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Wednesday, March 15, 2023

22nd February 2021----- Spirituality --- Defined -

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "


SPIRITUALITY - 




आदरणीय सभापति महोदया नीलिमा मदान  जी , पूजनीय साध्वी चंंद्रा  भारती जी , डॉक्टर राकेश मेहता जी ,  पूजा गुलाटी जी और इस सभा में मौजूद सभी  मेरे पूजनीय विचारक चिंतक और श्रोतागण , आज मुझे आपके बीच अध्यात्म spirituality पर कुछ ऐसा कहने का अवसर मिला है जो मुझे बहुत प्रिय है , इंसान खुद एक जीवित ,चलती फिरती हर वक्त लिखी जा रही वह पुस्तक होती है जिसका लेखन उसके जीवन तक निर्बाध चलता रहता है ,हर दिन हम जो सीखते पढ़ते है वह हमारे मस्तिष्क पटल पर पूरी की पूरी हमारी कर्म पट कथा लिखी जा रही होती है जिसका उपयोग हमारा मस्तिष्क आने वाले हर दिन उस तजुर्बे का हमे ज्ञान देता रहता है ताकि हम गलती न करें , ऐसा ही ज्ञान जिसमे अध्यात्म अपना योगदान कैसे करता है ,मैं आपसे साझा करने की कोशिश कर रहा हूँ 


, कुछ ऐसे वृतांत मेरी लेखनी में ऐसे होते है जो किसी को अप्रिय लग सकते है पर मेरा उनसे नम्र निवेदन है उसे एक घटना के परिवेश में समझे अन्यथा नहीं , जिंदगी में जीविकोपार्जन के लिए हम कुछ भी अपनी मन पसंद का क्षेत्र चुन कर उसमे काम करते है और अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए जब एक ऐसे पड़ाव पर आ पहुँचते है जब हमारी सब इच्छाओं पर पैसा कमाने की लालसा पर लगाम लगने लगती है , किसी भी वजह से मन उचाट होने लगता है उस कोल्हू के बैल की तरह एक ही धुरी पर घुमते हुए , कभी आपने सोचा यह बदलाव अच्चानक  ऐसा क्यों होने लगता है ?

spirituality_is  voice of your spirit ( आत्मा ? एक प्रकार का आंतरिक ज्ञान है जो आत्मा की अपनी आवाज है  
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हम अक्सर किसी की हरकतों को अच्छाइयों ,बुरायिओं को उसके संस्कारों से , 
परवरिश से तोलने लगते है ,
 
बिलकुल यही होता है आध्यात्मिक शक्तिययों का भी जो हमारे संस्कारों यानी के DNA ,RNA में पहले से ही मौजूद रहती है 

जो हज़ारो पीढ़ीओं से एक से दुसरे को मिलती रही है ,लेकिन वह सब एक बंद लाकर में होती है ,अर्थात सारी  सूचनाएं हमारे भीतर मौजूद तो होती है पर हम उसका प्रयोग नहीं कर पा रहे  होते 

जबतक की उचित वातावरण ,शिक्षा ,परवरिश ,सत्संग उसे खोलने को प्रेरित न करे , एक डाकू का  अध्यात्म जागता है तो वह सन्यासी बन कर रामायण जैसा ग्रन्थ लिख देता।  


अध्यात्म एक अदृश्य अनुभूति है जो सिर्फ वही महसूस करता है जो इसके लिए अभ्यास करता है  , खुली आँखों से हम सारी कायनात देख लेते है , पर मन यानी आत्मा को देखना हो तो आँख बंद करनी पड़ती है, 

हमारे मस्तिष्क में उठती हुई विद्युत् तरंगो को अगर साधना हो तो मैडिटेशन और व्यायम ही सबसे जरूरी होता , इसी से शरीर में ओक्सीटोक्सिन और डोपामाइन नाम का फील गुड हार्मोन बनता है वही अध्यात्म का उदगम भी है  


मैं भी एक दिन आँख बंद करके सोचने लगा यह जो टेलीविज़न पर हर रोज कोई न कोई प्रवचन चल रहा होता है जिसमे बाबा जी कहते है , दुनिया में यह प्यार ,मोहब्बत ,रिश्ते नाते सब नश्वर है झूठे है , 

इस लिए अध्यात्म की तरफ लोट आओ ,अध्यात्म यानी spirituality ,मन ही मन  अपने ही दिल से पुछा आज कल प्यार है ही कहाँ ? दिल लगाएं तो किस से ? लगा भी लिया तो टूटना भी  लाजिमी है। 

 दिल ने भी जोर से धमका दिया देख भाई मेरा काम है सारे शरीर को खून सप्लाई करना , मेरे पास फ़ालतू की बातों का टाइम नहीं है ,मैं रुक गया तो तेरी सारी फिलोसोफी , spirituality धरी की धरी रह जायेगी  

,इसलिए नेक कर्म ही करता जा और मुझे भी अपना काम आराम से करने दे , वरना तेरी चिंताओं में उलझ कर  मैं तो अपना काम ही भूल जाऊंगा । 


मेरे अपने छोटे से वकालत के जीवन में भी  आज तक की जो भी मंजिल रही हो जिसमे उतार चढाव , सुख दुःख ,सच झूट , ग्लानि , सफलता और असफलता , रोना हंसना सब मेरे साथी ही तो  रहे है ,

