,अब थोड़ी और जिद्द दिखानी होगी ,
जिस चाँद पे 
रख दिया है पाँव हमने , हिम्मत भी दिखानी होगी 

अब जल्दी से वहां बच्चों की असली ननिहाल बसानी होगी
जो सच्चाई अभी तक कहानियां थी ,फिर से सुनानी होंगी 

एक बार चाँद पे हमारी कोठी /मकान बन जाए, 
नई दुनिया बसानी होंगी ,तब कहीं फुर्सत से बैठे और ,
फिर किसी सूरज किसी और चाँद पे कवितायें लिखें
एक नए चाँद और उसकी चांदनी को खोज लाएं 

दुआ देता है दिल से ,मेरा दिल सबको
इस नए आगाज़ में , मिले नया आज
और मिले बेहतर कल सबको !!!


लेकिन इस जिद्द में भी एक डर छिपा है ,
के न मालूम कल क्या हो जाए ? कोई एलियन या कुछ और ?
अभी अभी देखा दुनिया में तबाही का मंजर ,
जहाँ कभी बरसात भी ,होती न थी
मक्का मदीना में भी आई प्रलह को , 
क्या इसका हमारी जिद्द से कोई नाता तो नहीं ?


शिमला में पहाड़ो का यूँ फिसल कर दरकना 
भव्य इमारतों का पल में जमींदोज़ होना
चाँद की चांदनी खोजने जो निकले थे, 
चांदनी रातो में जो धरती के समुन्द्रों में उफान आता था , 
वो तो पहले समझ लेते , कुछ तो है 
अपनी जिद्द में न जाने क्या क्या ,
इस धरती पे हम खोने लगे हैं


"जीवन"शतरंज के"खेल"भी एक जिद्द की तरह है..!
और..🤞
यह"खेल"हम"ईश्वर"के साथ खेल रहे है..!!
"हमारी"हर"चाल"के बाद..!
"अगली"चाल"वह"चलता है.!!
"हमारी"चाल हमारी"पसंद"कहलाती है..,!
और..👌
"उसकी"चाल परिणाम"कहलाती है..!!

तभी अगर जिद्द निभानी है तो अपने किरदार को बखूबी निभाओ
मानवता का कोई नुक्सान भी न हो , और पर्दा गिरने के बाद भी
तालियां खूब बजती रहे


एक बड़े ज्ञान की बात भी सुनलो ,
ज्ञानी मित्र ना राखिये, वो भाषण देते झाड़,
राई को परबत करें,तिल को करते ताड़ !
मित्र तो ऐसा चाहिये,जिसकी जिद्द से
चिन्ता भी जाए हार
लड़ना झगड़ना काहे को ,जब देखे दुख यार का, 
दिखा के थोड़ा प्यार, झट ले आए बोतल चार !!


कुछ लोग लड़ें धन के नाम पर 
कुछ लड़ें जाति के नाम

सिर्फ पति पत्नी ही हमेशा लड़े ,निष्काम  
जो न देखें कोई 
धर्म न देखे कोई काम
निस्वार्थ भाव से , बेवजह लड़ते रहें जो हरदम 
 होके 
सिर्फ अपनी जिद्द के गुलाम


"कुछ"पाना"जीत"नही है..!
और...🤞
कुछ"खो"देना"हार"नही है..!!
केवल"समय"का"प्रभाव"है..!
और..👌
*"परिवर्तन"तो समय का" स्वाभाव है

कहीं मिलेगी जिंदगी में चांदनी सी प्रशंसा तो,
कहीं प्राकृतिक नाराजगियों का बहाव मिलेगा l


कहीं मिलेगी सच्चे मन से दुआ तो,
कहीं भावनाओं में दुर्भाव मिलेगा

तू चलाचल राही अपने कर्मपथ पे, अपनी ही धुन में 
जैसा तेरा भाव ,वैसा प्रभाव मिलेगा।


चाँद पे पहुंचने की जिद्द ने किया कमाल है
सफलता भी मिली तो जिद्द से 

जो "प्रेरित और उत्साहित" होकर...
उसे पाने के लिए दिन - रात
अपने कार्य में जुटे रहते हैं...!!!सफलता भी वहीँ है 


मिलकर बैठ गये मजलिस में जुगनू सारे ;
मुद्दा था हमारी फीकीं पड़ी चमक कैसे वापिस पाई जाये ?
अब तो चांदनी भी फीकी हो गई है चंदरयाण के उतरने से
गोया ऐलान पास हुआ क्यों ना सूरज को ही बदल दिया जाये ?
ऐलान नशे में था , कोई जिद्द नहीं ,सो कभी पूरा न हो सका 


"दुनिया"का"सबसे"अच्छा"तोहफा" वक्त है..!
क्योंकि..👍 इसमें किसी की जिद्द नहीं चलती 
जब"आप"किसी को अपना"वक्त"देते है,
तब..👌
आप"उसे"अपनी"जिंदगी"का वह "पल"देते है,
जो"कभी"भी"लौटकर"नही आता..!!


