अदबी संगम - ASV -3
संसार - दुनिया - वर्ल्ड --
अक्सर हम यह समझते है और विश्वास भी करते हैं की ,हमारी दुनिया हमारा संसार हमारे इर्द गिर्द ही होता है , किसी के लिए उसका घर परिवार ,दोस्त रिश्ते दार ही उसकी दुनिया होते है किसी के लिए अपना व्यपार ,ही दुनिया है , पर उससे आगे एक और विशाल दुनिया भी है। जिसे अक्सर हम स्कूल में पढ़ कर भूल जाते है.
हमारी पृथ्वी पर ही हमारी दुनिया बसी है ,यह हमारे सूरज के सौर मंडल के परिवार का एक अनमोल एकलौता हीरा है। जिसे प्रकृति ने इंसानो के रहने के लिए तौफा में दिया है , इसके समान पूरे सौर मंडल में हमारी दुनिया जैसा कोई खूबसूरत ग्रह नहीं है। कहते है दुनिया सतरंगी है पर हमें स्कूल में पढ़ाया गया दुनिया नारंगी की तरह गोल भी है , कुछ ने इसे चपटा भी कह दिया जब तक की विज्ञान ने भी इसे गोल करार नहीं दे दिया। कुल जीव जंतुओं को मिला कर 84 लाख योनियाँ यहाँ निवास करती है , जिसमे से इंसान सबसे सर्वश्रेष्ठ है , जो सोचता है और नई नई खुराफातें करता रहता है
कहते है न की ,यह दुनिया या पृथिवी किसी की जागीर नहीं हैं
राजा हो या रंक यहां सभी हैं चौकीदार ,
कुछ तो आकर चले गए कुछ जाने को तैयार , खबरदार , खबरदार।
कोई हस्ती नहीं हैं यहां पर किसी की , कितना भी धन जोड़ लो , अशिआने बना लो ,कितना ही सजा लो महफिले , लीज़ खत्म होते ही दुनिया छोड़नी पड़ती है।सब का नंबर तय है जिसमे कोई माफ़ी नहीं है , पर इंसान खुद को अमर मान कर इस दुनिया में अपना विस्तार करता रहता है।
दुनिया तो एक ही है पर इसमें रहने वालों के रंग ढंग बड़े अलग अलग है , कोई इस दुनिया को अपनी माँ समझ कर सेवा करता है इसकी मिटटी में खेती करके फंसलो को उगाता है सब का पेट भरता है , और कोई सिर्फ अपनी चौधराहट के लिए इसका दोहन। इसके अंदर छुपे खनिज और ख़ज़ानों को हरदम लूटने में लगा रहता है और उसके बदले में वापिस अपनी धरती माँ को कुछ भी नहीं देता है ? कोई सर झुका के प्रकृति के नायाब तोहफे दुनिया को वंदन करता है और कोई अपनी शरारतों से इसे नष्ट करने में लग जाता है। हरे भरे जंगलों को काट काट कर अपना सामान बना लिया लेकिन दुनिया को होने वाली क्षति पूर्ती नहीं की.