 फिर ऐसा क्या है जो हमारे spirit यानी की आत्मा ने न देखा हो ? फिर भी हम पाप करने से रुके तो नहीं ? कभी कभी आत्मा को भी नकारते रहे चंद पैसों की खातिर ? इस लिए spirituality का जागना आपको आर्थिक हानि देगा। 

एक बार मुझे एक ऐसे सत्य से आमना सामना हुआ , स्थान था दिल्ली का मशहूर छत्तरपुर मंदिर  ,जिनके  पहुंचे हुए बाबा जिनका बड़ा नाम था वह ही इस इतने बड़े छतरपुर मंदिर का साम्राज्य संभाले हुए थे इतने दर्शनार्थिओं की मीलों लम्बी लाईने , बड़ा आश्चर्य हुआ यह सब मान्यता देख कर , उस वक्त किसी केस के सिलसिले में जाना हुआ था , बाबा को सुना भी और उनके विचारों का विश्लेषण भी अपनी आदत के अनुसार करने लगे ,

 लाइन लम्बी होती है उनसे मिलने वालों की भी , लाइन में खड़े खड़े मैंने यह भी ऑब्ज़र्व किया की वह बाबा जी बीच बीच में गिलास में से एक घूँट ले लेते थे ,और उनका सेवक गिलास लेकर खड़ा रहता था फिर थोड़ी देर में उसी गिलास को बाबा जी के सम्मुख कर देता था। 


भक्त जनों ने कहा बोलने से गला रुंधने लगता है इस लिए थोड़ा थोड़ा पानी बाबा जी ले लेते है , मेरे अंदर जिगियासा बनी रही , 

बेशक मेरे मन में यह विचार कौंधने लगा, हो न हो यह बाबा जी अपना स्पिरिट ऊँचा करने के लिए स्पिरिट का सेवन कर रहे हैं. यानी की शराब का ,

 शराब हो या कोई भी ऐसी चीज़ जो किसी स्थिर या सिथिल पड़ी चीज़ को चला सके , जैसे मोटर स्पिरिट यानी के पेट्रोल , जख्मों पे लगाने वाला स्पिरिट टिंक्चर ,इंसानो के झख्म सूखा दे और फिर से चलता कर दे , भूत प्रेत को भी पश्चिम वाले स्पिरिट बोलते है। तो इन सब में असल स्पिरिट क्या हुआ ,जो spirituality का कारक होता है ?यह कोतुहल मेरा अभी तक बरकरार था। 

 बाबा जी  की मजबूरी यूँ समझ गए  हम के जैसे बाबा जी अपनी आँखों से मुझे कुछ समझा रहे हों , ,
इस शरीर की पेशकदमी पे न जा , 
क्या पहना है ओढ़ा है मैंने इस पे ना जा 
" गम इस कदर मिले है जिंदगी में , के घबरा के पी गए ,
कभी ख़ुशी मिली तो चियर्स करके पी गए ,

और कभी अध्यात्म के नाम पर एकाग्रता पाने के लिए भी पी गए  ( spirituality )
यूँ तो जन्म से पीने की आदत नहीं थी मुझे , 
भगतों ने ही भेंट कर दी यह मुसीबत हमे 
देखा इस  बोतल को तन्हा बैठे हुए , 
तो तरस खा के पी गए :"

बड़े बड़े लोग अध्यत्म की बाते करने लगते है दो घूँट अंदर जाते ही ,और ऐसी ऐसी ज्ञान वर्धक बातें जुबान से बाहर आने लगती है , 

किसी ने अगर जुर्म किया हो तो उसकी वहिः परवर्ती बाहर आने लगती है  कारें गाडिया दौड़ने लगती है मोटर स्पिरिट पीकर ,, अच्छा इंसान स्पिरिट पीकर भी अपने स्पिरिट को बचाये रखता है और बुरा इंसान अपना आप खो कर अनाप शनाप बकने लगता है 

, स्पिरिट तो वही है लेकिन हर प्रकार के इंसानो पे इसका असर अलग क्यों होता है ? अचानक बाबा जी के भक्तो ने मुझे झकझोरा ,कहाँ खोये हो साहिब ,चलिए लाइन बढाईये ,आपकी ही नंबर है बाबा जी से मिलने का। 

बाबा जी ने बड़े ध्यान से मुझे घूर कर देखा , आपको पहले कभी नहीं देखा , बाहर  से आये हो ? नहीं बाबा जी मैं तो पैदाइशी दिल्ली का ही हूँ , सिर्फ यह जानना चाहता था की इंसान जब दुखी होता है तो कैसे शान्ति मिलती है ,सुना है  आधात्मिक शक्तिओं को जगाना पड़ता है ,लेकिन कैसे जगाएं उन्हें कोई उपाय तो सुझाइये ?

 आज के शोर शराबे , घर की चिंताओं ,काम की चिंताएं , पैसा कमाने की चिंताए ,इन सब के होते आत्मा को जगाने के लिए  ध्यान योग  कैसे किया जाए ? मन कहीं ठहरता ही नहीं ? तो बाबा जी हमे भी अपनी spirituality को जगाने में स्पिरिट का कुछ  सहयोग मिल सकता है क्या ? 