झूठ"कहते"है लोग की..!
"संगत"का"असर"होता है..!! 
*"आज"तक.
मैंने तो पाया है के
ना"काॅटों"को"महकने"का"सलीका"आया है..!
और...👌
ना"ही फुलो"को"चुभना"आया है..!!

मैंने तो अक्सर इंसानो को अपनी में जिद्द में तिल तिल मरते पाया है 



मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी 
सिर्फ तुम ही क्यों ,
आते नहीं ?


कभी आ भी जाना ,बस वैसे ही जैसे
परिंदे आते हैं आंगन में , रात को आ जाती है चांदनी
या अचानक आ जाता है
कोई झोंका ठंडी हवा का ,जैसे कभी आती है सुगंध
पड़ोसंन की रसोई से......स्वादिष्ट व्यजनों की 


मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी 
सिर्फ तुम ही क्यों ,
आते नहीं ?


आना जाना मासूमीयत से ,जैसे बच्चा आ जाता है
मेरे बगीचे में गेंद लेने ,या आती है गिलहरी पूरे
हक़ से मुंडेर पर, ताकती है मेरी रसोई में
के आज क्या क्या बना है ? ऐसे ही तुम भी कभी झांको हमारी खिड़की से 


मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी 
सिर्फ तुम ही क्यों ,
आते नहीं ?


जब आओ तो दरवाजे ,पर घंटी मत बजाना
बेतकुलफ पुकारना ,मुझे वही पुराना नाम लेकर,
अब मैं वकील नहीं , न ही तुम कलेक्टर
वो एहम वो बहम अपनी जवानी की जिद्द का
वो सारा सामान वहीँ छोड़ के आना 


मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी 
सिर्फ तुम ही क्यों ,
आते नहीं ?

मुझसे समय लेकर भी कभी मत आना
हाँ , लेकिन अपना पूरा समय साथ ले आना
फिर अपुन दोनों के समय को जोड़,
छल कपट अहंकार जिद्द को छोड़
बनाएंगे एक प्यारा सा झूला
अतीत और भविष्य के बीच झूलता हुआ, चांदनी रात में
उस झूले पर जब हम खूब बतियाएंगे
तो देखना क्या क्या खोया हुआ वापिस पा जाएंगे


मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी 
सिर्फ तुम ही क्यों ,
आते नहीं ?


और जब लौटो तो थोड़ा ,मुझे भी ले जाना साथ
थोड़ा खुद को छोड़े जाना मेरे पास
एक बहाना तो होगा ,फिर वापस आने के लिए
मिल बैठेंगे सुखद चांदनी में एक बार फिर से ,
खुद को एक-दूसरे से पाने के लिए।


मित्रों क्या जिद्द है तुम्हारी ,भी 
सिर्फ तुम ही क्यों ,
आते नहीं ?


चांदनी की ठंडी रात थी , मस्ती में चले जा रहे थे ,
ख़ुशी बड़ी जल्दी में थी , रुकी नहीं 
गम फुर्सत में थे , इत्मीनान से ठहर गए 
लोगों की नज़रों में , फर्क अब भी नहीं है 
पहले मुड  कर देखा करते थे 
अब देख कर मुड़ जाते हैं 

आज अपनी ही परछाई से पूछ बैठे 
क्यों चलती रहती हो अपनी जिद्द में हमारे साथ 
वह मुस्कराई , तुम्हारी जिद्द के वजह से दूसरा और  है भी कौन तुम्हारे साथ ?
बात में दम था सुनकर स्तब्ध रह गए 
हमारी जिंदगी में था बड़ो का सत्कार बच्चों से प्यार 
आज अजीब दौड़ है ,सनक है जिद्द है , और है सिर्फ पैसों का व्य्वहार 
तो साथ कौन होगा ?



