Tuesday, April 4, 2023

ADABI SANGAM ------------ TOPIC NO ------------ पवन , हवा , WIND, वायु -----------27-06-2020


                        हवा के साथ साथ 

                              

 गीत तो कितने ही लिख डालो , हवा को जाने बगैर हम कहीं भी खो जाते है 
हवा के साथ साथ , घटा के संग संग , ओ साथी चल , मुझे भी लेके साथ चल 
हवा में उड़ता जाए , मेरा लाल दुपट्टा मलमल का , हो जी हो जी। 
सावन का महीना पवन करे सोर ,

पवन धीरे धीरे बहे तो समीर कहलाये 
थोड़ा तेज चलने लगे तो हवा हमारे बालों को लहराने लगती है 
पत्तों को सहलाने लगती है 
थोड़ा और गति बढे तो आंधी बन जाती है , धुल मिटटी के गुबार , पेड़ो से पत्तों को छुड़ा देना , इंसान को कहीं छुपना पड़ता है। 

आंधी को तूफ़ान बनाने में कुदरत की पूरी ताकत इसके पीछे लग जाती है। 

हमारे शास्त्रों में भगवान् को बड़ी ही खूबसूरती से  परिभाषित किया है कि भगवान् कोई ऐसी शक्ति नहीं है जो ऊपर अकाश में रहती हो और जो हमें किसी भी प्रकार से नियंत्रित करती हो , अगर कोई शक्तियां हैं तो वह उन ग्रहो में है जो हमारी पृथिवी की तरह ही ब्रह्माण्ड में स्थापित है और उनकी उर्जित किरणों और विकिरण से उत्पन शक्ति हमारी पृथ्वी को भी प्रभावित करती है और चुंबकीय सौरमंडल में सब ग्रह एक दुसरे से एक उचित दूरी बनाये हुए है और सालों साल से ऐसे ही नियम से चले जा रहे है , यही वोह शक्ति है जो हमारी समझ के परे हो जाती है यहाँ हमारा विज्ञानं भी ज्यादा कुछ नहीं बता पाता।

इन ग्रहो पे न तो जीवन है न ही कोई ऑक्सीजन , जीवन अभी तक नहीं मिला, लेकिन जिसे हम भगवान् कहते है वोह तो वहां भी है , वहां भूमि है , कहीं कहीं जल भी किसी न किसी गैस के रूप में विध्यमान है, न खत्म होने वाला एक विशाल ब्रह्माण्ड रुपी आकाश ।  हवा का प्रचंड रूप एक तूफ़ान के रूप में देखने को वहां भी मिलता है।

हवा कहाँ से आती है क्या है कैसे चलती है , क्यों चलती है?और हमें दिखाई क्यों नहीं देती ?

यहीं पर जिकर आया की कोई शक्ति तो है जो दिखाई नहीं देती है , उसे शास्त्रों में नाम दिया की यह शक्ति एक नहीं बल्कि शक्तियों का समिश्रित समूह है जिसे जब मिला कर देखा जाये तो " भगवान् का रूप सामने आ गया "अब देखिए भगवान् शब्द कैसे बना।


BH -- भूमि
A ---आकाश
G--- आपस में बाँधने वाली शक्ति "गुरुत्व"गुरुत्वाकर्षण
V---वायु
A ----अग्नि
N -- नीर

अब इसी भगवान् ने अपनी प्रिंट फोटो कॉपी इंसान के रूप में बना कर धरती पे उतारी , इंसान में भी यही मुख्य पांच तत्व ही है जो की भगवान् में है।

हनुमान को हम अंजनी -पवन पुत्र क्यों कहते हैं ? क्योंकि पवन और अंजनी के समागम से उत्पन हुए हनुमान की गति हवा से भी तेज़ थी , वोह इतना तेज़ उड़ सकते थे की जैसे हवा ही उन्हें हर जगह लेकर जाती थी। इसलिए इनको  भगवान् का दर्जा हासिल है और घर घर में इन्हें पूजा जाता है। 

इंसान का शरीर भूमि से पैदा हुई खुराक से बना है , पानी ही इसका शरीर और खून है जो की शरीर का 98 % तक है , हवा यानी की इंसान की सांस इंसान के हृदय का इंजन है और हवा में मौजूद ऑक्सीजन इंसान के शरीर की ऊर्जा। पेड़ पौधे भी हवा से नाइट्रोज़न और कार्बन डाइऑक्साइड लेकर सूर्य की ईंधन में अपना भोजन बनाते है और इंसान को जिन्दा रखने के लिए अर्पण कर देते है