बाबा जी  भांप तो गए हमारे इशारे को , लेकिन शांत स्वभाव से बोले तुम्हारे पीछे बड़ी लम्बी लाइन है , तुम करते क्या हो ? बाबा जी मैं सुप्रीम कोर्ट का वकील हूँ और यहाँ किसी भक्त के केस के सिलसिले में उसके साथ आया हूँ , 

उसका विश्वास था की उसके साथ एक बार बाबा जी का दर्शन उसके केस को जल्दी व् चमत्कारित ढंग से आसान बना देगा और फैसला मेरे हक में आएगा। विश्वास के बेड़े  हमेशा पार होते है ऐसा मैंने बहुत सुना है बाबा जी ,यह भी कोई आत्मिक शक्ति होती होगी जिसे हम नहीं समझ पाते ?

बाबा जी जो अभी तक मौन हो मेरी बातें सुन रहे थे अचानक ही क्रोधित हो गए और बोले "हाँ जो तुम उलटे सीधे spirituality और spirit के सवाल पूछ रहे थे न , ? आप इज्जत से वकील हो इस लिए आप यहाँ से फ़ौरन चले जाओ , कोई और होता तो  मेरे आदमी नंगा करके डंडों  से पीटते और कहीं जाने लायक ही न छोड़ते , आप मेहरबानी कर के फ़ौरन यहां से चले जाएँ , 

फिर भी मैंने साहस करके पूछ ही लिया बाबा जी जिस spirituality की तलाश में लोग आपके दर्शन करने आते है आप उन्हें गाली और डंडो से भी मरवाते है ? आप खुद सोम रस पी कर spirituality जगा रहे है आपकी अपनी आधात्मिक शक्ति कहाँ है जो आप भी शराब का ही सहारा ले रहे हो ? मुझे भी पिटवा कर देखिये इस मंदिर पर ही बहुत बड़ा कष्ट आ जाएगा।

 मैं  एक आम जन हूँ मेरे अंदर का भी अपना एक अध्यातम है , कोर्ट कचेहरी के आध्यात्मिक के विपरीत माहौल में रहते हुए भी ,  मेरा अपना ईश्वरीय  अध्यात्म अभी मरा नहीं है मैं अपने पूरे विवेक में हूँ ,बाबा के शिष्यों ने हवा का रुख समझते हुए ,मुझे समझा बुझा कर बाहर तक लाकर छोड़ दिया पर मेरे सवाल का जवाब नहीं मिला , आज तो वह बाबा जी जीवित नहीं है पर मेरी तलाश spirituality की बरकरार है आज भी । 

यह जो मैंने बाबा और उनकी शराब यानी के spirit के बारे में जिक्र किया वह मैंने जब अपने कई धार्मिक पुस्तकों का अध्यन किया तो हर जगह शिव जी को भांग का सेवन करते दिखाया गया , 

देवताओं को सोम रस का और राज्योँ महाराजाओं को भी विभिन विभिन नामो से स्पिरिट यानी के अलकोहल का सेवन करते दिखाया गया , तो क्या हमारे मानव निर्मित स्पिरिट अलकोहल का इंसानी आत्मा के स्पिरिट से कोई अर्थ या सम्बन्ध  है ?

 मेरा कोतुहल तब और भी बढ़ गया जब हिप्नोटिस्म का और अधाय्त्म का रिश्ता समझाने की कवायत एक हिप्नोटिक गुरु ने की उसकी जड़ में भी वही। 

मेरे मित्र ने जो सुबह सुबह ही अपनी पत्नी से लड़कर मेरे घर पहुंचा था सकूं पाने के लिए , मेरे पास ही बैठा spiritualism के बारे में मैंने क्या लिखा था पढ़ रहा था , उसका भीतरी ज्ञान जग गया ,

रात को मेरे यहीं से पत्नी को फ़ोन किया और बोला " हाँ जी आज खाने में क्या बना है , पत्नी पहले से ही गुस्से से भरी बैठी थी बोली "जहर" 

मेरे दोस्त ने बोला  अच्छा , मैं तो आज देर से आऊंगा ,तुम खाकर सो जाना और  हाँ  यह पति पत्नी की लड़ाईआं तो होती रहती है तभी तो प्यार बना रहता है , पर तुम भूखी मत सोना जो बनाया है खा जरूर लेना।

 यह जो परवर्ती पति ने सहज होकर दिखाई यह भी spiritualism है जिसने पत्नी को अनायास ही हंसा दिया और सब शिकायत खत्म ,


काफी अध्यन के बाद कुछ और तथ्य हाथ लगे जैसे की इंसान के दिमाग में दो बहुत ही खास भाग है जिसमे जो दायां भाग है ,जिसमे सारी जिंदगी की पूरी सूचनाएं जमा है इसी में सब अध्यात्म और हंसने ,खुश रहने के सूचना और एन्ज़इम्स निहित है  

और ।  बाईं तरफ का हमारा कॉन्ससियस mind  इन्ही सूचनाओं से ही काम चलाता है  ,हार्ड डिस्क  Ram और Rom कंप्यूटर के भी  यहीं काम करते है , जो इन मष्तिष्क के हिस्सों को सही सामजस्य बिठा लेता है वह स्पिरिचुअल हो जाता है। 