"मोतियों"की"तो आदत"है"बिखर"जाने की..!
ये तो बस"धागे"की"भी ज़िद"है कि,🤞
सबको"पिरोये"रखना है..!! जब तक टूट  न जाए 
"माला"की"तारीफ"तो सभी करते हैं,
क्योंकि..👌
माला में पिरोया हुआ " मोती"सबको"दिखाई"देता है..!
"काबिले"तारीफ़ तो"धागा"हैं जनाब,
"जिसने"सबको"जोड़"के रखा है .!!👍 लेकिन दिखाई नहीं देता 

है कुछ ऐसे ही अनमोल मजबूत धागे इस अदबी संगम में भी जिसने हम सबको पिरो के रखा है , कुछ दीखते है और कुछ अद्रश्य हैं 
यही जिद्द बनी रहे इन धागो की , माला के मोती भी यूँ ही जुड़े रहे, खुद भी कभी न हारें , गले का हार  जरूर बने  रहे 

***************************************************************************************

















कल्लन आधी रात को सन्नाटे में अपनी शादीशुदा पड़ोसन को लेकर भागा।
दोनों ने रेलवे स्टेशन के लिए ऑटो लिया।
😘
स्टेशन पहुचने पे भाड़ा देने के लिए जैसे ही कल्लन ने अपना पर्स खोला, तो ऑटो वाले ने मना कर दिया, और बोला: -
😉
इनके पतिदेव भाड़ा पहले ही दे चुके हैं।








"उठो सुबह हो गई चाय नहीं पीनी"
  "नहीं मैंने सुबह की चाय पीनी छोड़ दी है" 
"क्यों "
"जब तुम थी तो सुबह सुबह मेरे हाथ की बनी चाय पीती थी, हम दोनों खुली छत या बरांडे में  चाय की चुस्की लेते थे, परंतु अब नहीं"
" मगर क्यों ? "
"क्योंकि वो चाय नहीं प्यार का ही एक रूप था, तुम्हारे चले जाने के बाद, अब चाय की प्याली का क्या मतलब ? "

 "अरे ये क्या तुम बिस्तर झाड़ रहे हो,चादर ठीक कर रहे हो ?" "हां कर रहा हूं "
"मेरे होने पर तो नहीं करते थे"
"तब मैं यह काम तुम्हारा समझता था,एक बेफिक्री थी । अब तुम्हारे सारे काम में खुद ही करता हूं "
"बहुत सुधर गए हो, अब क्या करोगे ?"
" टहलने जाऊंगा "
"वहीं जहां मेरे साथ कभी कभी जाते थे"
" हां वही ढूंढता हूं तुम्हें ,लेकिन तुम मिलती ही नहीं, निराश होकर लौट आता हूं "
"फिर क्या करते हो ?
"थोड़ी देर बाद नहाने चला जाता हूं "
"इतनी सुबह सुबह पहले तो तुम 12:00 बजे के बाद नहाते थे तुम्हारे साथ साथ मेरी भी तो देर से नहाने की आदत हो गई थी"
"हां मगर अब सुबह ही नहा लेता हूं"
" क्यों ?"
"क्योंकि अब जिंदगी के मायने बदल गये हैं "
" नहाने के बाद क्या करते हो ?"
" पूजा करता हूं भगवान जी और तुम्हारे फोटो के सामने अगरबत्ती जलाता हूं "
"मेरे फोटो के सामने"
" हां " 
"किस लिए  ?"
"भगवान से प्रार्थना करता हूं कि वह तुम्हारी आत्मा को शांति प्रदान करें"और हर जन्म में मुझे तुम ही पत्नी के रूप में मिलो.
 "मेरा इतना ख्याल रखते हो,"
   "इतना प्यार करते हो मुझे"
" पहले भी रखता था बस तुम समझती नहीं थी"
" मैं भी तो रखती थी तुम ही कहां समझते थे"
" हां,कह तो ठीक ही रही हो" 
"अब क्या करोगे ? "
अब योग ,प्राणायाम आदि करूंगा "
 "मेरे सामने तो नहीं करते थे"
" तब मन शांत था, अब मन को शांत करना होता है"
" चाय भी नहीं पीई, कुछ खाया भी नहीं है ,नाश्ता नहीं करोगे ?"
"हां ,10:00 बजे करूंगा"