यही दुनिया जब अति होने लगती है कुदरत अपने न्याय तंत्र से इस दुनिया को बचाने के लिए खुद परगट हो जाती है और उसके प्रकोप से दुनिया के हर कोने में हर रोज कुछ न कुछ होता ही रहता है , कहीं भूकंप , कहीं तूफ़ान , कहीं सुनामी , कही बाढ़ , और कही मार देने वाला सूखा , कहीं सुख की बारिश ?और कहीं ला इलाज कोरोना वायरस जैसी महामारी , डॉक्टर हो या आम आदमी सभी इसकी जद में आकर अपने प्राणो से हाथ धो रहे है , यही है कुदरत का अपना तंत्र जो धरती पर बसे दुनिया को नियंत्रित करती है
यह दुनिया जिसे हम संसार भी कहते हैं , क्या है दुनिया ? एक अदना सा कॉस्मिक प्लेनेट इस ब्रह्माण्ड में ? लाखों लाखों गैलेक्सीज है इस ब्रह्माण्ड में उसमे हमारे हिस्से की एक बूँद मिली है जिसे हम अपनी दुनिया कहते हैं यह एक ऐसा ग्रह है जो अपने सृजक सूर्य के इर्द गिर्द हमेशा घूमती रहती है जैसे कोई बच्चा अपनी माँ से अलग हो कर भी उस से जुड़ा रहता है , हमारा पूरा जीवन ही सूर्य शक्ति से चलता है। सोचो अगर यह कभी सूरज से दूर हो जाए तो क्या होगा ? हमारा संसार भी तो इसी काल चक्र से बंधा है , पृथ्वी की सलामती ही तो हमारी दुनिया की सलामती है।
कितनी विशाल है यह दुनिया , कितने ही टुकड़ो में लोगों ने इसे बाँट लिया है और अपने अपने हिस्से का अलगअलग नाम भी रख लिया है , कोई यूरोप कहता है कोई अमेरिका , कोई भारत और कोई अफ्रीका , फिर भी बहुत छोटे छोटे बिंदु द्वीप बच गए वह भी लोगों ने कब्ज़ा कर अपना नाम दे दिया
उस विधाता ने तो यह एक खगोलीय क्रिया से इस दुनिया का सृजन किया और उसमे जीवन का सृजन किया लेकिन हमने अपने अपने स्वार्थ में इसे अलग अलग नाम और देश में विभाजित कर दिया और रोज इस दुनिया की जमीन को इक दुसरे से छीनने के लिए एक दुसरे को मारते भी रहते हैं , अपना हिस्सा तो सम्भलता नहीं पर चौधराहट सारी दुनिया की चाहते हैं।
मदर नेचर यानी की कुदरत ने बड़ा सोच समझ कर ही इसके हिस्से किये है , कही बहुत गर्मी और कही बहुत सर्दी
कुदरत ने इसी दुनिया के किसी हिस्से में पेट्रोल और किसी हिस्से में लोहा और सोना डाल दिया और सबको एक दुसरे के साथ मिलकर रहने के लिए एक दुसरे पर निर्भर कर दिया , किसी को तेल चाहिए तो अपना सोना या लोहा देकर तेल खरीद ले , किसी को सोना या कुछ और समान चाहिए तो तेल बेच कर वह भी खरीद ले।
किसी को शारीरिक बल वाले इंसान दे दिए किसी भू भाग में दिमागी लोगों को पैदा कर दिया ताकि संतुलन बना रहे।दोनों एक दुसरे पर निर्भर हो के रहे। पर किसी को कुदरत का यह बटवारा मंजूर नहीं इसी लिए यह सब इस दुनिया को नर्क बनाने में लगे है , एक से बढ़कर एक हथिआर और परमाणु बम्ब बना कर बैठे है , बिना सोचे की बम्ब जब गिरेगा बचेगा कौन ? इस दुनिया की दौलत खनिज भंडार कौन इस्तेमाल कर पायेगा ?जब कोई बचेगा ही नहीं तो यह सब विनाशकारी समान किसके काम का है।
यह सोचने का आज इंसान के पास न समय है न ही संयम , इसी दुनिया में हमारा बचपन कितने सयम से चलता था हम सब भूल गए और अपने लालच और द्वेष को पाले हुए एक दुसरे को नीचा दिखाने में लग गए , एक छोटी सी पतंग लूट कर जब घर लौटते थे तो उसकी उलझी डोर को किस संयम से उसकी गांठों को छुड़ाते थे , क्या कीमत होती थी उस धागे की जिसे सुलझाने में हम अपनी पूरी सहनशक्ति और सयंम को दांव पे लगा कर भी छुड़ा लेते थे और बड़े खुश होते थे जैसे अनमोल खज़ाना मिल गया हो , काश वही संयम आज भी हमारे पास होता तो रिश्तों में पड़ी गांठों को भी आराम से खोल पाते न यह रिश्ते टूटते न ही कोई गाँठ पड़ती और यह दुनिया सच में एक स्वर्ग की तरह ही होती।
जब इंसान का बुरा वक्त आता है , तब उसको दुनिया भूल जाती है पर खुदा याद आने लगता है
और जब अच्छा वक्त आता है , इंसान खुदा को भूल जाता है , पर दुनिया अच्छी लगने लगती है।
मैं यह सोच रहा हूँ , यह कोरोना इस दुनिया में शायद खुदा की याद दिलाने आया हो ?