हमारी जिंदगी के हर पल में हमारा ब्रेन पूरे शरीर का बजट बनाता रहता है के शरीर के किस हिस्से में कितना नमक , पानी , ग्लूकोस ,और कई तरह के enzymes  हार्मोन्स की जरूरत है ताकि शरीर जीवित रहे और सुचारु रूप से काम करे , इसी में पैदा होती है कुछ इस तरह के हार्मोन्स जो हमारी फीलिंग्स , हंसी ख़ुशी, नफरत, उदासी , शांत या उद्वेलित यह सब इसी का काम है और यहीं से नीव रखी जाती है हमारे स्वभाव की और अद्यात्म की 


, खेल के मैदान में एक हारता हुआ निरुत्साहित थका हुआ खिलाड़ी अपनी पूरी आत्मिक इच्छा शक्ति झोंक देता है और अंत में विजयी हो जाता है , कभी आपने भी अगर किसी प्रत्योगिता को देखा होगा तो अक्सर खिलाड़ी आकाश की और देख कर या घुटनो के बल जमीन पर बैठ कर आँख बंद कर के कुछ क्षण ध्यान लगाता है जिसमे वह अपने ईश्वर यानी के अपनी ब्रह्मांश आत्मा में झांकता है और अपनी कामयाबी के लिए दुआ करता है , खेलना इंसान ने है भागना गिरना इंसान ने है फिर यह प्रार्थना खुद के भीतर विराजमान  आत्मिक शक्ति से ,क्यों की इसे कहते हैं स्पोर्ट्समैन स्पिरिट ?

spirituality आपको अपनेआप  से मिलवाती है ,उसी ज्ञान को जगाती है जो आपके भीतर पहले से मौजूद है  , भीतर की genetic spirituality कैसे और कब हमारे जीवन को प्रभावित करती है तो हर इंसान में होती है सिर्फ जगाना नहीं आता उसे।  और उसके बुनियाद में है आप का स्वास्थ्य , दिनचर्य्या और खान पान 


EVIL SPIRIT  ----    NOBLE spirit 



, आज कल हम कई बार राजनीती की चर्चा में इतने दूर तक चले जाते है और शरीर की काफी ऊर्जा ब्रेन इस्तेमाल करने लगता है जिसका असर हमारे मेटाबोलिज्म पर और फिर वहां से लीवर किडनी और  हर अंग पर पड़ने लगता है , शरीर और दिमाग बीमार तो spirituality भी ख़त्म होने लगती है , 

spirituality यानी के अध्यात्म हमारे आत्मा और परमात्मा से सम्बंधित और जुडी है
 इसलिए हमे अपनी अंतरात्मा को हमेशा सकारत्मक विचारों का पोषण देना चाहिए , इसका धर्म से तो 
सम्बन्ध है पर रिलिजन से नहीं है , religion इंसान ने अपने  विचार से बना लिए है लेकिन धर्म वह असूल होते है ,जो लगभग २०-२५ हज़ार साल पहले सनातन ऋषिओं द्वारा लिख दिए गए थे , जिसके पालन करने से  जीवन सुखी रहता है ,,

रिलिजन तो सब केवल 2000 साल के बीच घटी घटनाएं है   इस लिए इनकी spirituality का मतलब सनातन आधात्म से भिन्न भी है  और उल्ट भी  है , spirituality इंसान के जीवन में पग पग पर जुडी हैं , जबकि religion एक थोपी हुई प्रथा होती है spirituality हमारे मस्तिष्क में निवास करती है , नित्य व्यायाम , सात्विक शाकाहारी भोजन , शुद्ध वायु में प्राणायाम और अच्छी संगत से अच्छे विचार से अपने जीवन में आध्यात्मिक  फल पाया जा सकता है जिसकी झलक बड़ी जल्दी हमारे चेहरे पर एक अजीब सी आभा और शान्ति के रूप में दिखाई देने लगती है , gomez -pinilla दो डॉक्टर्स ने यह बात २०१७ में अपनी एक रिसर्च में साबित किया और यह भी की इसका असर भी काफी देर तक इंसान के सोच पर रहता है। 


दूसरी बात जो निकल कर आई ,व्यायाम से दिमाग के epigenetic और शरीर के DNA को बदला जा सकता है और अपनी अगली पीढ़ी को भी ट्रांसफर किया जा ता है , यही है spirituality का उदगम दिमाग में , हमारे दिमाग के हिस्से hypocampus जिसमे हमारे शरीर की सभी सूचनाएं और पूरे जीवन की शिक्षा इसी में होती है , इस कोरोना pandemic की वजह से काफी नुक्सान हो रहा है  spirituality पर भी बुरा प्रभाव आने वाले वक्त में दिखने वाला है , 


हमारे सनातन समाज में भजन कीर्तन ,गायन ताली बजाना , इत्यादि का दिमाग की  पॉजिटिव spirituality पे पड़ने वाला असर भी रिसर्च में साबित हुआ है, अंत में नतीजे पे हम जा पहुंचे के हमारे सनातन नियमो में ही अंतिम आधात्म निहित है बाकी सब लोग तो सिर्फ अपनी अपनी ढपली बजाने में लगे है जैसे कोई नया नया  विद्यार्थी ग्रंथो को समझ कर कोड करने के कोशिश करे ,





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 but the neurophysiological effects
researchers led by Dr Jeff Anderson, PhD. — from the University of Utah School of Medicine in Salt Lake City — examined the brains of 19 young Mormons using a functional MRI scanner
When asked whether, and to what degree, the participants were “feeling the spirit,” those who reported the most intense spiritual feelings displayed increased activity in the bilateral nucleus accumbens, as well as the frontal attentional and ventromedial prefrontal cortical loci.

