बेटियाँ ---Daughters
अपार सुख सुविधाएँ थी , फिर भी वो जीवन्तता नहीं थी ,
पर बेटी के आते ही वो एक चहकता परिवार बन गया
कितने भी लोग रहते हो उस मकान में
kकोई फर्क नहीं पड़ता
पर बेटी के आते ही वो एक चहकता परिवार बन गया
कितने भी लोग रहते हो उस मकान में
kकोई फर्क नहीं पड़ता
अलबत्ता बेटी की हर खिलखिलाहट से,
दीवारे भी गूंजने लगती है
सजने लगते है उसके कदमो से गुमनाम पड़े आंगन।
उस बेजान मकान में जैसे जान आ जाती है
इसकी मासूम हंसी से खिल जाते हैं,
अनेको-अनेक दिलों के बुझे बुझे से प्रांगण
जिस घर में इसका प्रवेश होता है
सजने लगते है उसके कदमो से गुमनाम पड़े आंगन।
उस बेजान मकान में जैसे जान आ जाती है
इसकी मासूम हंसी से खिल जाते हैं,
अनेको-अनेक दिलों के बुझे बुझे से प्रांगण
जिस घर में इसका प्रवेश होता है
वहां एक नई बहार आ बसती है
लक्ष्मी का भी वहीँ डेरा, होता है
बेटी है तो हर घर में है रौनक,
वो घर ही सिर्फ बसा हुआ लगता है।
बाकी तो बस बियाबान खंडर से लगते है
आज तू बेटी है एक बहन है ,कल बहु है , पत्नी है , माँ भी और सास भी ,
लक्ष्मी का भी वहीँ डेरा, होता है
बेटी है तो हर घर में है रौनक,
वो घर ही सिर्फ बसा हुआ लगता है।
बाकी तो बस बियाबान खंडर से लगते है
आज तू बेटी है एक बहन है ,कल बहु है , पत्नी है , माँ भी और सास भी ,
कभी बहुत दूर होते हुए भी लगती कितनी पास भी
तेरे हर रूप में छुपा है सिर्फ एक ही किरदार
वो है अपने पापा की लाड़ली बेटी का,
तेरे हर रूप में छुपा है सिर्फ एक ही किरदार
वो है अपने पापा की लाड़ली बेटी का,
जिसे वो डांट ,प्यार। फ़टकार से
अपनी छवि में हमेशा ढलते देखना चाहता है ,
क्योंकि वोह उसका कहा दिल से मानती है
अपनी छवि में हमेशा ढलते देखना चाहता है ,
क्योंकि वोह उसका कहा दिल से मानती है
उसे अपना आदर्श मानती है
तू है मेरी बेटी, मेरी शान, मेरा अभिमान
बेशक समाज ने तुझे पराया धन कह के विदा किया होगा
पराई हो जाने के बाद भी , मृत्यु तक तू फिर भी लगती अपनी है
संस्कारों का निर्वाहन करती है, पराये घर में बस कर भी
जिन्दा रखती है अपने परिवार का नाम इस घर , और उस घर भी
बेटी तू है मेरी ताकत,और कमजोरी भी
तेरी मुस्कान से मिलती है मुझे शक्ति
तेरी मायूसी में दिखती मुझे उदासी है ।
तू है मेरी साथी, मेरी दोस्त,हर मुश्किल में
चाहे हो हमारे पास, या हो कितनी ही दूरी भी
तेरे साथ गुजरा हर पल यादगार और
दिल के करीब होता है
कुछ कारण वश यह प्यारी बेटी अपनी यह पहचान खोने लगी है
तू है मेरी बेटी, मेरी शान, मेरा अभिमान
बेशक समाज ने तुझे पराया धन कह के विदा किया होगा
पराई हो जाने के बाद भी , मृत्यु तक तू फिर भी लगती अपनी है
संस्कारों का निर्वाहन करती है, पराये घर में बस कर भी
जिन्दा रखती है अपने परिवार का नाम इस घर , और उस घर भी
बेटी तू है मेरी ताकत,और कमजोरी भी
तेरी मुस्कान से मिलती है मुझे शक्ति
तेरी मायूसी में दिखती मुझे उदासी है ।
तू है मेरी साथी, मेरी दोस्त,हर मुश्किल में
चाहे हो हमारे पास, या हो कितनी ही दूरी भी
तेरे साथ गुजरा हर पल यादगार और
दिल के करीब होता है
कुछ कारण वश यह प्यारी बेटी अपनी यह पहचान खोने लगी है
वक्त के थपेड़ो से सीख लेकर कर ,वोह भी बदलने लगी है
आज के समाज में, एक बहस काफी समय से चली आ रही है ,
यह धारणा कि बेटी एक संपत्ति है ?