पहले छींक आती थी तो लगता था,
संसार - दुनिया - वर्ल्ड --
हमारी पृथ्वी पर ही हमारी दुनिया बसी है ,यह हमारे सूरज के सौर मंडल के परिवार का एक अनमोल एकलौता हीरा है। जिसे प्रकृति ने इंसानो के रहने के लिए तौफा में दिया है , इसके समान पूरे सौर मंडल में हमारी दुनिया जैसा कोई खूबसूरत ग्रह नहीं है। कहते है दुनिया सतरंगी है पर हमें स्कूल में पढ़ाया गया दुनिया नारंगी की तरह गोल भी है , कुछ ने इसे चपटा भी कह दिया जब तक की विज्ञान ने भी इसे गोल करार नहीं दे दिया। कुल जीव जंतुओं को मिला कर 84 लाख योनियाँ यहाँ निवास करती है , जिसमे से इंसान सबसे सर्वश्रेष्ठ है , जो सोचता है और नई नई खुराफातें करता रहता है
कहते है न की ,यह दुनिया या पृथिवी किसी की जागीर नहीं हैं
राजा हो या रंक यहां सभी हैं चौकीदार ,
कुछ तो आकर चले गए कुछ जाने को तैयार , खबरदार , खबरदार।
कोई हस्ती नहीं हैं यहां पर किसी की , कितना भी धन जोड़ लो , अशिआने बना लो ,कितना ही सजा लो महफिले , लीज़ खत्म होते ही दुनिया छोड़नी पड़ती है।सब का नंबर तय है जिसमे कोई माफ़ी नहीं है , पर इंसान खुद को अमर मान कर इस दुनिया में अपना विस्तार करता रहता है।
दुनिया तो एक ही है पर इसमें रहने वालों के रंग ढंग बड़े अलग अलग है , कोई इस दुनिया को अपनी माँ समझ कर सेवा करता है इसकी मिटटी में खेती करके फंसलो को उगाता है सब का पेट भरता है , और कोई सिर्फ अपनी चौधराहट के लिए इसका दोहन। इसके अंदर छुपे खनिज और ख़ज़ानों को हरदम लूटने में लगा रहता है और उसके बदले में वापिस अपनी धरती माँ को कुछ भी नहीं देता है ? कोई सर झुका के प्रकृति के नायाब तोहफे दुनिया को वंदन करता है और कोई अपनी शरारतों से इसे नष्ट करने में लग जाता है। हरे भरे जंगलों को काट काट कर अपना सामान बना लिया लेकिन दुनिया को होने वाली क्षति पूर्ती नहीं की.