These pleasure and reward-processing brain areas are also active when we engage in sexual activities, listen to music, gamble, and take drugs. The participants also reported feelings of peace and physical warmth.

“When our study participants were instructed to think about a savior, about being with their families for eternity, about their heavenly rewards, their brains and bodies physically responded,” says first study author Michael Ferguson.

These findings echo those of older studies, which found that engaging in spiritual practices raises levels of serotonin, which is the “happiness” neurotransmitter, and endorphins.

The latter are euphoria-inducing molecules whose name comes from the phrase “endogenous morphine.” Such neurophysiological effects of religion seem to give the dictum “Religion is the opium of the people” a new level of meaning.




This is not just a theoretical question because in the 1990s, Dr Michael Persinger — the director of the Neuroscience Department at Laurentian University in Ontario, Canada — designed what came to be known as the “God Helmet.”

This is a device that is able to simulate religious experiences by stimulating an individual’s temporoparietal lobes using magnetic fields.

In Dr Persinger’s experiments, about 20 religious people — which amounts to just 1 per cent of the participants — reported feeling the presence of God or seeing him in the room when wearing the device. However, 80 per cent of the participants felt a presence of some sort, which they were reluctant to call “God.”

Speaking about the experiments, Dr Persinger says, “I suspect most people would call the ‘vague, all-around me sensations ‘God’ but they are reluctant to employ the label in a laboratory.” 
namely, different religions activate brain regions differently.

The researcher, who literally “wrote the book” on neurotheology, draws from his numerous studies to show that both meditating Buddhists and praying Catholic nuns, for instance, have increased activity in the frontal lobes of the brain.

These areas are linked with increased focus and attention, planning skills, the ability to project into the future, and the ability to construct complex arguments.

Also, both prayer and meditation correlate with a decreased activity in the parietal lobes, which are responsible for processing temporal and spatial orientation.

Nuns, however — who pray using words rather than relying on visualization techniques used in meditation — showed increased activity in the language-processing brain areas of the subparietal lobes.

But, other religious practices can have the opposite effect on the same brain areas. For instance, one of the most recent studies co-authored by Dr Newberg shows that intense Islamic prayer — “which has, as its most fundamental concept, the surrendering of one’s self to God” — reduces the activity in the prefrontal cortex and the frontal lobes connected with it, as well as the activity in the parietal lobes.

The prefrontal cortex is traditionally thought to be involved in executive control, or willful behaviour, as well as decision-making. So, the researchers hypothesize, it would make sense that a practice that centres on relinquishing control would result in decreased activity in this brain area.




        न्यायधीश का दंड


अमेरिका में एक पंद्रह साल का  लड़का था, स्टोर से चोरी करता हुआ पकड़ा गया। पकड़े जाने पर गार्ड की गिरफ्त से भागने की कोशिश में स्टोर का एक शेल्फ भी टूट गया। 

जज ने जुर्म सुना और लड़के से पूछा, "तुमने क्या सचमुच कुछ चुराया था ब्रैड और पनीर का पैकेट"? 

लड़के ने नीचे नज़रें कर के जवाब दिया। ;- हाँ'।

जज,:- 'क्यों ?'

लड़का,:- मुझे ज़रूरत थी।

जज:- 'खरीद लेते।

लड़का:- 'पैसे नहीं थे।'

जज:- घर वालों से ले लेते।' लड़का:- 'घर में सिर्फ मां है। बीमार और बेरोज़गार है, ब्रैड और पनीर भी उसी के लिए चुराई थी 

जज:- तुम कुछ काम नहीं करते ?

लड़का:- करता था एक कार वाश में। मां की देखभाल के लिए एक दिन की छुट्टी की थी, तो मुझे निकाल दिया गया।'

जज:- तुम किसी से मदद मांग लेते?

लड़का:- सुबह से घर से निकला था, तकरीबन पचास लोगों के पास गया, बिल्कुल आख़िर में ये क़दम उठाया।


जिरह ख़त्म हुई, जज ने फैसला सुनाना शुरू किया, चोरी और ख़ुसूसन ब्रैड की चोरी बहुत शर्मनाक जुर्म है और इस जुर्म के हम सब ज़िम्मेदार हैं।  'अदालत में मौजूद हर शख़्स मुझ सहित  सब मुजरिम हैं, इसलिए यहाँ मौजूद हर शख़्स पर दस-दस डालर का जुर्माना लगाया जाता है। दस डालर दिए बग़ैर कोई भी यहां से बाहर नहीं निकल सकेगा।'


ये कह कर जज ने दस डालर अपनी जेब से बाहर निकाल कर रख दिए और फिर पेन उठाया लिखना शुरू किया:- इसके अलावा मैं स्टोर पर एक हज़ार डालर का जुर्माना करता हूं कि उसने एक भूखे बच्चे से ग़ैर इंसानी सुलूक करते हुए पुलिस के हवाले किया। 

अगर चौबीस घंटे में जुर्माना जमा नहीं किया तो कोर्ट स्टोर सील करने का हुक्म दे देगी।'

जुर्माने की पूर्ण राशि इस लड़के को देकर कोर्ट उस लड़के से माफी तलब करती है।


फैसला सुनने के बाद कोर्ट में मौजूद लोगों के आंखों से आंसू तो बरस ही रहे थे, उस लड़के के भी हिचकियां बंध गईं। वह लड़का बार बार जज को देख रहा था जो अपने आंसू छिपाते हुए बाहर निकल गये।


क्या हमारा समाज, सिस्टम और अदालत इस तरह के निर्णय के लिए तैयार हैं?