आज के समाज में, एक बहस काफी समय से चली आ रही है ,
यह धारणा कि बेटी एक संपत्ति है ?
है एक दायित्व या एक बोझ की जिम्मेवारी ,
एक वरदान है या अभिशाप जीवन का ?
कुछ समय पहले तक भी बेटियों को परिवार की एक लायबिलिटी एक बोझ समझा जाता था। बेटी को माँ बाप की जमीन जायदाद से बेदखल रखा जाता था , लेकिन अब नहीं। बेटों के आने और बेटी के आने का अलग अलग मतलब होता था। बेटा असली वंश वाहक और बेटी एक अनचाही मुराद थी कुछ लोगो के लिए ,
यह एक पुरानी रूढ़िवादी और पूर्वाग्रह से ग्रस्त पुरुष प्रधान समाज का दृष्टिकोण है। शायद उस वक्त के राजनीतिक,सामाजिक , आर्थिक हालात इस सब के लिए जिम्मेवार रहे होंगे। आज के युग में हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी लिंग का हो, एक अद्वितीय और मूल्यवान व्यक्ति है जिसमें अपनी ताकत, प्रतिभा और योगदान देने के सामान अवसर हैं।आप एक बेटी को समाज से काट कर अपनी उन्नति को भी आधा कर लेते है।
बेटियाँ, बेटों की तरह, अपने परिवारों को अपार आनंद, गर्व और संतुष्टि प्रदान कर सकती हैं। वे शिक्षा, करियर, कला और खेल जैसे विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकती हैं, जिससे उनके परिवार और समुदायों को गर्व होता है।कितनी ही बेटियां टेनिस , क्रिकेट , रेसलिंग , हॉकी , कुश्ती , दौड़ म, शूटिंग , राजनीती , फिल्म्स एक्टिंग ,संगीत फैशन या यूँ कहें वो हर काम जो कभी पुरुष करते थे आज बेटियां बड़ी आसानी से करने लगी है.पुरुष प्रधान समाज में आज बेटियां अपना अलग परचम लहरा रही है।
इसके अलावा, बेटियाँ अक्सर अपने माता-पिता और परिवार के सदस्यों की देखभाल करने, भावनात्मक समर्थन प्रदान करने और घरेलू जिम्मेदारियों में मदद करने में महत्वपूर्ण अग्रणी भूमिका निभाती हैं।
यह महत्वपूर्ण है कि हम यह पहचानें कि एक बेटी (या किसी भी व्यक्ति) का मूल्य और महत्व समाजिक अपेक्षाओं, आर्थिक योगदान या पारंपरिक लिंग भूमिकाओं द्वारा नहीं मापा जा सकता है। हर व्यक्ति को सम्मान, प्यार और समान अवसर प्राप्त करने का अधिकार है ताकि वे बढ़ सकें और समृद्ध हो सकें। सभी लोगों की विविधता और व्यक्तित्व का जश्न मनाएं, जिसमें बेटियाँ भी शामिल हैं।
बेटी न तो एक संपत्ति है और न ही एक दायित्व या एक जिम्मेवारी या बोझ ; वह एक अद्वितीय और मूल्यवान, शांति और सहिष्णु त्याग की मूर्ति है जिसे प्यार, सम्मान और समान अवसर प्राप्त करने का अधिकार है ताकि वह सफल हो सके और समृद्ध हो सके। वो एक ऐसा बिंदु है जिसके इर्द गिर्द यह संसार का चक्र बखूबी चलता रहता है , बेटी ही सृष्टि है इसका हमारे धार्मिक ग्रंथों में एक देवी का दर्जा है. अगर आप आधुनिक विज्ञान के अनुसंधानों की बात करें तो उसमें स्त्री शक्ति है का भरपूर योग है ,
अनुसंधानों में यह भी पाया गया है के पुरुष के मुकाबले स्त्री की संरचना पुरुष से दस बीस साल आगे है , यानी जो निमित शक्तियां बेटियों के भीतर आज है वह पुरुषों की शारीरिक क्षमता से बीसियों साल आगे है। इसी क्षमताओं की वजह से पुरुष ने स्त्रियों को दबाना डराना शुरू किया ताकि वो कामयाब न होने पाए