अब इसमें भगवान् शब्द के एक अंश का नाम हवा ही तो है "हवा " पवन , wind , वायु किसी ने इसे आज तक देखा तो नहीं पर महसूस जरूर किया है , इसी हवा रुपी इंजन में हमारी सांस की ऑक्सीजन समाहित है , हवा के जरूरी तत्वों में ऑक्सीजन , नाइट्रोज़न , कार्बन डाइऑक्साइड , और बाकी की प्रकृति से उतपन हुई गैस भी हवा के भीतर समाहित हैं।

जब गर्मी लगने लगती है तो ध्यान जाता है की हवा बंद है ,पसीना नहीं सूख रहा तो पंखा चला कर हवा के झोंके पैदा किये जाते है ताकि हमारे शरीर का बाहर निकला हुआ गर्म पसीना हवा के साथ भाप बन के उड़ जाए और हमे ठंडक देने लगे।

हवा गर्म लगने लगे तो ऐरकण्डीशन या कूलर में से इसे गुजार कर ठंडा करके अपने कमरे में आने देते है पर दिखाई यह तब भी नहीं देती सिर्फ अपने होने का अहसास ही देती है , ईश्वर भी कहाँ दिखाई देता है जो उसका ही एक अंश जो हवा है ,हमें दिखाई देगी ?

जब यही पवन , सूर्य देव की चिलचिलाती गर्मी में तप कर , हलकी हो कर आसमान की तरफ उठने लगती है तो ,समुन्दर से पानी भी चुरा लेती है ,ताकि इतनी भी हलकी न हो जाए की धरती पे लौट ही न पाय। और भाप बन कर काले काले बादलों के रूप में दिखाई देने लगती है , भाप के बदरा घिर आते है , सूर्य को पूरा ढक लेते है लोग झूमने लगते है गर्मी से निजात पाकर।

पवन का वायु चक्र अभी थमा नहीं है , यह उन्ही बादलो को अपने कंधे पे सवार कर चल पड़ती है अगले पड़ाव पर , जो है बर्फीले पहाड़ , ठन्डे पर्बतों से टकरा कर यह पवन अब पुरबा बन के वापिस लौटती है मैदानों की तरफ अपनी अगली मंजिल की और ,तो इसमें समुन्द्रों से चुराई हुई पानी की भाप और भाप पहाड़ो की बर्फ से ली हुई गजब की ठंडक होती है, इस लिए भाप अब  पानी की बूंदों का सागर बन चुकी होती है जो खुद को संभल नहीं पाती और मैदानों पर टूट कर बरस पड़ती है। यह सब हवा की देख रेख में चलता रहता है , हवाएं कभी तेज कभी माध्यम पानी को पूरी धरती पर लेजाकर बिखेरती रहती है।  

कुदरत के नियमानुसार हर साल धरती की धुलाई सफाई का जिम्मा हवा के पास ही तो है , हवा में प्रदूषण बढ़ जाए तो सांस लेना दूभर हो जाता है , पानी से भरे बादल बरस के तेज गति की हवा के सहारे , सारे भूमण्डल को झाड़ पोंछ के साफ़ कर देती है ताकि कुदरत का मेहमान " इंसान और जीव जंतु आराम से रह सके "  जी हाँ हम सब यहाँ मेहमान ही तो हैं जब तक कुदरत चाहेगी हमे दाना पानी और हवा  मिलेगा तभी तक जीवन चलेगा। 

 धुलाई किया पानी , बागों और खेतो में पहुँच जाता है ताकि वनस्पति से ऑक्सीजन उतपन होती रहे ,जीवन व्यापन के लिए अन्न पैदा होता रहे , नदियां लबा लब भर के चलती है पृथिवी की प्यास बुझाने के बाद , बचा हुआ जल हमारी साल भर की जमा की गन्दगी को लेकर वापिस समुन्दर को लौट जाता है ,वहां इसी गन्दगी से एक नया जीवन समुन्दर में भी चलता रहता है वहां भी वनस्पति ,जीव , बैक्टीरिया , मछलियां इसी पानी को फिर से शुद्ध कर देती है।  इस पूरी प्रिक्रिया में सूर्य की गर्मी और हवा के दबाव का ही तो मुख्य संगम है।