 चाणक्य ने कहा है कि यदि कोई भूखा व्यक्ति रोटी चोरी करता पकड़ा जाए तो उस देश के लोगों को शर्म आनी चाहिए


यह रचना बहुत ही प्यारी है दिल को छू गयी तो सोचा आप से भी शेयर कर लूं 🙏🏻











IALI ----- SENIOR FORUM --- TOPIC --LOVE MARRIAGE ---VS --ARRANGED MARRIAGE

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "

-LOVE MARRIAGE ---VS --ARRANGED MARRIAGE 



ARRANGED---- MARRIAGE

परिवार द्वारा नियोजित शादी विवाह को ही हम arranged मैरिज कहते है , इसमें जैसे थाली सजा के होने वाले दूल्हा दुल्हन के सामने परोस दी जाए के तुम्हे यह ही मिलेगा  , ऐसी शादिओं में कुछ रिश्तेदारों या कुछ बिचोलिये किस्म के लोग दो परिवारों के बीच सबंध बनाने का काम करते है , माँ बाप ने जुबान दे दी बस इसके आगे कुछ नहीं ,बस हो जाती थी शादी , न कोई उम्र ना कोई शक्ल सूरत का सवाल ,घर के बुजुर्गों ने जो कर दिया वही पत्थर की लकीर। ऐसा  बहुत समय तक चला और एशियाई देशो में आज तक भी काफी प्रचलित है ,।  धर्म , बिरादरी से बाहर शादी तो बड़ी मुश्किल थी। 


। पहले अखबारों में विज्ञापन दो उसपे खर्चा करो,फिर हर बायोडाटा को गौर से छटनी करना , हज़ारो खत आ जाते है , फिर हम जवाब देते टेलीफोन किये जाते , रिश्तों की दोनों तरफ इतनी भरमार हो जाती थी के मिलने की नौबत ही नहीं आती थी और सारी मेहनत बेकार , फिर से ढूंढ़ना शुरू करो , कहीं मिलने जुलने का प्रोग्राम बन भी जाता तो कभी लड़की रिजेक्ट कभी उसका परिवार रिजेक्ट और कभी लड़के की कमाई और पढाई ही रिजेक्ट , बस यही होता रहता था और यही सोच कर चुप होना पड़ता था की अभी भगवान को मंजूर नहीं है या अभी वक्त नहीं आया।  वक्त ही नहीं आया तो हे भगवान् इतनी मेहनत ही क्यों करवाई ?


मुझे अपनी शादी याद है कितने पापड़ बेलने पड़ते है अपनी पसंद की पत्नी चुनने के लिए ताकि परिवार भी उसे स्वीकार कर ले शिक्षाऔर आर्थिक गतिविधियों  के प्रसार के साथ ही शुरू हो गई लड़का लड़की की आपसी पसंद वाली रजा मंदी वाली हाइब्रिड शादी , लेकिन फिर भी दोनों परिवारओं  की निगरानी में ही सम्पन होती थी ,। लड़के लड़की के परिवार वालों ने एक दुसरे को पसंद कर लिया फिर भी  कुछ दिन लड़का लड़की को आपस में बात करने का मौका देना जरूरी था एक दुसरे को जानने के लिए , यहाँ भी रिश्ता रिजेक्ट होने का पूरा खटका बना रहता है।  


पहले लड़की के घर के बड़े बुजुर्ग  लड़का देखने उसके घर ,उसके माँ बाप का खानदान ,माली हालत देखते थे , बिज़नेस व्यपार या नौकरी की पूरी छान बीन की जाती थी , लड़का इंजीनियर डॉक्टर आईएएस ,आईपीएस, जज ,वकील  है तो ठीक , , नौकरी के साथ साथ ऊपर की कमाई यानी के रिश्वत लेने वाले लड़के , हमेशा अच्छे कहे जाने वाले घरानो की पहली पसंद हुआ करती थी। लड़की वालों की सोच बस यहीं तक होती थी की हमारी लड़की पैसों में खेले चाहे वह गलत कमाई गई दौलत ही क्यों न हो। लड़के की सूरत कोई माने नहीं रखती थी। मेरे मामले में ऐसा कोई सवाल ही नहीं उठा न ही स्टेटस का न ही कुछ और क्योंकि रिश्ते ऊपर से बन के आते है मेरे साथ यही हुआ ' 