जहाँ जहाँ बेटिओं का दमन हुआ वहां का समाज हमेशा के लिए दफ़न हो गया , बेटियों की देवीय शक्ति और ज्ञान का फायदा जिस समाज ने उठाया है वो आज दुनिया पे राज कर रहा है , और दूसरी तरफ एक समाज है जिसने स्त्री जाती को न पढ़ने दिया न ही आज़ादी से जीने दिया, उसे सिर्फ अपना गुलाम बना के रखा। उसी समाज में आज पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा अशांति और मार काट मची हुई है
इन्ही कुछ वजहो से आजकल, उस समाज की बेटियों में विद्रोही और आक्रामक व्यवहार के कई कारण पैदा हो चुके हैं।
आधुनिक समाज में महिलाओं की भूमिका में परिवर्तन आया है। बेटियों को अब अधिक स्वतंत्रता और अवसर मिल रहे हैं, एक वक्त था बेटियों को देहलीज़ से बाहर जाना मना था , स्कूल कॉलेज हर जगह उसके साथ उसकी हिफाज़त के लिए कोई न कोई आदमी साथ होता था , लेकिन आज की तस्वीर बिकुल अलग है , आज एक बेटी या नारी जिससे वे अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित हो रही हैं। अब वो किसी रूढ़िवादी समाज में नहीं जीना चाहती , वो खुल के साँसे लेना चाहती है , आज वो खुद सेना, एयरफोर्स , पुलिस में भर्ती होकर लोगो को सुरक्षा प्रदान कर रही है।
शिक्षा और जागरूकता के कारण बेटियों में आत्मविश्वास और स्वावलंबन की भावना बढ़ रही है। वे अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए मजबूती से खड़ी होने और लड़ने के लिए तैयार हैं। वे खुद कमाती है अपने परिवार का भी पूरा पालन पोषण करने में पूरी तरह सक्षम है , बड़ी बड़ी जिम्मेवारी की कुर्सी पर आज की बेटी बैठ चुकी है चाहे वो कोई प्राइवेट कंपनी हो या किसी देश की प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति ,वही एक छुई मुई बेटी आज अपने दम से सब कुछ चला रही है। पायलट बन के हवाई जहाज उड़ाना हो या कोई भी अंतरिक्ष का मंगल यान सब बेटियों ने अपनी क्षमता से कर के दिखाया है
जहाँ जहाँ बेटिओं का दमन हुआ वहां का समाज हमेशा के लिए दफ़न हो गया , बेटियों की देवीय शक्ति और ज्ञान का फायदा जिस समाज ने उठाया है वो आज दुनिया पे राज कर रहा है , और दूसरी तरफ एक समाज है जिसने स्त्री जाती को न पढ़ने दिया न ही आज़ादी से जीने दिया, उसे सिर्फ अपना गुलाम बना के रखा। उसी समाज में आज पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा अशांति और मार काट मची हुई है
इन्ही कुछ वजहो से आजकल, उस समाज की बेटियों में विद्रोही और आक्रामक व्यवहार के कई कारण पैदा हो चुके हैं।
आधुनिक समाज में महिलाओं की भूमिका में परिवर्तन आया है। बेटियों को अब अधिक स्वतंत्रता और अवसर मिल रहे हैं, एक वक्त था बेटियों को देहलीज़ से बाहर जाना मना था , स्कूल कॉलेज हर जगह उसके साथ उसकी हिफाज़त के लिए कोई न कोई आदमी साथ होता था , लेकिन आज की तस्वीर बिकुल अलग है , आज एक बेटी या नारी जिससे वे अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित हो रही हैं। अब वो किसी रूढ़िवादी समाज में नहीं जीना चाहती , वो खुल के साँसे लेना चाहती है , आज वो खुद सेना, एयरफोर्स , पुलिस में भर्ती होकर लोगो को सुरक्षा प्रदान कर रही है।