"अरे, नाश्ते में ये क्या खा रहे हो?"
" जो बना है "
"अब फरमाइश नहीं करते"
" नही अब बहुत कम, हाँ जब कभी तुम्हारी  बनाई डिश की याद आती है तो कभी कभी मांग लेता हूं"
" अक्सर क्यों नहीं ?"
"तुमसे ही तो करता था, क्योंकि तुम पर मेरा एक विशेष अधिकार था इसलिए ,उसमें भी अधिकतर तो तुम बिना कहे ही मेरी पसंद की डिश बना लाती थी"
" तो अब कहकर बनवा लिया करो "
"जो तुम बनाती थीं वो हर कोई थोड़े ही बना सकता है ? वैसे भी मेरे स्वाद और पसंद तो तुम्हारे साथ चले गए" 
"अच्छा,अब क्या करोगे ?"
"अब 2 घंटे मोबाइल चलाऊंगा"
तुम्हारे लिए कुछ लिखूंगा
"2 घंटे ? "
"क्यों ? ऊपर जाने के बाद भी मेरे मोबाइल से तुम्हारा बैर खत्म नहीं हुआ?"
" मैं,शुरु शुरु में ही तो टोका करती थी बाद में तो टोकना बंद कर दिया था"
" हां बंद तो कर दिया था , लेकिन तुम्हारे मन में मेरा मोबाइल हमेशा सौत ही बना रहा, बस दिखावे के लिए चुप रहती थी"

 "अच्छा अब लड़ो नहीं, चलो चला लो लिख लो"

" तुम तो 2 घण्टे से भी ज्यादा देर तक चलाते रहे "*
"हां ,तुम टोकने वाली नहीं थी ना" 
"अच्छा,अब भी उलाहना ,अब क्या करोगे ?"
" अब आंखें थक गई हैं थोड़ी देर आंखों को आराम दूंगा, आंख बंद करके लेटूंगा ।"
" अच्छा है आराम कर लो"

"अरे सोते ही रहोगे 2:30 बज गए तुम्हारा खाने का टाइम तो 12:00 बजे का है उठो खाना खा लो "
"अच्छा क्या बना है ?"
"पता नहीं "
"देखता हूं "
"यह सब्जी, यह तो तुम्हें बिल्कुल पसन्द नही थी "
"लेकिन ,अब पसन्द है "
" कैसे ?"
"क्योंकि जब तुम थी तो मुझे चैलेंज करती थी ना कि मैं ही हूं जो तुम्हारे सारे नखरे बर्दाश्त करती हूं ,मैं चली जाऊंगी तब पता चलेगा "
" अब तुम चली गई अपने साथ-साथ मेरे सारे नखरे और तुनक मिजाजी भी ले गई,अब तो मैं तुम्हारे सारे चैलेंज स्वीकार कर चुका हूं" 
"बहुत बदल गए हो
" गलत ,बदल नहीं गया हूं, असल में जो मैं था वह तो तुम साथ ले गई ,अब तो बस शरीर है सांसे चल रही है ,कब तक चलेंगी,पता नहीं "

"अरे देखो तुम्हारी कामवाली ने तुम्हारी पसंद का लाफिंग बुद्धा तोड़ दिया"
" टूट जाने दो "
"अरे,तुम्हें गुस्सा नहीं आया"
" नहीं अब मुझे गुस्सा नहीं आता"
" क्यों ?"
" क्योंकि गुस्सा तो अपनों पर आता है, तुम तोड़ती तो जरूर आता, इस पर कैसा गुस्सा ?"
" काश ! तुम मेरे होते हुए भी ऐसे ही होते हैं ?"
"हां, मैं भी यही सोचता हूं कि मैं तुम्हारे होते हुए ऐसा क्यों नहीं था ? क्यों हमने जिंदगी के कितने ही अमूल्य पल नोकझोंक अपने ईगो में गंवा दिए ?"

" मुझे याद करते हो ?"
" भूलता ही नहीं,तो याद करने की बात कहां से आ गई, हर समय मेरे चारों ओर जो घूमती रहती हो, "

" रात हो गयी है, चलो अब सो जाओ तुम्हारे सोने का समय हो गया है,"
" अच्छा ठीक है "
 "अरे ! सोते-सोते उठ कर कहां जा रहे हो ?"
"टीवी बंद कर दूँ ,अब तुम तो हो नहीं जो मेरे सोने के बाद बंद कर दोगी "
"मैं तो अब चाह कर भी तुम्हारी मदद नहीं कर सकती, तुम्हें छू भी नहीं सकती । चलो, दूर से ही थपकी देकर सुला देती हूँ "
 "चलो सुला दो, अब सो ही जाता हूं ...."

अगर इस कहानी का एक भी शब्द आपके मन को छुआ है अगर आंखे थोड़ी भी नम हुई हैं,तो अभी सही समय है अपने जीवनसाथी से क्षमा मांगने का अगर आप भी उस पर बात बात गुस्सा करते हैं, गले लगिए और मांग लीजिए अपनी हर गलती के लिए उससे माफी उसके जीते जी उसे बता दीजिए आप उससे कितना प्यार करते हैं,क्योंकि बो भी आपसे असीम प्रेम करती है😢😢