लडकियां बहुत दिखाई गई थी मुझे भी लेकिन ,एक दुसरे के घर आने जाने में , फिर आवा भगत करने में दोनों परिवारों का काफी पैसा खर्च हो जाया  करता था , किसी भी छोटी बात पे या आडोसी पड़ोसियों से ली गई जानकारी के आधार पर  परिवार चुपी साध लेते थे , कभी कभी तो ऐसी जासूसी कंपनियों को भी लड़का लड़की  या उनके परिवार की पूरी जानकारी एकत्र करवाई जाती थी ,और रिश्ता करने से पीछे हट जाते थे ,लेकिन कारण नहीं बताते थे ,  

कुछ भी कहो अरेंज्ड मैरिज एक बड़ा पारिवारिक घूमने फिरने खाने पीने का कभी घरों में तो कभी होटलों में खाने का उत्सव हुआ करता था , खर्चा किसी का भी हो ,रिश्ते हो न हो मिलना जुलना बहुत कुछ सीखा जाता था की इस बार की गलती अगली बार न दोहराई जाए , अगर सच बोलने से रिश्ते मना हो रहे है तो थोड़ा झूट का तड़का भी लगाया जाये , लड़का हो या लड़की उसके बारे में बढ़ा चढ़ा कर बताया जाए , 

अपना मकान अच्छा नहीं तो पडोसी दोस्त के यहाँ या होटल में ही मिला जाए , अपनी कार अच्छी नहीं तो कार भी उधार  लेकर रॉब जमाया जाए ,किसी तरह रिश्ता तो हो , लेकिन दोनों परिवार इतने जागरूक और स्मार्ट होते है एक दुसरे की किसी भी झूटी तस्वीर में नहीं फंसते। 

और वाकई भगवान् को ही हम पे दया आई , जिस मंदिर हम जाया करते थे उन्ही की सेविकाओं द्वारा हमारा रिश्ता चुटकी बजाते ही करवा दिया गया  क्योंकि दोनों परिवार के बीच में एक स्पिरिचुअल  रिश्ता जो  आ गया था  , यहाँ सब कुछ पहली ही बार में क्लिक हो गया , पहली मुलाकात मेरी भी हुई ,इधर उधर की गप शप से एक दुसरे को समझने की कोशिस की। 

 ईश्वर के आशीर्वाद से संस्कारों का मिलन ऐसा हुआ की राम मिलाई जोड़ी वाली बात यथार्थ हो गई ,  मेरी शुरू से एक ही भावना थी की जो लड़की मुझे पसंद करे उसी से मेरी शादी होनी चाहिए न की जिसे मैं पसंद करूँ ? और जिससे मेरी शादी हुई उसने अपने कई ख्वाब जो के वह आईएएस बनने वाली थी ट्रेनिंग से पहले सगाई हो गई तो , मेरे माँ बाप ने कहा हम नौकरी वाली लड़की तो नहीं लेंगे , बस हमारी होने वाली पत्नी ने अपना सब कर्रिएर छोड़ दिया मेरे लिए । बाकी सब माँ बाप अपनी पैनी निगाहों से तय कर लिया करते थे के क्या ठीक है क्या गलत। 


पर यह तो एक ब्लाइंड चाल ही की तरह है , सब कुछ ठीक मिल जाए तो लाटरी वरना सजा।  लेकिन भगवान् ने मुझे सब ठीक ही दिया और खुशियों भरा परिवार मेरी पत्नी ने बनाया। 


यही ख़ूबसूरती होती है अरेंज्ड रिश्तों की जिसमे घर का बड़े अपनी उम्र के तजुर्बों का पूरा फायदा अपने परिवार को बचाने में लगा देते है कोई गलत रिश्ता जिसके लिए बाद में पछताना पड़े होने ही नहीं देते।  शुक्र है इन ७५ सालो में यह सब बदल गया है और सेल्फ सिलेक्शन कम अरेंज्ड मैरिज ही आजकल सिर्फ मान्य है। आज लड़का लड़की अपने फैसले जिम्मेवारी से लेते है और माँ बाप का आशीर्वाद लेकर उसे अरेंज्ड मैरिज का रूप दे देते है। 


1   शरफ़त की हद ही हुआ करती थी जब हमारे घर बसाने का काम भी हमारे माँ बाप करते थे 

 २  कुछ लोग हुआ करते थे जो बिचोले का काम करते थे और अखबार में मैट्रीमोनिअल्स 

 ३ मैंने अपना मैट्रिमोनियल अखबारों में दिया क्योंकि होता है न की बड़ी खोज चॉइस जो (मैच मेकर्स )  बिचौलियों के पास नहीं होती 

४ इतने जवाब आते है के हाथ पेअर फूल जाते है जवाब देते देते , कितने परेशां होते होंगे माँ बा अपने बच्चों को लेकर इसी से पता चलता था। 

५  मीटिंग पहले तो होती बड़ी मुश्किल से हो जाए तो सिरे कम ही लगती थी , कोई न कोई नुक्स निकल ही आता है किसी भी तरफ से , 

वाकई जोड़ियां ईश्वर ही बनता है तो हमारी मेहनत का क्या ?