शिक्षा और जागरूकता के कारण बेटियों में आत्मविश्वास और स्वावलंबन की भावना बढ़ रही है। वे अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए मजबूती से खड़ी होने और लड़ने के लिए तैयार हैं। वे खुद कमाती है अपने परिवार का भी पूरा पालन पोषण करने में पूरी तरह सक्षम है , बड़ी बड़ी जिम्मेवारी की कुर्सी पर आज की बेटी बैठ चुकी है चाहे वो कोई प्राइवेट कंपनी हो या किसी देश की प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति ,वही एक छुई मुई बेटी आज अपने दम से सब कुछ चला रही है। पायलट बन के हवाई जहाज उड़ाना हो या कोई भी अंतरिक्ष का मंगल यान सब बेटियों ने अपनी क्षमता से कर के दिखाया है
इस क्रांति के पीछे ,थोड़ा श्रेय मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम को भी जाता है , इसी से बेटियों को विभिन्न प्रकार के विचारों और आदर्शों के बारे में पता चलता है। इससे वे अपने विचारों और आदर्शों को विकसित करने में मदद पाती हैं और अपना जीवन मार्ग अपनी मर्जी से चुनने लगी है । बेशक समाज उन्हें लिबरल और विद्रोहीःकहने लगा है क्योंकि बेटियां अब जंजीरें तोड़ चुकी है
कुछ मामलों में, बेटियों को अपने जीवन में परिवारिक और सामाजिक दबाव का कड़ा सामना करना पड़ता है। इससे वे सव्भाविक तौर से विद्रोही और आक्रामक व्यवहार में लिप्त हो सकती हैं।
बेटियों में विद्रोही और आक्रामक व्यवहार व्यक्तिगत समस्याओं और मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों के कारण भी हो सकता है।
यह महत्वपूर्ण है कि हम बेटियों के विद्रोही और आक्रामक व्यवहार के पीछे के कारणों को समझने का प्रयास करें। उन्हें हमारे समर्थन, प्यार और समझ की आवश्यकता है, न कि आलोचना और दंड की।
कहते है बेटियां बाप की कॉपी होती है ? यह सवाल काफी जटिल है, हाँ अनुवांशिक या जेनेटिक्स का सिद्धांत कुछ इस तरफ इशारा जरूर करता है पर और भी बहुत से कारण होते है ,और इसका जवाब हर परिवार और व्यक्ति के परिस्थिति के लिए अलग-अलग हो सकता है। लेकिन आमतौर पर, यह माना जाता है कि बेटियाँ अपने पिता के साथ अधिक खुलकर और ईमानदारी से बात करती हैं।
कुछ मामलों में, बेटियों को अपने जीवन में परिवारिक और सामाजिक दबाव का कड़ा सामना करना पड़ता है। इससे वे सव्भाविक तौर से विद्रोही और आक्रामक व्यवहार में लिप्त हो सकती हैं।
बेटियों में विद्रोही और आक्रामक व्यवहार व्यक्तिगत समस्याओं और मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों के कारण भी हो सकता है।
यह महत्वपूर्ण है कि हम बेटियों के विद्रोही और आक्रामक व्यवहार के पीछे के कारणों को समझने का प्रयास करें। उन्हें हमारे समर्थन, प्यार और समझ की आवश्यकता है, न कि आलोचना और दंड की।