यही दुनिया जब अति होने लगती है कुदरत अपने न्याय तंत्र से इस दुनिया को बचाने के लिए खुद परगट हो जाती है और उसके प्रकोप से दुनिया के हर कोने में हर रोज कुछ न कुछ होता ही रहता है , कहीं भूकंप , कहीं तूफ़ान , कहीं सुनामी , कही बाढ़ , और कही मार देने वाला सूखा , कहीं सुख की बारिश ?और कहीं ला इलाज कोरोना वायरस जैसी महामारी , डॉक्टर हो या आम आदमी सभी इसकी जद में आकर अपने प्राणो से हाथ धो रहे है , यही है कुदरत का अपना तंत्र जो धरती पर बसे दुनिया को नियंत्रित करती है
यह दुनिया जिसे हम संसार भी कहते हैं , क्या है दुनिया ? एक अदना सा कॉस्मिक प्लेनेट इस ब्रह्माण्ड में ? लाखों लाखों गैलेक्सीज है इस ब्रह्माण्ड में उसमे हमारे हिस्से की एक बूँद मिली है जिसे हम अपनी दुनिया कहते हैं यह एक ऐसा ग्रह है जो अपने सृजक सूर्य के इर्द गिर्द हमेशा घूमती रहती है जैसे कोई बच्चा अपनी माँ से अलग हो कर भी उस से जुड़ा रहता है , हमारा पूरा जीवन ही सूर्य शक्ति से चलता है। सोचो अगर यह कभी सूरज से दूर हो जाए तो क्या होगा ? हमारा संसार भी तो इसी काल चक्र से बंधा है , पृथ्वी की सलामती ही तो हमारी दुनिया की सलामती है।
कितनी विशाल है यह दुनिया , कितने ही टुकड़ो में लोगों ने इसे बाँट लिया है और अपने अपने हिस्से का अलगअलग नाम भी रख लिया है , कोई यूरोप कहता है कोई अमेरिका , कोई भारत और कोई अफ्रीका , फिर भी बहुत छोटे छोटे बिंदु द्वीप बच गए वह भी लोगों ने कब्ज़ा कर अपना नाम दे दिया
उस विधाता ने तो यह एक खगोलीय क्रिया से इस दुनिया का सृजन किया और उसमे जीवन का सृजन किया लेकिन हमने अपने अपने स्वार्थ में इसे अलग अलग नाम और देश में विभाजित कर दिया और रोज इस दुनिया की जमीन को इक दुसरे से छीनने के लिए एक दुसरे को मारते भी रहते हैं , अपना हिस्सा तो सम्भलता नहीं पर चौधराहट सारी दुनिया की चाहते हैं।
मदर नेचर यानी की कुदरत ने बड़ा सोच समझ कर ही इसके हिस्से किये है , कही बहुत गर्मी और कही बहुत सर्दी
कुदरत ने इसी दुनिया के किसी हिस्से में पेट्रोल और किसी हिस्से में लोहा और सोना डाल दिया और सबको एक दुसरे के साथ मिलकर रहने के लिए एक दुसरे पर निर्भर कर दिया , किसी को तेल चाहिए तो अपना सोना या लोहा देकर तेल खरीद ले , किसी को सोना या कुछ और समान चाहिए तो तेल बेच कर वह भी खरीद ले।
किसी को शारीरिक बल वाले इंसान दे दिए किसी भू भाग में दिमागी लोगों को पैदा कर दिया ताकि संतुलन बना रहे।दोनों एक दुसरे पर निर्भर हो के रहे। पर किसी को कुदरत का यह बटवारा मंजूर नहीं इसी लिए यह सब इस दुनिया को नर्क बनाने में लगे है , एक से बढ़कर एक हथिआर और परमाणु बम्ब बना कर बैठे है , बिना सोचे की बम्ब जब गिरेगा बचेगा कौन ? इस दुनिया की दौलत खनिज भंडार कौन इस्तेमाल कर पायेगा ?जब कोई बचेगा ही नहीं तो यह सब विनाशकारी समान किसके काम का है।
यह सोचने का आज इंसान के पास न समय है न ही संयम , इसी दुनिया में हमारा बचपन कितने सयम से चलता था हम सब भूल गए और अपने लालच और द्वेष को पाले हुए एक दुसरे को नीचा दिखाने में लग गए , एक छोटी सी पतंग लूट कर जब घर लौटते थे तो उसकी उलझी डोर को किस संयम से उसकी गांठों को छुड़ाते थे , क्या कीमत होती थी उस धागे की जिसे सुलझाने में हम अपनी पूरी सहनशक्ति और सयंम को दांव पे लगा कर भी छुड़ा लेते थे और बड़े खुश होते थे जैसे अनमोल खज़ाना मिल गया हो , काश वही संयम आज भी हमारे पास होता तो रिश्तों में पड़ी गांठों को भी आराम से खोल पाते न यह रिश्ते टूटते न ही कोई गाँठ पड़ती और यह दुनिया सच में एक स्वर्ग की तरह ही होती।
जब इंसान का बुरा वक्त आता है , तब उसको दुनिया भूल जाती है पर खुदा याद आने लगता है
और जब अच्छा वक्त आता है , इंसान खुदा को भूल जाता है , पर दुनिया अच्छी लगने लगती है।
मैं यह सोच रहा हूँ , यह कोरोना इस दुनिया में शायद खुदा की याद दिलाने आया हो ?