लेकिन जब इंसान प्रकृति से छेड़ छाड़ करने लगता है तो इसी मंद बहती पवन का दबाव और मिज़ाज़ भी गर्म होने लगता है , इसी दबाव की वजह से मस्त बहती पवन रूद्र रूप धारण कर लेती है और अपनी तेज गति से समुन्दर में तूफ़ान ला देती है , ऊंची उठती लहरें और तूफ़ान कितने ही प्रकृती के दुसरे नुक्सान भी कर देती है , पेड़ उखड जाते है , घरों की छते कागज की तरह उड़ जाती है , इंसान की बिछाई पूरी की पूरी बिसात , बिजली के खम्बे और तारें पलों में छिन भिन हो कर टूट जाते है। लाखों इंसान इन्ही तूफानों की भेंट चढ़ जाते है , प्रकृति इंसान से अपना बदला उसकी जान लेकर ले लेती है और फिर से चलने लगती है अपनी अगली उड़ान पर।  
हमने हकीमों और डाक्टरों को भी अक्सर वायु विकार का नाम लेते सुना है , वात यानी की वायु दोष हमे कितना तकलीफ देती है जैसे की एसिडिटी , शरीर के सूक्ष्म कोशिकाओं में रुकी हुई हवा इंसान को हज़ारों तरह की तकलीफें ,बदहज़मी जोड़ो का दर्द , दिल का दौरा इत्यादि भी देती हैं । इसी वायु का जड़ी बूटी या दवाइओं से इलाज किया जाता है की वात और पित का समीकरण उचित मात्रा में बना रहे। यह हवा जीवन देती भी और लेती भी है।

वात यानी वायु एक संस्कृत शब्द है ,जहाँ जहाँ वात है वहां वहां वातावरण होता है यानी की हवा का निवास। हवा एक उर्दू शब्द है , हिन्दू हवा को पवन कहते है .बिमारी में जब भी हम हॉस्पिटल में भर्ती होते है सबसे पहले हमारी श्वास नाली में हवा मिश्रित ऑक्सीजन डाली जाती है , क्यों की हवा ही तो हमारे शरीर का इंजन है जो हमारे भोजन को पचा कर हमे ऊर्जा प्रदान करता है,

आज अगर कोरोना की बीमारी का प्रकोप फैला हुआ है तो लोगों की मृत्यु उनके फेफड़े जैसे ही वायरल बलगम से संक्रमित हो जाते और हवा के रास्ते बंद होने लगते है तो , फेफड़ों को हवा न मिल पाने यानी की सिर्फ उनकी सांस न ले पाने की वजह से मौत होती है , उन्ही की मदद को वेंटीलेटर और और कृत्रिम ऑक्सीजन हॉस्पिटल में दी जाती है , इसी से अंदाज़ लगता है की इंसान की जिंदगी में हवा की अहमियत क्या है ?

अब थोड़ा हंसी के लहजे में आप को बताऊँ ,हवा के इतने गुण समझने के बाद कुछ लोग खुद ही हवा में रहने लगते है , अपनी अपनी पतंग भी तो बिना हवा के नहीं उडा पाते यही सोच कर हवाई किले बनाते है , हवा बाज़ी करके लोगो को बेवकूफ भी बनाते है , इसका मतलब सीधा सादा यह है के जैसे हवा दिखाई नहीं देती वैसे ही लोग ऐसी ऐसी बातें करके लोगों को बेवकूफ बना देंगे जो वोह होते नहीं वोह दिखाने लगते है , इसे ही हवा बाज़ी कहते है। मेरी आपसे हाथ जोड़ नम्र निवेदन है की पतंगबाज़ी कर लेना , ठंडी ठंडी हवा के झोंको का पूरा पूरा लुत्फ़ ले लेना पर -----------
भूल कर भी 
हवा बाज़ी न करना। क्योंकि जिसकी शुरुआत हवाबाज़ी  से होती है न उसकी हवा भी जल्दी ही निकल जाती है 

अब किस किस याद का किस्सा खोलूं ,
हवाओं ने कैसे मेरा रुख ही  बदल दिया , 
गुजरी फ़िज़ाओं के बारे में सोचूँ , 
या उन खुशबुओं के बारे में सोचूँ ,
जिंदगी में रचे पलों के बारे में सोचूँ ,
अब जीवन किताब ही  बन गई है यादों की ,
अब उन यादों के सहारे उम्र काटूं 
या हवाओं के साथ खुद को बह जाने दूँ ?

किसी शायर ने मौत को क्या खूब नवाज़ा है :
ज़िन्दगी में दो मिनट कोई मेरे पास न बैठा ,
आज सब मेरी मय्यद को ,घेर कर बैठे जा रहे थे ,
कोई तोहफा न मिला था ताउम्र ,आज तक उनसे ,
और आज फूलों की माला ही माला उनके हाथों में थी,
तरस गया था किसी ने मुझे आज तक एक कपडा भी न दिया,
और आज मेरी अर्थी पे नए नए परिधान ओढ़ाय जा रहें थे ,
ता उम्र दो कदम भी मेरे साथ जो आज तक न चले ,
आज बना के काफिला ,मुझे कंधे पे उठाय चले जा रहें हैं
आज मालूम हुआ की इन्सान की कदर 'मौत 'के बाद ही होती है ?
मैं हैरान हूँ ,मेरी मौत तो मेरी जिंदगी से ज्यादा खूबसूरत निकली ,
कमबख्त 'हम ' तो युही खौफ खाए जा रहे थे ?????