कहते है बेटियां बाप की कॉपी होती है ? यह सवाल काफी जटिल है, हाँ अनुवांशिक या जेनेटिक्स का सिद्धांत कुछ इस तरफ इशारा जरूर करता है पर और भी बहुत से कारण होते है ,और इसका जवाब हर परिवार और व्यक्ति के परिस्थिति के लिए अलग-अलग हो सकता है। लेकिन आमतौर पर, यह माना जाता है कि बेटियाँ अपने पिता के साथ अधिक खुलकर और ईमानदारी से बात करती हैं।
कुछ शोधों से पता चलता है कि बेटियाँ अपने पिता के साथ अधिक भावनात्मक रूप से जुड़ी होती हैं , उसे अपना रोल मॉडल मान कर अपने भविष्य का निर्माण करना चाहती है ,और उन्हें अपने विचारों और भावनाओं के बारे में बताने में अधिक सहज महसूस करती हैं। इसके अलावा, बेटियाँ अक्सर अपने पिता के साथ अधिक समय बिताती हैं और उन्हें अपने जीवन के बारे में अधिक जानकारी देती हैं।
यहाँ आप सब पिता बैठे है अगर मुझ से सहमत है तो मुझे सपोर्ट कीजिये
हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह मैंने सिर्फ एक रिसर्च में आये नतीजों पे बात की है इसमें मेरा कुछ नहीं है , जरूरी नहीं हर परिवार और व्यक्ति के लिए यही बात सच हो । कुछ बेटे भी अपने पिता के साथ अधिक खुलकर और ईमानदारी से बात कर सकते हैं, और जीवन भर साथ दे सकते है , जबकि कुछ बेटियाँ इसके विपरीत अधिक संकोची या छुपाव से बात कर सकती हैं।अंत में, यह महत्वपूर्ण यह है कि हम अपने बच्चों के साथ एक मजबूत और विश्वासपूर्ण संबंध बनाने का प्रयास करें, चाहे वे बेटे हों या बेटियाँ।
लेकिन कुछ अपवाद भी है - बेटियां घर की इज़्ज़त होती है , इज़्ज़त में गुस्ताखी का मतलब खून खराबा तक हो जाता था , लेकिन अब काफी कुछ बदल चूका है
एक बहुत ही दुखद और चिंताजनक सामाजिक स्थिति! आज कल बहुत से घरों में बनती हुई दिखाई दे रही है, शादी जैसे पवित्र बंधन से दूर live in जैसे भ्रमित रिश्तो में रहना बेटी के पतन का कारण बनता जा रहा है
अपनी नई नई मिली आर्थिक आजादी से जब बेटी सब फैसले बिना किसी की सलाह के खुद लेना चाहती है अपने माता-पिता के तजुर्बों को गलत समझने लगती है ,उनपर पक्षपात का आरोप लगाने लगती है , बेशक यह तब्दीली उसकी शादी के पहले या बाद में आती है जब उसका एक अलग संसार ,अलग सोच , परिवार और जिम्मेवारियां होती हैं ,
कुछ मजबूरियां भी होती है, जहाँ वो गई है वहां के संस्कारो का असर भी उसपे होने लगता है और अपने असली परिवार का विरोध करते हुए अपनी ही धुन में चलना चाहती है, अपनी ही परेशानियों की वजह से अपने माँ बाप के बुढ़ापे में उन्हें अनदेखा करने लगती है, क्योंकि बुढ़ापा उनका कीमती समय मांगता है ध्यान रखने के लिए तो यह एक बहुत ही पीड़ादायक और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हो सकती है।क्योंकि अभी तक लड़के ही ऐसा किया करते थे पर अब कहीं कहीं लड़किया भी इसी राह पे चलने लगी है
जिसका एक मुख्य कारण ,अगर माता-पिता और बेटी के बीच बात चीत संचार में कमी होती है (communications , तो यह धीरे धीरे गलतफहमी और अनदेखी को जन्म दे सकता है।
माता-पिता और बेटी के बीच पीढ़ीगत अंतर (generation gap )हो सकता है, जो उनके विचारों, मूल्यों और जीवनशैली में अंतर को जन्म दे सकता है। जिससे दूरियां पैदा होने लगती है