पहले छींक आती थी तो लगता था,
कोई याद कर रहा है..
अब छींक आती है तो लगता है..
चित्रगुप्त फाइल चेक कर रहे हैं'
कुछ लोग आये थे मेरा गम बँटवाने,
मुझे खुश देखा तो नाराज होकर
चल दिए।
अब छींक आती है तो लगता है..
चित्रगुप्त फाइल चेक कर रहे हैं'
कुछ लोग आये थे मेरा गम बँटवाने,
मुझे खुश देखा तो नाराज होकर
चल दिए।
यही तो है आज कल की हमारी दुनिया
जब जब इंसान अपनी हदों को पार कर के इस खूबसूरत दुनिया को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करता है , तब तब वह सृष्टि करता अपना वर्चस्व दिखने के लिए इंसान को सबक सिखाता है , आज पूरी दुनिया कोरोना नामक एक अद्रश्य सूक्ष्म जीव से परेशान है और सब देशों को अपनी जान बचाने के लाले पड गए है ,कहाँ गई उनकी वर्ल्ड पावर की धौंस ? कहते है न जब उसकी लाठी चलती है न ? न ही उसकी आवाज होती है न ही उसकी मार का इलाज़ , कारण कोई भी रहा हो , वायरस कहीं का भी हो कहीं भी बनाया गया हो , जानवर का हो , पक्षी का हो , चमगादड़ का हो , आज इंसान अपनी जान बचाने को उसी विधाता से अपने जान की भीख मांग रहा है , रोज रोज लोगों के मरने की ख़बरों से हर इंसान हर मुल्क खौफ में जी रहा है। अब दुआएं की जा रही है के इतनी गर्मी पड़े के सब ठीक हो जाए , लेकिन जब गर्मी पड़ती है तो भी लोग चिल्लाने लगते है। यह दुनिया भी सबको रास नहीं आती।
यह दुनिया उतनी ही हसींन है जितनी हमारी आँखों की नियत , जैसा हम सोचते है वैसे ही दुनिया की सूरत रंग ढंग बदल जाते है ,पहले कहा जाता था मिलजुल के रहो आपस में प्यार करो आज कोरोना के खौफ के साये में इंसान डर कर अपने घरों में छुप कर अलग थलग बैठा है और उसे बता दिया है के जिन्दा रहना है तो किसी से मिलना मत घर को ही अपनी दुनिया समझ और चुप चाप बैठे रहो।
इंसानी दखल ख़त्म होते ही , कुदरत वापिस अपने रूप में दिखने लगी है , दुनिया की सारी नदियाँ नाले , आबो हवा सब वैसे ही लगने लगी है जैसे कुदरत ने इस दुनिया को बनाते वक्त दी थी। एक ही झटके में कुदरत ने अपना फरमान सुना दिया और एक दम सबको घुटनो पे ला दिया। आज टेलीविज़न पर दुनिया के हर देश की सड़को पर जानवर घुमते दिखाई दे रहे है जो इंसान की मौजूदगी में दूर भाग गए थे , आज उन्हें भी अपनी दुनिया वापिस मिलती दिख रही है , वह ऐसे घूमने निकले है जैसे इंसानो का हाल चाल पूछने को आ रहे हो , वोही इंसान जिसने उन्हें उनके घर से बेघर करके अपनी कॉलोनी और शहर बना डाले थे। शायद यह मूक जानवर भी उन्ही शहरों में मटरगश्ती करते दिखाई पद रहे है जैसे की इंसान की हालत पर संवेदना प्रगट कर रहे हों .
कितने बेबस हो गया है इंसान आज ,
बेबसी किसे कहते है पूछो उस परिंदे से ,
जिसका पिंजरा रखा हो खुल्ले आस्मां के नीचे ,
और उसे उड़ने की इजाजत न हो ?
बीवी: कल्पना करो, अगर मैं आपकी हर बात
समझूं और हर बात मानूं, तो...?
पति हंसने लगा...
हंसता रहा...