६,  हुआ भी ऐसा ही मेरी शादी के लिए लड़की का ऑफर हमारे जानकार मंदिर के पुजारी की तरफ से आया। 

७ परिवार वालों ने मिलकर एक दुसरे को पास किया 


खट पट

यह उन दिनों की बात थी, जब हमारी नई नई शादी हुई थी. 
वाइफ पहली बार किचन में घुसी और खाना बनाने लगी. 
अचानक मुझे ख्याल आया कि रोटी बनाने वाला चकला बिल्कुल भी आवाज नही कर रहा. मगर यह कैसे सम्भव था? उसकी तीनो टाँगे कभी स्लेब पर टिकती ही नही थी. एक टांग छोटी होने से खट पट होती रहती थी।

जैसे ही मै किचन में घुसा तो देखा, वाइफ आराम से रोटी बना रह थी और चकले की तीनो टांग अलग पड़ी थी. मैंने उससे पूछा “यह क्या किया तुमने?”

“कुछ नही यह ज्यादा खट पट कर रहा था तो मैंने इसकी तीनो टांग तोड़ दी, मेरा यही स्टाइल है”

उसका यह स्टाइल देखकर फिर मेरी भी कभी खटपट करने की हिम्मत नही हुई..जो तीन तोड़ सकती है मेरे तो दो ही हैं।🤣🤣🤣आज कि नारी सब पे भारी...😀😀👌

😙😚🤨😚😙😗
आज अंतर्राष्ट्रीय पुरुष
 मौन दिवस है 






SPIRITUALITY --- & --- POSITIVITY-------- Defined Through inner revealations . March 18 ,2021 .

"LIFE BEGINS HERE AGAIN "





What is spirituality - and Positivity? 

Can it be acquired?

what are the sources of spirituality? and positivity in our life?

A healthy Body only can sustain Healthy Mind. And a Healthy Neuromotor system essential for proper communication between different organs in our body with the mind 

what is the purpose of developing positivity and spirituality in our day to day life?

Good Health and Eating Habits are necessary ingredients 

Digestive System --- Metabolism and catabolism - Enzymes - Hormones 

An adequate supply of oxygen in the vascular system. 

Oxygen starved Minds Leave aside Positivity or spirituality, can never even function properly 


1 spirituality is the voice of soul the SPIRIT it can be good (virtuous) or bad ( evil )varying from person to person depending on various factors where he lived, company,  grew and learnings.

2 spirituality is the expression of noble thought,the product of soul and mind, Most of the times it is embedded and inherent in our memories from the time immemorial in our genetic configuration transferred from our ancestors, which always remain dormant till a favorable time happens in the life of subject ,which only comes into play when a congenial environment is available to the subject 


3 Empty stomachs cant be spiritual, a hungry person is always worried about his fire in the stomach which is essential for him to survive, with mere spirituality or positive thoughts no one can be expected to become a good positive thinker or a spiritual person if his intestine is crying for energy and food, we can not compare saints who go 


आज का युग हो या वैदिक युग सब में जीवन परिस्थितिओं के हिसाब से आशावादी या निराशावादी रूप में  बदल जाता है , इंसान तब तक आशावादी रहता है जब तक उसके हर कदम पे सफलता मिलती रहे , एक दो असफलताओं से उसका आशावादी दृष्टिकोण घबराने लगता है , उसके अंदर का डर उसे हर चीज़ को असफलता की आशंकाओं से डगमगा देता है। इंसान सब एक ही हैं , उनका चरित्र आशा और निराशा के सागर में लगातार गोते लगाता रहता है , कौन उसे कैसे पार करता है वही हमारी सोच निर्धारित करती है। 

हम सब मैथ में प्लस (+) और (-) के चिनोह्न से पढ  कर ही  आज जिंदगी में हर तरह के  नफे नुक्सान का हिसाब लगाते रहते है , दो नेगेटिव लाइन्स जब एक दुसरे को 90 * पर काटती है तो उसकी परिभाषा नेगेटिव से पॉजिटिव में बदल जाती है , इसका बड़ा गहरा अर्थ हमारे जीवन में भी है , बहुत ज्यादा नेगेटिविटी हमारी सोच और विचार धारा  को  भी जब अंतर्विरोध में एक दुसरे को काटने लगती हैतो वह अंतत एक सुसंगत में सार्थकता यानी की आशावादी सोच में परिवर्तित होने लगती है। 

सब कुछ अच्छा  आशावादी सोचना ही सिर्फ पाजिटिविटी नहीं हो सकता न ही कोई इसे आसानी से अपना सकता है  ,इसके लिए हमे मानसिक और शारीरिक रूप से खुद को इसके लिए गहन अध्यन और एक अच्छे संगत में ही सीखा जा सकता है , 

पाजिटिविटी का शरीर के पूरे तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और शरीर नैसर्गिक रूप में दमकने लगता है , नेगेटिविटी में ठीक इसके विपरीत असर शरीर के हर अंग पर विषेकर हमारे मष्तिष्क , दिल और गुर्दो ,लिवर पर पड़ना शुरू हो जाता है जिससे शरीर को विभिन तकलीफों में डाल कर जीवन नार्किक बन जाता है ,

अगर हम अपने मष्तिस्क को आधात्म से जोड़ते हुए इसे वश में कर पाएं और हमेशा आशावादी सोच को सींचते रहे , हर प्रकार के विषैले और नेगेटिव वातावरण में रहते हुए भी इसे भटकने न दे तो समझ लीजिये हम अपने जीवन को हमेशा सुखी ही पाएंगे और परेशां दुनिया आपके पीछे भागती है आपके नजरिये आपकी सोच को अपनाने के लिए।