बेटी को व्यक्तिगत समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि काम का दबाव, वित्तीय समस्याएं या स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, जो उसे अपने माता-पिता की देखभाल में असमर्थ बना सकती हैं।
समाज और संस्कृति के दबाव के कारण बेटी को अपने माता-पिता की देखभाल में कम रुचि लेने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।ऐसा रिसर्च में आया है , हाँ इसका असर हर समाज में अलग अलग होगा , भारत में रहने वाली बेटियां और अमेरिका यूरोप में बसी पली बेटियों के सवभाव में काफी अंतर दिखाई देगा। किसी भी परिवार की नीव बेशक एक बेटी ही होती है नीवं कमजोर होने से समाज बिखरने लगा है ,
परिवार बनने कम हो गएँ है , बेटियां शादी के बंधन से दूर होती जा रही है या देर से कर रही है, या अकेले ही रहना चाहती है जिससे समाज में एक असंतुलन पैदा होने लगा है , ऐसा कमोवेश हर समृद्ध देश में हो रहा है , परिवार से पहले करियर और धन की दौड़ , अपने बच्चों को पालने की इच्छा से ज्यादा जानवर के बच्चों को पालना आज की युवा पीढ़ी निसंदेह समाज के पतन का इशारा है। वक्त का पहिया है अपनी गति से चलेगा और जो भी इसमें रूकावट डालेगा ,वो खुद ही टूट जाएगा, पर वक्त न रुका है न रुकेगा
यह महत्वपूर्ण है कि हम इस बदलाव की स्थिति को समझने का प्रयास करें और माता-पिता और बेटी के बीच संबंधों को मजबूत बनाने के लिए हर संभव तरीके से इस बढ़ती खाई को पाटने की कोशिश करें।
यहाँ आप सब पिता बैठे है अगर मुझ से सहमत है तो मुझे सपोर्ट कीजिये
हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह मैंने सिर्फ एक रिसर्च में आये नतीजों पे बात की है इसमें मेरा कुछ नहीं है , जरूरी नहीं हर परिवार और व्यक्ति के लिए यही बात सच हो । कुछ बेटे भी अपने पिता के साथ अधिक खुलकर और ईमानदारी से बात कर सकते हैं, और जीवन भर साथ दे सकते है , जबकि कुछ बेटियाँ इसके विपरीत अधिक संकोची या छुपाव से बात कर सकती हैं।अंत में, यह महत्वपूर्ण यह है कि हम अपने बच्चों के साथ एक मजबूत और विश्वासपूर्ण संबंध बनाने का प्रयास करें, चाहे वे बेटे हों या बेटियाँ।
लेकिन कुछ अपवाद भी है - बेटियां घर की इज़्ज़त होती है , इज़्ज़त में गुस्ताखी का मतलब खून खराबा तक हो जाता था , लेकिन अब काफी कुछ बदल चूका है
एक बहुत ही दुखद और चिंताजनक सामाजिक स्थिति! आज कल बहुत से घरों में बनती हुई दिखाई दे रही है, शादी जैसे पवित्र बंधन से दूर live in जैसे भ्रमित रिश्तो में रहना बेटी के पतन का कारण बनता जा रहा है
अपनी नई नई मिली आर्थिक आजादी से जब बेटी सब फैसले बिना किसी की सलाह के खुद लेना चाहती है अपने माता-पिता के तजुर्बों को गलत समझने लगती है ,उनपर पक्षपात का आरोप लगाने लगती है , बेशक यह तब्दीली उसकी शादी के पहले या बाद में आती है जब उसका एक अलग संसार ,अलग सोच , परिवार और जिम्मेवारियां होती हैं ,