हंसते-हंसते ज़मीन पर गिर पड़ा...
फिर हंसते-हंसते बोला-
"मैं तो कमबख्त कल्पना भी नहीं कर पा रहा!"
जब जब इंसान अपनी हदों को पार कर के इस खूबसूरत दुनिया को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करता है , तब तब वह सृष्टि करता अपना वर्चस्व दिखने के लिए इंसान को सबक सिखाता है , आज पूरी दुनिया कोरोना नामक एक अद्रश्य सूक्ष्म जीव से परेशान है और सब देशों को अपनी जान बचाने के लाले पड गए है ,कहाँ गई उनकी वर्ल्ड पावर की धौंस ? कहते है न जब उसकी लाठी चलती है न ? न ही उसकी आवाज होती है न ही उसकी मार का इलाज़ , कारण कोई भी रहा हो , वायरस कहीं का भी हो कहीं भी बनाया गया हो , जानवर का हो , पक्षी का हो , चमगादड़ का हो , आज इंसान अपनी जान बचाने को उसी विधाता से अपने जान की भीख मांग रहा है , रोज रोज लोगों के मरने की ख़बरों से हर इंसान हर मुल्क खौफ में जी रहा है। अब दुआएं की जा रही है के इतनी गर्मी पड़े के सब ठीक हो जाए , लेकिन जब गर्मी पड़ती है तो भी लोग चिल्लाने लगते है। यह दुनिया भी सबको रास नहीं आती।
यह दुनिया उतनी ही हसींन है जितनी हमारी आँखों की नियत , जैसा हम सोचते है वैसे ही दुनिया की सूरत रंग ढंग बदल जाते है ,पहले कहा जाता था मिलजुल के रहो आपस में प्यार करो आज कोरोना के खौफ के साये में इंसान डर कर अपने घरों में छुप कर अलग थलग बैठा है और उसे बता दिया है के जिन्दा रहना है तो किसी से मिलना मत घर को ही अपनी दुनिया समझ और चुप चाप बैठे रहो।
इंसानी दखल ख़त्म होते ही , कुदरत वापिस अपने रूप में दिखने लगी है , दुनिया की सारी नदियाँ नाले , आबो हवा सब वैसे ही लगने लगी है जैसे कुदरत ने इस दुनिया को बनाते वक्त दी थी। एक ही झटके में कुदरत ने अपना फरमान सुना दिया और एक दम सबको घुटनो पे ला दिया। आज टेलीविज़न पर दुनिया के हर देश की सड़को पर जानवर घुमते दिखाई दे रहे है जो इंसान की मौजूदगी में दूर भाग गए थे , आज उन्हें भी अपनी दुनिया वापिस मिलती दिख रही है , वह ऐसे घूमने निकले है जैसे इंसानो का हाल चाल पूछने को आ रहे हो , वोही इंसान जिसने उन्हें उनके घर से बेघर करके अपनी कॉलोनी और शहर बना डाले थे। शायद यह मूक जानवर भी उन्ही शहरों में मटरगश्ती करते दिखाई पद रहे है जैसे की इंसान की हालत पर संवेदना प्रगट कर रहे हों .
कितने बेबस हो गया है इंसान आज ,
बेबसी किसे कहते है पूछो उस परिंदे से ,
जिसका पिंजरा रखा हो खुल्ले आस्मां के नीचे ,
और उसे उड़ने की इजाजत न हो ?
याद है जब हम भागते हुए कहते थे इतना काम है सांस लेने की फुरसत नहीं है ;आज कहाँ गए वह काम , आज सांसों की कीमत समझ आ रही है आज मौत से डर कर हमारे कदम ठहर गए और अपनी दुनिया में ही जिंदगी की खातिर हम सब भी थम गए न..?
बीवी: कल्पना करो, अगर मैं आपकी हर बात
समझूं और हर बात मानूं, तो...?
पति हंसने लगा...
हंसता रहा...
हंसते-हंसते ज़मीन पर गिर पड़ा...
फिर हंसते-हंसते बोला-
"मैं तो कमबख्त कल्पना भी नहीं कर पा रहा!"