कुछ मजबूरियां भी होती है, जहाँ वो गई है वहां के संस्कारो का असर भी उसपे होने लगता है और अपने असली परिवार का विरोध करते हुए अपनी ही धुन में चलना चाहती है, अपनी ही परेशानियों की वजह से अपने माँ बाप के बुढ़ापे में उन्हें अनदेखा करने लगती है, क्योंकि बुढ़ापा उनका कीमती समय मांगता है ध्यान रखने के लिए तो यह एक बहुत ही पीड़ादायक और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हो सकती है।क्योंकि अभी तक लड़के ही ऐसा किया करते थे पर अब कहीं कहीं लड़किया भी इसी राह पे चलने लगी है
जिसका एक मुख्य कारण ,अगर माता-पिता और बेटी के बीच बात चीत संचार में कमी होती है (communications , तो यह धीरे धीरे गलतफहमी और अनदेखी को जन्म दे सकता है।
माता-पिता और बेटी के बीच पीढ़ीगत अंतर (generation gap )हो सकता है, जो उनके विचारों, मूल्यों और जीवनशैली में अंतर को जन्म दे सकता है। जिससे दूरियां पैदा होने लगती है
बेटी को व्यक्तिगत समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि काम का दबाव, वित्तीय समस्याएं या स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, जो उसे अपने माता-पिता की देखभाल में असमर्थ बना सकती हैं।
समाज और संस्कृति के दबाव के कारण बेटी को अपने माता-पिता की देखभाल में कम रुचि लेने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।ऐसा रिसर्च में आया है , हाँ इसका असर हर समाज में अलग अलग होगा , भारत में रहने वाली बेटियां और अमेरिका यूरोप में बसी पली बेटियों के सवभाव में काफी अंतर दिखाई देगा। किसी भी परिवार की नीव बेशक एक बेटी ही होती है नीवं कमजोर होने से समाज बिखरने लगा है ,
परिवार बनने कम हो गएँ है , बेटियां शादी के बंधन से दूर होती जा रही है या देर से कर रही है, या अकेले ही रहना चाहती है जिससे समाज में एक असंतुलन पैदा होने लगा है , ऐसा कमोवेश हर समृद्ध देश में हो रहा है , परिवार से पहले करियर और धन की दौड़ , अपने बच्चों को पालने की इच्छा से ज्यादा जानवर के बच्चों को पालना आज की युवा पीढ़ी निसंदेह समाज के पतन का इशारा है। वक्त का पहिया है अपनी गति से चलेगा और जो भी इसमें रूकावट डालेगा ,वो खुद ही टूट जाएगा, पर वक्त न रुका है न रुकेगा
यह महत्वपूर्ण है कि हम इस बदलाव की स्थिति को समझने का प्रयास करें और माता-पिता और बेटी के बीच संबंधों को मजबूत बनाने के लिए हर संभव तरीके से इस बढ़ती खाई को पाटने की कोशिश करें।
"सच्चाई "की इस"जंग"मे , . अकसर "झूठे"भी"जीत"जाते है.!
"समय"अपना"अच्छा"न हो तो , "अपने "संस्कार भी "बदल "जाते है.!!
धन दौलत की चमक दमक मार देती है अकल उनकी भी ,जिन्हें हम अपनी दौलत समझते रहे
कच्चे"मकान"देखकर किसी से "रिश्ता" ना तोलना:..!क्योंकि...🤞
"मिट्टी"की"पकड"बहुत"मजबूत" होती है..!और...👌
"संगमरमर "पर तो अक्सर पैर "फिसल जाते "है..!!
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कच्चे"मकान"देखकर किसी से "रिश्ता" ना तोलना:..!क्योंकि...🤞
"मिट्टी"की"पकड"बहुत"मजबूत" होती है..!और...👌
"संगमरमर "पर तो अक्सर पैर "फिसल जाते "है..!!
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